July 5, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत बचपन में सुनी एक कहानी से करते हैं। गाँव के समीप ही एक बहुत घना जंगल था, जिसमें कई सारे जंगली जानवर रहा करते थे। इन्हीं जानवरों में जंगल का राजा शेर भी था। एक दिन जब शेर शिकार के लिए जा रहा था तब वह शिकारी द्वारा लगाए गए पिंजड़े में फँस गया। शुरू में तो शेर ने अपनी पूरी ताक़त से उस पिंजड़े को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पायी। उस पूरी रात शेर ने परेशानी के साथ उसी पिंजरे में भूखे-प्यासे गुज़ारी।
अगले दिन सुबह तक शेर को एहसास हो चुका था कि पिंजरे से छुटकारा पाना उसके बस की बात नहीं है। इसलिए उसने जंगल से गुजरने वाले हर राहगीर से गुज़ारिश करना शुरू कर दिया कि वे उसे पिंजरे से आज़ाद करा दें। लेकिन कोई भी इंसान खुद की जान को जोखिम में डालकर उस ख़ूँख़ार शेर को आज़ाद कराने के लिए राज़ी नहीं था। हारकर शेर ने रास्ते से गुजरने वाले लोगों से विनती करना शुरू किया कि कम से कम वे उसके लिए पीने के पानी और अगर सम्भव हो तो कुछ भोजन का इंतज़ाम करा दें। शेर की विनती का असर वहाँ से गुजरने वाले एक भोले-भाले आदमी पर हुआ और उसने शेर को पीने के लिए पानी और खाने के लिए मांस दिया।
अपनी भूख-प्यास शांत कर शेर बड़े गिड़गिड़ाते हुए उसे भोले इंसान से बोला, ‘भाई, मुझे इस पिंजरे से आज़ाद करा दो। अन्यथा मेरा पूरा जीवन ऐसे ही बर्बाद हो जाएगा।’ शेर की बात सुनते ही भला इंसान एकदम से बोला, ‘नहीं! नहीं! यह सम्भव नहीं है, तुम एक मांसाहारी जीव हो। आज़ाद होते ही तुम मेरा शिकार करोगे। नहीं भाई, मैं यह जोखिम किसी हाल में नहीं ले सकता।’ इतना कहकर वह इंसान अपने रास्ते जाने लगा। शेर ने मासूम बनते हुए बड़ी मंद आवाज़ में कहा, ‘मैं तुम्हें कैसे नुक़सान पहुँचा सकता हूँ? तुमने तो मेरी जान बचाई है। मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को कभी भी नुक़सान नहीं पहुँचाऊँगा।’
वह भोला-भाला व्यक्ति शेर की बातों में आ गया और उसने पिंजरा खोल दिया। शेर ने बाहर आते ही चैन की साँस ली और बोला, ‘मैं अभी तक भूखा हूँ और भोजन भी सामने है। अब झट से तुझे अपना शिकार बना लेता हूँ।’ शेर की बात सुन वह भोला आदमी डर गया और काँपते हुए बोला, ‘तुमने तो मुझे ना मारने का वादा किया था। अब तुम बेईमानी कैसे कर सकते हो?’ शेर कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘मैं तो अपने चरित्र के अनुसार ही व्यवहार कर रहा हूँ। मैं तो मांसाहारी प्राणी ही हूँ, इसमें ग़लत क्या है?’ शेर की बात सुन वह आदमी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा था और अब तो उसे अपनी मौत सामने नज़र आने लगी थी। उसने एक बार फिर गिड़गिड़ाते हुए जान की भीख माँगी, लेकिन शेर पर उसका कोई असर नहीं हुआ।
दोस्तों, कई बार जीवन में आपका सामना ऐसे ही विकृत प्रवृति के लोगों से हो जाता है जो आपके द्वारा किए गए उपकार, मदद, भावनात्मक साथ आदि को भूल जाते हैं और अपनी प्रवृति या चरित्र के मुताबिक़ आपको डील करते हैं। ऐसे लोगों को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वे सच बोलने का दिखावा कर अंततः आपके विश्वास को तोड़ रहे हैं। उन्हें तो बस उनके मुनाफ़े की चिंता रहती है। ऐसी स्थिति में क्या किया जाए, किस तरह खुद का भावनात्मक, भौतिक, सामाजिक और कई बार शारीरिक नुक़सान होने से बचाया जाए, यही मुख्य प्रश्न है दोस्तों। तो मेरा सुझाव है, सर्वप्रथम भावनाओं के आधार पर जीवन जीने के स्थान पर उसूल आधारित जीवन जीना सीखें। अर्थात् अपने जीवन को अपने बनाए नियमों के आधार पर जीना शुरू करें। ऐसे में आपको लोगों को परखने के लिए समय मिल जाता है और आप उन्हें उनकी बातों से नहीं, बल्कि चरित्र से पहचानना शुरू कर देंगे। दूसरी बात मदद करते वक्त इतना ध्यान रखना ज़रूरी है कि कहीं की गई मदद आपके लिए ही तो दुविधा का कारण नहीं बन रही। अगर बन रही है तो आपको ऐसे लोगों से दूर रहना सीखना होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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