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सुनना भी एक कला है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Apr 23
  • 3 min read

Apr 23, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, अगर आप सामान्य लोगों के बीच होने वाले संवाद पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि वे सब लोग आपस में बोल तो रहे हैं, लेकिन वास्तव में बहुत कम लोग सुन रहे हैं। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आवाज का कानों में जाना भर सुनना नहीं होता है। अर्थात् सुनना केवल ध्वनि ग्रहण करना नहीं है। यह तो एक गहन और सजीव कला है। यह कला हमें न केवल बेहतर इंसान बनाती है, बल्कि हमारे रिश्तों, करियर और आत्मिक विकास में भी गहरा योगदान देती है। इसके लिए आपको सामने वाले के शब्दों, भावनाओं और मौन के पीछे छिपे भाव को समझना होगा।


आइए इस विषय को थोड़ा गंभीरता से समझने के लिए सबसे पहले सुनने के तीनों स्तर पर चर्चा कर लेते हैं-

१) उपयोगितावादी सुनना अर्थात् सामने वाले के कहे शब्दों को केवल प्रतिक्रिया देने के लिए सुनना, न कि समझने के लिए।

२) समझने के लिए सुनना अर्थात् सामने वाले के कहे शब्दों को उसी के दृष्टिकोण से समझने के लिए सुनना। दूसरे शब्दों में कहूँ तो जब आप कहे हुए शब्दों को सामने वाले के दृष्टिकोण को गहराई से जानने के लिए सुनते हैं।

३) गहन याने डीप सुनना अर्थात् सामने वाले के शब्दों को सभी पूर्वाग्रहों को छोड़, अपने पूरे मन, बुद्धि और हृदय के साथ सुनना।


दोस्तों, तीसरे स्तर पर सुनना ही, सुनने को एक सच्ची कला में बदलता है। इसलिए एक सच्चा श्रोता वही है जो सामने वाले को बिना किसी पूर्व धारणा के, पूरी उपस्थिति के साथ सुने। यकीन मानियेगा, इस स्तर पर सुनना आपको कई स्तर पर लाभ देगा। जैसे यह आपके रिश्तों में गहराई लाएगा; आपके नेतृत्व कौशल को निखारेगा, आपको आत्मिक शांति देगा; आपके संवाद को सकारात्मक बनाएगा, आदि। इसलिए मेरा मानना है कि एक अच्छा श्रोता बनने से हम दूसरों के दिल के करीब आते हैं और समाज में सम्मान प्राप्त करते हैं।


आइए अब हम सुनने की कला को विकसित करने के पाँच साधारण सिद्धांत सीखते हैं-

१) पूर्ण उपस्थिति बनाएँ अर्थात् जब भी कोई बात कर रहा हो, तो अपना सारा ध्यान उसी पर केंद्रित करें।

२) बीच में न टोकेँ अर्थात् सामने वाले को अपनी बात पूरी करने का मौक़ा दें।

३) भावनाओं को पहचानें अर्थात् सामने वाले द्वारा कहे गए शब्दों के पीछे छुपे भावों को समझने का प्रयास करें।

४) प्रश्न पूछें अर्थात् सामने वाले द्वारा कही गई बातों पर अपनी जिज्ञासा प्रकट करें। ऐसा करना सामने वाले को एहसास करवायेगा कि आप सचमुच उसकी बात में रुचि ले रहे हैं।

५) निर्णय या सलाह जल्दबाज़ी में न दें कई बार सामने वाले को सिर्फ एक सहानुभूति भरे श्रोता की आवश्यकता होती है। अर्थात् वह अपनी बात सलाह लेने के लिए नहीं सिर्फ़ साझा करने और अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कहता है। ऐसी स्थिति में किसी भी तरह का निर्णय या सलाह ना दें। बस पूर्ण गंभीरता के साथ सामने वाले की बातों को सुनें।


इसके अतिरिक्त आप सुनते समय निम्न बातों का ध्यान रख सकते हैं-

१) हर व्यक्ति चाहता है कि उसे गंभीरता से सुना जाए।

२) सुनना एक सम्मान है, जो हम किसी को दे सकते हैं।

३) सच्चा सुनना स्वयं के विकास का भी मार्ग है।


अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि सुनना एक मौन क्रिया है, लेकिन इसके प्रभाव गहरे और स्थायी होते हैं। जब हम सुनने लगते हैं, तो हम न केवल दूसरों के दिलों तक पहुँचते हैं, बल्कि अपनी आत्मा के गहरे तल को भी स्पर्श करते हैं। इसलिए हमेशा याद रखें, “शब्दों को सुनना आसान है, लेकिन भावनाओं को सुनना एक साधना है।”


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


 
 
 

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