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हमारे कर्म ही हमें सुखी या दुखी बनाते हैं…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 26, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसे प्रश्न से करते हैं जिसने कभी ना कभी हमें चिंतित किया है या हमारे अंदर उत्सुकता पैदा की है। एक ही दिन, एक ही समय पर इस दुनिया में जन्में लोगों की जन्म पत्रिका समान होने के बाद भी उन सभी लोगों का भाग्य अलग-अलग क्यों होता है?, अगर हम अपने जीवन को ग्रह-नक्षत्रों का खेल मानें तो समान दिन और स्थान पर जन्म लेने वालो का भाग्य भी समान होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्या हमारे कर्म हमारा भाग्य तय करते हैं? चलिए एक कहानी से इसे समझने का प्रयास करते हैं-


बात कई साल पुरानी है, राजा के सजे हुए दरबार में आज ढेरों नामी विद्वानों और ज्योतिषियों की भीड़ मौजूद थी। लेकिन इसके बाद भी राज दरबार का माहौल थोड़ा गंभीर था क्योंकि राजा के पूछे गए प्रश्न ने इन सभी को दुविधा में डाल दिया था। असल में राजा जानना चाहते थे कि ज्योतिषियों ने उनकी पत्रिका देख बताया था कि उनकी पत्रिका में राज योग है, इसलिए वे राजा बने। लेकिन उसी क्षण इसी राज्य में और भी बहुत सारे बच्चों ने जन्म लिया था, जिनकी पत्रिका में भी राजयोग होगा, फिर वे राजा क्यों नहीं बन पाए?’


जब काफ़ी देर तक कोई भी विद्वान या ज्योतिष संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया, तो एक वृद्ध ने कहा, ‘महाराज, आपके इस प्रश्न का सटीक उत्तर तो राज्य के उत्तर में स्थित जंगल में तपस्या कर रहे महात्मा जी ही दे सकते हैं।’ चूँकि राजा की जिज्ञासा इस विषय में काफ़ी बढ़ी हुई थी, इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों को साथ लिया और घने जंगलों की ओर बढ़ गए। काफ़ी लंबी यात्रा के बाद जब वे जंगल में वृद्ध के बताये स्थान पर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठे हुए हैं और अंगार खा रहे हैं। राजा ने थोड़े संकोच के साथ अपना प्रश्न उनसे पूछा। जिसपर महात्मा जी थोड़ा नाराज हो गए और चिढ़ते हुए बोले, ‘मैं भूख से पीड़ित हूँ और साथ ही अपनी भूख मिटाने में व्यस्त हूँ। मेरे पास तुम्हारे प्रश्न का जवाब देने के लिए समय नहीं है। अगर उत्तर चाहते हो तो पहाड़ियों के पार एक और महात्मा हैं, उनसे पूछो।’


राजा ने उन्हें प्रणाम किया और उनके बताए रास्ते पर आगे बढ़ गए और पहाड़ी का कठिन रास्ता पार कर दूसरे महात्मा के पास पहुँच गए। लेकिन वहाँ का विचित्र दृश्य देख वे थोड़ा डर गए। महात्मा जी वहाँ अपने ही चिमटे से अपना मांस नोच-नोचकर खा रहे थे। डरते-डरते महाराज ने उनसे अपना प्रश्न दोहरा दिया। प्रश्न सुन महात्मा जी झुंझलाते हुए बोले, ‘मैं भूख से व्याकुल हूँ, मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं है। अगर तुम उत्तर चाहते हो तो आगे जाओ। पहाड़ों के उस पार गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है। वह कुछ ही देर जीवित रहेगा, वही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देगा।’


राजा के लिए यह सब घटनाक्रम किसी पहेली की तरह था, जिसने उनकी उत्सुकता को चरम तक पहुँचा दिया था। इसलिए उन्होंने ने ठान लिया था कि अब वे अपने प्रश्न का उत्तर लेकर ही लौटेंगे। वे पहाड़ी को पार कर महात्मा द्वारा बताये गाँव में पहुँचे और बालक के जन्म की प्रतीक्षा करने लगे। सूर्योदय के समय जैसे ही बालक का जन्म हुआ वे उसे महाराज के पास लाए। महाराज को देखते ही वह बालक मुस्कुराते हुए बोला, ‘राजन! मेरे पास बहुत कम समय है, इसलिए मेरी बात ध्यान से सुनो। अंगार खाने वाले महात्मा, मांस खाने वाले महात्मा, मैं और तुम, पिछले जन्म में चार भाई थे। एक बार जंगल में शिकार खेलते वक्त हम लोग भटक गए थे और दो दिनों तक भूखे-प्यासे इधर-उधर भटकते रहे। तभी अचानक हमें आटे की एक पोटली मिली, जिसकी हमने बाटियाँ बनाई और एक पेड़ के नीचे खाने बैठे। तभी एक भूखे-प्यासे महात्मा जी आए और हमसे भोजन मांगने लगे। जब उन्होंने अंगार खाने वाले भाई से मांगा, तो वह गुस्से में बोला, ‘यह अगर तुम्हें दे दूँगा तो क्या मैं अंगार खाऊँगा?' फिर महात्मा जी मांस खाने वाले भाई के पास गए, तो वह बोला, ‘अगर तुम्हें बाटी दे दूँगा, तो क्या मैं अपना मांस खाऊँगा?’ महात्मा जी फिर तीसरे भाई याने मेरे पास आए तो मैंने उनसे कहा, अगर मैं तुम्हें यह दे दूँगा तो मुझे ख़ुद को भूखा मरना पड़ेगा।’ तब वे अंत में तुम्हारे पास आए और तब तुमने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी आधी बाटी उसे दे दी थी। तब महात्मा ने तुम्हें आशीर्वाद देते हुए कहा था, ‘तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्मों और व्यवहार से ही फलेगा!’

इतना कहकर बालक एक क्षण के लिए रुका फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘राजन! यही कारण है कि आज तुम राजा हो, और वे तीनों अपने कर्मों के अनुसार अपने भाग्य का भोग कर रहे हैं। एक ही घड़ी-मुहूर्त में जन्म लेने के बावजूद भाग्य अलग-अलग होते हैं, क्योंकि यह हमारे कर्मों पर निर्भर करता है।’ इतना कहकर उस बालक की मृत्यु हो गई। राजा ने उसी क्षण स्वीकार किया कि ज्योतिष केवल ग्रह-नक्षत्रों का विज्ञान नहीं, बल्कि हमारे कर्मों का प्रतिबिंब भी है।


दोस्तों, कहने की जरूरत नहीं है कि हमारा भाग्य सिर्फ जन्म पत्रिका से नहीं, बल्कि हमारे कर्मों से बनता है। जो जैसा कर्म करेगा, वैसा ही भोगेगा। इसी बात को समझाते हुए रामचरितमानस में कहा है, ‘सुभ अरु असुभ करम अनुहारी,ईसु देइ फलु हृदयँ बिचारी।’ अर्थात् अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार ही हमारे जीवन में सुख-दुख आते हैं। इसीलिए दोस्तों मेरा मानना है कि भाग्य से ज्यादा, आपके कर्म, आपकी तक़दीर लिखते हैं!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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