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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सौम्य व्यवहार, सद्कर्म और सद्गुण आपको महान और सफल बनाते हैं…

July 21, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अपनी असफलता या नाकामी के लिए दूसरों को दोष देना, उनकी ग़लतियाँ निकालना वाक़ई में बहुत आसान है। इसलिए ही इस दुनिया में आपको हर दूसरा इंसान किसी ना किसी बात के लिए किसी ना किसी को दोष देता हुआ दिख जाएगा। जबकि वह जानता है कि इस जगत में हमें जो कुछ भी प्राप्त होता है, वो हमारे कर्मों का ही परिणाम होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो हर इंसान यह जानता है कि इस जगत में बिना हाथ हिलाये कुछ नहीं होता। अगर आपको एक तिनके के भी दो टुकड़े करने हों तो उसके लिए भी आपको अपने हाथों का प्रयोग करना होगा।


लेकिन इस दुनिया में कई लोग यह सब पता होने के बाद भी कुछ करे बिना ही क़िस्मत बदलने के इंतज़ार में बैठे रहते हैं। वे अपनी चाहत या लक्ष्य को भाग्य के भरोसे छोड़ कर बैठ जाते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में अगर चुनौती, विपत्ति या विपरीत परिस्थिति आ जाए तो यह लोग दूसरों से सहानुभूति, दया और करुणा की अपेक्षा करते हैं। ऐसे लोग सामान्यतः अपनी बुद्धि और विवेक से काम नहीं लेते हैं और परिणामस्वरूप अपनी निजता खो बैठते हैं।


जी हाँ दोस्तों, इस दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे जो स्वयं विचार करना जानते हों और जो विचार करना नहीं जानता है वह सदा भाग्य को कोसते या दोष देते हुए जीवन जीता है। ऐसे लोगों के जीवन का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो सकता। आप स्वयं सोच कर देखिए, जो इंसान हमेशा दूसरों के सहारे पर निर्भर रहता है, वह किसी भी बात पर दृढ़ कैसे रह सकता है? जी हाँ ऐसे लोग कभी किसी बात का निश्चय नहीं कर पाते हैं। कुल मिलाकर कहूँ तो ऐसे लोग इस बात का इंतज़ार करते हैं कि ‘ख़ुदा जब देगा, छप्पर फाड़ कर देगा।’


ऐसे सभी लोगों से मैं एक ही बात कहना चाहूँगा, यह बिलकुल सही है कि ‘ख़ुदा जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।’, लेकिन उसके लिए हमें पहले छप्पर बनाना पड़ता है। याद रखियेगा, जिस तरह लोहा गलकर तो, सोना तपकर निखरता है। ठीक इसी तरह इंसान परिश्रम के तप से निखरता है; इस दुनिया में अपनी पहचान बना पाता है। लेकिन उपरोक्त उदाहरण में एक बात बड़ी महत्वपूर्ण है, सोना अपने आप भट्टी में तपने या निखरने नहीं जाता है। वह तो ख़ुद को जौहरी के हाथों में समर्पित कर देता है, फिर जौहरी उससे मूल्यवान आभूषण बनाने के लिए उसे पहले अग्नि में तपाता है, फिर उसे पीटता है और स्वर्ण यह सब बिना विरोध किए चुपचाप सहता है। जौहरी के प्रति समर्पित रहना, उस स्वर्ण की क़ीमत को और ज़्यादा बढ़ा देता है।


ठीक इसी तरह जो इंसान अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहकर, सहना सीख जाता है याने समर्पण और सहनशीलता के भाव के साथ अपने लक्ष्य की दिशा में लगातार काम करता है, वह सफल हो जाता है। अर्थात् लक्ष्य के प्रति समर्पित लोगों को अगर कोई कटु वचन कहेगा, तो यह उसे सह लेंगे; अगर कोई इनको यथोचित सम्मान नहीं देगा, तो यह उसे भी सह लेंगे। याने इनके मनोनुकूल कोई कार्य ना हो तो यह लोग हंसते हुए उन बातों को सह लेते हैं और साथ ही कभी कोई इनकी आलोचना करता है तो यह मौन धारण कर लेते हैं। याद रखियेगा, जीवन में श्रेष्ठ पथ की ओर बढ़ेंगे तो आलोचनाओं का सामना भी अवश्य होगा। आलोचनाओं के प्रहार को सहे बिना जीवन की श्रेष्ठता के पथ पर आगे बढ़ पाना आसान नहीं। सहनशील और समर्पित रहना, समाज में इंसान की उपयोगिता और मूल्य दोनों को बढ़ा देता है।


जी हाँ दोस्तों, जिस तरह तपाकर, पीटकर काटकर और घिसकर स्वर्ण की परख होती है, उसी तरह त्याग, सहनशीलता, सद्गुण एवं सद्कर्म से ही महापुरुषों की पहचान होती है। जो परहित के लिए स्वयं के सुख एवं संपत्ति को त्यागना जानते हैं, जिनका व्यवहार सदैव सौम्यता से भरपूर है, सद्गुण ही जिनके जीवन की प्राप्ति एवं सद्कर्म ही जिनके जीवन का ध्येय है, वही लोग तो महापुरुष होते हैं। दोस्तों जीवन में महान और सफल बनाना है तो उपरोक्त बातों को जीवन में अपनाना ही होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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