May 6, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अक्सर हम स्वार्थीपन को बुरा और परमार्थी होने को अच्छा मान कर चलते हैं। लेकिन मेरा मानना इस विषय में थोड़ा अलग है। मुझे तो लगता है कई बार परमार्थी बनने जैसे उद्देश्य के लिए देश-काल-परिस्थिति को देखते हुए आपको स्वार्थी भी बनना पड़ता है। इसका अर्थ हुआ दोस्तों, समय के अनुसार स्वार्थ और परमार्थ की हमारे लिए उपयोगिता या परिभाषा बदल सकती है और साथ ही साथ दोनों ही बातों के अपने अलग-अलग फ़ायदे और नुक़सान हो सकते हैं। जैसे शिक्षा लेते समय छात्र का स्वार्थी होना ज़रूरी है, लेकिन एक वयस्क मनुष्य का समाज के हितों के लिए परमार्थी होना। ठीक इसी तरह व्यवसाय करते वक्त आपका स्वार्थी होना कुछ हद तक सही हो सकता है, लेकिन अपनी दौलत का उपयोग करते वक्त आपका परमार्थी होना आवश्यक है।
इसी आधार पर दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था, ना तो स्वार्थी होने से जीवन चल सकता है और ना ही सिर्फ़ परमार्थी होने से। इस आधार पर कहा जाए तो परिस्थिति और प्राथमिकताओं के अनुसार आपको अपने रोल को बदलना पड़ता है। इसीलिए मैं अक्सर लोगों से कहता हूँ, बनना है तो नमक की तरह बनो, ना तो कोई ज़्यादा इस्तेमाल करेगा और ना ही कोई आपके बग़ैर काम चला पाएगा। आपके इस तरह के व्यवहार के कारण हो सकता है, कुछ लोगों को आपका व्यवहार कभी-कभी रूखा लगे, लेकिन ऐसी स्थिति में आपको सोचना है कि आपके लिए क्या ज़रूरी है, आपकी प्राथमिकताएँ या सभी लोगों को खुश रखना। यक़ीन मानिएगा मैं स्वयं हर इंसान को खुश रखने की इस बीमारी से ग्रसित हूँ। इसीलिए इसके नुक़सान को अच्छी तरह जानता हूँ और इस बारे में आपसे इतने स्पष्ट शब्दों में बात कर पा रहा हूँ।
दोस्तों, अगर आप अपने जीवन को खुलकर जीना चाहते हैं तो मेरे इस सुझाव पर ज़रूर गौर करिएगा। हम सभी हर पल अपने जीवन या यूँ कहूँ, नई ज़िंदगी की शुरुआत करते हैं। ईश्वर हमें हर पल इस ज़िंदगी को खुलकर जीने का एक मौक़ा देता है। इसलिए हर दिन; हर पल की शुरुआत स्वार्थ और परमार्थ, अच्छे और बुरे से ऊपर उठ, प्रफुल्लित मन से, ईश्वर का धन्यवाद देते हुए करें। जब आप हर पल ईश्वर के आभारी रहते हुए उनकी प्रार्थना करते हैं, तब आप शांत भाव के साथ जीना शुरू करते हैं और यह नया भाव, एक नई आस; नई शुरुआत देता है।
अच्छे-बुरे, स्वार्थ-परमार्थ, परिस्थितियों की अनुकूलता और प्रतिकूलता के ऊपर उठ कर कार्य करना आपको परमात्मा द्वारा दी गई असीम शक्तियों को पहचान पाने, उन्हें जाग्रत करने में मदद करता है। जब आप ईश्वर प्रदत्त छुपी हुई असीम शक्तियों को पहचान कर जाग्रत कर लेते हैं, तब बाहरी सहायता की आवश्यकता ही खत्म हो जाती है। यह स्थिति ईश्वर के प्रति आपकी आस्था और समर्पण को और बढ़ा देती है और आप अपनी बढ़ी हुई आस्था और समर्पण के भाव के साथ, सब कुछ परमात्मा के हाथ में छोड़ कर, अच्छे-बुरे या स्वार्थ-परमार्थ या दुनियादारी से ऊपर उठकर, प्राथमिकताओं के आधार पर कार्य करना; अपना सर्वश्रेष्ठ देना शुरू कर देते हैं। आप यह जान जाते हैं कि सुख या दुःख अतिथि की भाँति हमारे जीवन में आएँगे और वापस चले जाएँगे। वैसे भी गहराई से सोचा जाए तो सुख और दुःख दोनों ही हमें खुलकर जीने के लिए आवश्यक अनुभव देने के लिए आते हैं। तो आइए दोस्तों, आज से उपरोक्त बातों के अनुसार जीवन जीने का प्रयास करते हैं और मिलकर कहते हैं, ‘ज़िंदगी ज़िंदाबाद!!!’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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