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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

स्वतंत्रता और ख़ुशी साथ-साथ चलते हैं…

Jan 23, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, हाल ही में मुझे एक संस्था द्वारा व्यवसायिक कंसलटेंसी के लिए आमंत्रित किया गया। जब मैंने संस्था प्रमुख से व्यवसायिक चुनौतियों के विषय में बात करी तो पता चला कि वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों में उत्साह की बेहद कमी है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया, उनके यहाँ अच्छी तनख़्वाह देने के बाद भी लोग ज़्यादा समय तक टिक नहीं पाते हैं। जब इस विषय में मैंने उनसे विस्तार में बात करी तो उन्होंने सारा दोष आज की पीढ़ी पर डालते हुए कहा कि उनमें जीवन मूल्यों की भारी कमी है और वे ज़रा से पैसों के लिए नौकरी छोड़ कर चले जाते हैं।


हालाँकि मैं उनके तर्कों से सहमत नहीं था, लेकिन फिर भी सही स्थिति समझने के लिए मैंने चुप रहने और उनके कर्मचारियों से मिलने का निर्णय लिया। जैसे-जैसे मैं कर्मचारियों से मिलता जा रहा था मुझे उनके व्यवसाय ना बढ़ने की वजह समझ आती जा रही थी। असल में उनके यहाँ कैरियर में आगे बढ़ने के लिए टैलेंटेड होने से ज़्यादा ज़रूरी चापलूस होना था और यही बात उनकी ग्रोथ ना होने की सबसे बड़ी वजह थी।


वैसे यह समस्या आमतौर पर कई भारतीय कम्पनियों में देखी जा सकती है। निश्चित तौर पर आप भी कई ऐसी संस्थाओं को जानते होंगे जहाँ ‘जी हजुरी’ याने हर बात में हाँ में हाँ मिलाने का कल्चर होता है। याने वहाँ सही और ग़लत, ज्ञान और टैलेंट से ज़्यादा महत्वपूर्ण वरिष्ठों की हाँ में हाँ मिलाना, याने चापलूसी करना होता है। ऐसी संस्थाओं में लोग जितने ज़्यादा चापलूस होते हैं, उनकी तरक़्क़ी की सम्भावना उतनी ही ज़्यादा होती है। ख़ैर वहाँ के माहौल को देख मैंने स्पष्ट चर्चा करने से पूर्व एक क़िस्सा सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार था-


बात कर्नाटक में कोम्बारू अभयारण्य से सटे इलाक़े की है। एक दिन शिकार करने के उद्देश्य से तेंदुआ जंगल के बाहरी इलाक़े में स्थित विश्राम गृह के समीप आ गया। वहाँ उसकी नज़र एक कुत्ते पर पड़ी, तेंदुए ने शिकार करने के उद्देश्य से कुत्ते का पीछा करना शुरू कर दिया। कुत्ता जान बचाने के लिए घबरा कर तेजी से भागा और विश्रामगृह के शौचालय की टूटी खिड़की से अंदर घुस गया। कुछ ही पलों पश्चात तेंदुआ भी अपने शिकार का पीछा करते हुए उसी खिड़की से विश्रामगृह में बने शौचालय में घुस गया। संयोग से उस शौचालय का दरवाज़ा बाहर से बंद था, इसलिए अब कुत्ता और तेंदुआ दोनों ही उस शौचालय फँस गए।


तेंदुए के रूप में अपनी मौत को सामने देख कुत्ता एकदम घबरा गया और घबरा कर शौचालय के एक कोने में दुबक कर बैठ गया। उसकी घबराहट का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उसने तेंदुए पर भौंकने की भी हिम्मत नहीं करी। दूसरी ओर तेंदुआ भी भूख से बेहाल होने के बाद भी अपने शिकार कुत्ते पर हमला नहीं कर रहा था। दोनों जानवर उस शौचालय के अलग-अलग कोनों में दुबक कर लगभग बारह घंटे तक ऐसे ही बैठे रहे।


तेंदुआ भूखा था और एक छलांग लगाकर उस शौचालय में कुत्ते का शिकार कर सकता था उसके बाद भी उसने कुत्ते को नहीं मारा। इन बारह घंटे तक तेंदुआ पूरी तरह शांत था। बाद में जब इस घटना का पता वन विभाग को चला तो उन्होंने तेंदुए को ट्रैंकुलाइजर डार्ट की सहायता से बेहोश किया और उसे पकड़ कर जंगल में छोड़ दिया।


सोच कर देखिएगा साथियों, तेंदुए के सामने ‘सरंडर’ अवस्था में उसका शिकार था, लेकिन फिर भी उसने उसे नहीं मारा, पता है क्यों? क्योंकि वन्यजीव शोधकर्ताओं के अनुसार जंगली जानवर अपनी स्वतंत्रता के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि उनकी आज़ादी छीन ली गई है, वे गहरे दुःख में चले जाते हैं। इसका सदमा इतना होता है कि सक्षम होने के बाद भी पेट भरने की उनकी स्वाभाविक प्रेरणा फीकी पड़ जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अपनी स्वतंत्रता उन्हें अपनी भूख से भी ज़्यादा प्यारी रहती है।


क़िस्सा पूर्ण होने के बाद मैं कुछ पल शांत रहा, फिर उन व्यवसायी की आँखों में आँखें डाल कर बोला, ‘सर, आपकी टीम के तेंदुए भी अपनी स्वतंत्रता खोने के कारण सक्षम होते हुए भी शिकार करने की अपनी प्रवृति को भूल बैठे हैं। जब तक आप अपने यहाँ चापलूसी के माहौल को ख़त्म कर योग्यता आधारित स्वतंत्र माहौल विकसित नहीं करेंगे, कम्पनी की ग्रोथ तेज़ गति से हो नहीं पाएगी।’


सोच कर देखिएगा साथियों, तेंदुआ जानवर होने के बाद भी अपनी स्वतंत्रता के लिए चिंतित था। हम तो इंसान है, साथ ही हमें यह भी पता है कि ईश्वर ने हमें सक्षम बनाया है, फिर थोड़ी सी तरक़्क़ी के लिए चापलूसी करते हुए, पालतू जानवरों के मुताबिक़ क्या जीवन जीना? याद रखिएगा, स्वतंत्रता और खुशी दोनों आपस में जुड़े हुए हैं, इसलिए थोड़े से लाभ के लिए अपनी इच्छानुसार सोचने, कार्य करने और जीने की स्वतंत्रता मत खोना।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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