Apr 13, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, कई साल पहले पाप और पुण्य एवं नर्क और स्वर्ग के विषय में एक महत्वपूर्ण सीख मिली थी जिसने मेरे जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया था। असल में मेरे मित्र और मैं जीवन प्रबंधन विषय पर चर्चा कर रहे थे। बातों ही बातों में मेरे मित्र मुझसे बोले, ‘यार, जिस कार्य को करने में अंतर्मन साथ ना दे वह पाप है और जो कार्य तुम पूर्ण जागरूकता के साथ कर पाओ वह पुण्य है।’
मैंने इससे पूर्व पाप और पुण्य की इससे सरल परिभाषा नहीं सुनी थी। इसलिए मैंने इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए उससे पूछ लिया फिर तुम्हारी नज़र में स्वर्ग और नर्क क्या है? मित्र कुछ पलों के लिए शांत रहे फिर बोले, ‘यार, पूर्व जन्म के बारे में मुझे कुछ याद नहीं है। इसी आधार पर मैं मान कर चल रहा हूँ कि अगले जन्म में भी मुझे कुछ याद नहीं रहने वाला है और रही बात मरने से अगले जन्म के बीच की तो उस विषय में भी कुछ कहना सम्भव नहीं है। इसलिए मेरा तो मानना है कि स्वर्ग और नर्क दोनों ही हमें हमारे इसी जीवन में भोगने हैं।’
दोस्तों, मित्र की बात में दम था। मरने के बाद क्या होगा? हमें क्या मिलेगा? हमें क्या पता! लेकिन इस जीवन में जो कुछ भी घटेगा उसका सीधा-सीधा फ़ायदा हमारे जीवन के स्तर को बेहतर या बदतर बनाएगा। इसलिए दोस्तों, मरने के बाद स्वर्ग मिलना हमारा अचीवमेंट हो ना हो, लेकिन अपनी ज़िंदगी में स्वर्ग जैसी परिस्थितियों का निर्माण कर लेना, अवश्य हमारे जीवन की महान उपलब्धि हो सकती है।
सोच कर देखिएगा दोस्तों, ज़िंदगी में शांति और आनंद का होना ही वास्तव में स्वार्गिक अनुभूति है, बल्कि यह कहना ज़्यादा बेहतर होगा कि हमारे जीवन की शांति और आनंद ही वास्तविक स्वर्ग है। इस आधार पर देखा जाए तो नर्क भी वह स्थान नहीं बचेगा जहाँ बुरा कार्य करने वाले लोग मरने के बाद जाते हैं। अपितु नर्क तो वह स्थान है जहाँ पर जीवित लोगों द्वारा ग़लत कार्य किए जाते हैं। अर्थात् दोस्तों, अगर कोई व्यक्ति छल-कपट करते हुए या दूसरों के साथ दुर्व्यवहार या अत्याचार करते हुए जीवन जीता है असल में वह व्यक्ति नारकीय जीवन जीता है। आप स्वयं सोच कर देखिएगा साथियों, जहाँ पर छल-कपट से दूसरों को जीवन में आगे बढ़ने से या ऊपर चढ़ने से रोका जाता है; जहाँ पर दूसरों को गिराने की योजनाएँ बनाई जाती हैं; जहाँ पर प्यार का स्थान ईर्ष्या ले लेती है, वह स्थान नर्क नहीं तो और क्या होगा?
जी हाँ दोस्तों, जिस माहौल में अंतर्मन सकारात्मक रहे अर्थात् हमारे कर्म हमारी अंतरात्मा के अनुसार हों, वह स्वर्ग और जहाँ अंतर्मन में कर्मों के कारण अंतरद्वन्द हो अर्थात् हमारी आत्मा हमारे कर्मों के ख़िलाफ़ हो, वो नर्क। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो स्वर्ग अर्थात् वह वातावरण जिसका निर्माण हमारे सद्कर्मों, सद्गुणों और सदप्रवृत्तियों द्वारा होता है एवं नर्क अर्थात् वह स्थान जहाँ के वातावरण का निर्माण हमारी दुष्प्रवृत्तियों और हमारे दुर्गुणों द्वारा होता है।
इसलिए दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य स्वर्ग में रहना है तो अपने कर्मों को स्वर्ग के नियमों के अनुसार बना लें क्योंकि मारने के बाद हम कहाँ जाएँगे से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हमने अपने जीवन को किस परिवेश में जिया।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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