Dec 18, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आज अगर आप अपने भाग्य से ज्यादा पाना चाहते हैं तो देना शुरू कीजिए। जी हाँ सही सुना आपने, अगर ज्यादा पाना है तो ज्यादा देना शुरू कीजिए क्योंकि देना ही पाने का एकमात्र साधन है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ। बात कई साल पुरानी है, एक महात्मा जी निर्जन वन में भागवत कथा पर चिंतन करने; ध्यान करने के लिए जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक बेहद निर्धन व्यक्ति ने रोक लिया और उन्हें प्रणाम करने के पश्चात उनसे प्रश्न करते हुए बोला, ‘महात्मन, आपके दर्शन कर मैं महसूस कर पा रहा हूँ किआप कोई पहुँचे हुए संत हैं। इसलिए मुझे लगता है, आप मेरी समस्या को ईश्वर तक पहुँचा सकते हैं। मैं अपने ज्ञान, अपनी क्षमता, अपनी शक्ति के अनुसार पूरा प्रयास करने के बाद भी दो वक्त की रोटी बमुश्किल जुटा पाता हूँ। इस वजह से मेरा परिवार लगभग रोज ही भूखा रहता है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अगली बार आप जब भी उस परमात्मा से बात करें, उनसे मिलें तब कृपया मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा दीजिएगा कि मुझे सारी उम्र में जितनी दौलत मिलनी है, कृपया वह एक साथ ही मिल जाये ताकि कुछ दिन तो मैं चैन से जी सकूँ। कुछ दिन तो मैं और मेरा परिवार दोनों वक्त अच्छे से भोजन कर सके।’
महात्मा जी एक पल को तो उस निर्धन व्यक्ति की फ़रियाद सुन हैरान रह गए। फिर कुछ विचार कर उसे समझाते हुए बोले, ‘मैं तुम्हारी दुःख भरी कहानी परमात्मा को ज़रूर सुनाऊंगा। उनसे विनती भी करूँगा कि तुम्हारी समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जाये। लेकिन तुम जरा दिमाग़ लगाकर खुद भी सोचो कि यदि भाग्य की सारी दौलत तुम्हें एक साथ मिल जायेगी तो आगे की ज़िन्दगी कैसे गुजारोगे?’ वह निर्धन व्यक्ति अपने दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘महात्मन, आगे की ज़िंदगी की चिंता अभी से क्यों करूँ? मेरे लिए तो अभी ज़िंदगी काटना ही मुश्किल हो रहा है। कृपया आप तो ईश्वर तक मेरी यह प्रार्थना पहुँचा दीजिएगा।’
इसके बाद भी महात्मा ने उस व्यक्ति को बहुत समझाने का प्रयास किया किन्तु वह माना नहीं और अपनी बात पर अडिग रहा। अंत में महात्मा जी ने उस व्यक्ति को आशा बँधाई और अपने मार्ग पर आगे बढ़ गए और जंगल में पहुँच कर अपनी साधना में लग गए। ईश्वरीय ज्ञान के धनी उस महात्मा ने एक दिन अपनी प्रार्थना के दौरान ईश्वर से उस निर्धन के लिए भी प्रार्थना करी और ईश्वर के समक्ष उस व्यक्ति की इच्छा जाहिर की। इसका परिणाम यह हुआ कि उस व्यक्ति को अचानक ही बहुत सारी दौलत एक साथ मिल गई।
दौलत पाते ही उस निर्धन व्यक्ति ने सबसे पहले ईश्वर का और फिर उस महात्मा का धन्यवाद किया और सोचने लगा कि आज तक मैंने ग़रीबी में दिन काटे हैं और इसीलिए आज तक कभी भी ईश्वर और ज़रूरतमंदों की सेवा नहीं कर पाया। क्यों ना मैं ईश्वर से मिली इस दौलत से सेवा का कार्य करूँ क्योंकि इसके बाद तो मुझे कभी दौलत मिलने वाली नहीं है। विचार आते ही अगले दिन से ही वह निर्धन व्यक्ति पीड़ित मानवता की सेवा में लग गया।
समय का पहिया अपनी गति से यूँ ही चलता रहा और एक दिन, लगभग २ वर्षों पश्चात, महात्मा जी उसी गाँव से गुजरे, तब उन्हें उस निर्धन व्यक्ति की याद आई। वे सोचने लगे कि अब तो वह व्यक्ति निश्चित तौर पर बहुत तंगी में होगा क्योंकि उसने अपने भाग्य की सारी दौलत को एक साथ पा लिया था और अब उसे आने वाले जीवन में कभी भी कुछ नहीं मिलना था। इन्हीं विचारों के साथ महात्मा जी उस व्यक्ति को खोजते हुए, उसके घर पहुँच गए। लेकिन यह क्या! उस जगह तो झोपड़ी के स्थान पर महल बन गया था। महात्मा जी उसका वैभव देखकर आश्चर्य चकित हो गए। वे सोचने लगे कि भाग्य की सारी दौलत कैसे बढ़ गई? कुछ पलों बाद, जैसे ही उस व्यक्ति की नज़र महात्मा जी पर पड़ी, उन्होंने उससे यही प्रश्न पूछा कि‘भाग्य की दौलत बढ़ कैसे गई?’ वह व्यक्ति महात्मा जी को प्रणाम करते हुए पूरी नम्रता के साथ बोला, ‘महात्माजी, मुझे जो दौलत मिली थी, वह मैंने चन्द दिनों में ही ईश्वरीय सेवा में लगा दी थी। उसके बाद दौलत कहाँ से आई, मैं नहीं जनता। इसका जवाब तो परमात्मा ही दे सकता है।’
उस व्यक्ति की बात सुन महात्मा जी दुविधा में थे। वे समझ नहीं पा रहे थे आख़िर हुआ तो हुआ क्या। कुछ देर और वहाँ रुककर महात्मा जी वहाँ से गए और उस दिन संध्या ध्यान के समय परमात्मा से इस विषय में पूछने लगे तो उन्हें जवाब मिला ‘धन किसी का चोर ले जाये, किसी के धन में आग लग जाये। धन तो उसी का सफल हो जो उसे ईश्वर अर्थ में लगाए।।’ अर्थात् दोस्तों जब धन का उपयोग परमार्थ के लिए, जरूरतमंदों के लिए होता है, तो ईश्वर उसे और अधिक देता है। इसीलिए तो हमारे यहाँ कहा जाता है कि ‘सेवा का फल हमेशा मेवा होता है।’ अब तो आप निश्चित तौर पर समझ ही गए होंगे कि मैंने पूर्व में यह क्यों कहा था कि ‘भाग्य से अधिक पाना हो तो देना शुरू करो।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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