Sep 16, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, पद और पैसे से प्रतिष्ठा पाने का प्रयास करना, मेरी नज़र में भौतिकवाद याने मैटेरियलिज्म का परिणाम है, जो मेरी नज़र में बिलकुल भी सही नहीं है। मैं अपने मत को आपसे साझा करूँ या उसे समझाऊँ उससे पहले मैं आपको संक्षेप में भौतिकवाद को समझा दूँ, भौतिकवाद याने इस बात से सहमत होना या इस बात का दावा करना कि इस दुनिया में हर चीज के अस्तित्व याने एक्सिस्टेंस के पीछे कोई ना कोई पदार्थ याने मटेरियल है। यह सिद्धांत मूल रूप से ग़ैर भौतिक संस्थाओं के अस्तित्व पर ही सवाल उठाता है। इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि याने इंटेलेक्ट से लेकर ग़ैर भौतिक संस्थाओं तक, सभी चीजों के अस्तित्व के पीछे भौतिक लाभ है। सीधे शब्दों में कहूँ तो भौतिकवाद हर चीज को उसके भौतिक मूल्य से जोड़कर देखता है और आजकल लोग इसी सिद्धांत को ज़्यादा तवज्जो दे रहे हैं यानी इसी सिद्धांत के आधार पर अपने जीवन को जी रहे हैं।
अब आप निश्चित तौर पर समझ पा रहे होंगे कि मैंने इस लेख के शुरू में यह क्यों कहा था कि ‘पद और पैसे से प्रतिष्ठा पाने का प्रयास करना, मेरी नज़र में भौतिकवाद याने मैटेरियलिज्म का परिणाम है।’ लेकिन अगर आप गहराई से इसे समझने का प्रयास करेंगे तो हक़ीक़त में भौतिकवाद से सम्मान पाने की धारणा को पूर्णतः ग़लत ही पायेंगे। जी हाँ साथियों, पद और पैसे की सहायता से प्रतिष्ठा पाना असंभव ही है। हाँ! यह ज़रूर संभव है कि पद और पैसे से आप स्वयं की मौजूदगी में लोगों से सम्मान और आदर की अपेक्षा रख सकते हैं। वैसे में इसे, उन लोगों याने पैसे वालों और भौतिक संसाधनों के मालिक के सम्मान से ज़्यादा उनकी संपत्ति के सम्मान के रूप में देखता हूँ।
दोस्तों, अगर आप वाक़ई में महान या सम्माननीय बनना चाहते हैं, तो आपको मूल रूप से इस भावना से सहमत होना पड़ेगा कि सम्मान ख़रीदा नहीं, कमाया जाता है। ठीक वैसे ही जैसे त्रेता युग में यदुवंशियों के यहाँ पैदा हुए एक बच्चे ने किया था। जिसे आज हम भगवान कृष्ण के रूप में जानते हैं। अगर आप भगवान श्रीकृष्ण के जीवन को गहराई से देखेंगे तो पायेंगे कि वे सिंहासन पर बैठकर महान नहीं बने थे। उन्होंने तो बचपन से ही अपनी क्रियाओं से लोगों के जीवन को आसान बनाने का प्रयास किया था, इसलिए वे सामान्य लोगों के हृदय में स्थान बना पाए थे। भगवान श्री कृष्ण के इस महानता भरे सेवा भावी कार्य ने उन्हें राज सिंहासन के साथ-साथ जन-जन के हृदय सिंहासन पर भी विराजमान कर दिया था।
इसलिए दोस्तों, सिंहासन पर बैठना जीवन की उपलब्धि हो अथवा ना हो, मगर किसी के हृदय में बैठना जीवन की वास्तविक उपलब्धि अवश्य है। इसीलिए हमारे यहाँ कहा जाता है कि ‘स्वभाव में ही किसी व्यक्ति का प्रभाव झलकता है।’ इसलिए दोस्तों मेरी राय तो यह है कि भौतिक लाभ के साथ-साथ हमें लोगों के हृदय को जीतने का भी प्रयास करना चाहिये क्योंकि अगर आपने किसी के हृदय में स्थान बना लिया इसका सीधा-सीधा अर्थ है, आपने उस व्यक्ति को जीत लिया और दोस्तों, हृदय या किसी व्यक्ति को जीतना निश्चित तौर पर भौतिक उपलब्धियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
इसलिए दोस्तों, मैं व्यवहार को पद और पैसे से ज़्यादा महत्वपूर्ण मानता हूँ। अच्छे व्यवहार और मदद करने के साथ-साथ सकारात्मक नज़रिये से आप अपने व्यक्तित्व को उदार और विशाल बनाकर अपने जीवन को सार्थक बना सकते है। इसीलिए दोस्तों भगवान कृष्ण की भाँति जन-जन के हृदय सिंहासन पर बैठने का प्रयास करें, ऐसा करते ही आप अपने आप महान बन जाएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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