May 16, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मुझे लगता है हमारे जीवन के सारे नकारात्मक भावों के पीछे ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण के भाव का ना होना है। कहने के लिए हम सब बोलते तो हैं कि ‘दुनिया में जो भी होता है, वो ईश्वर की योजना और इच्छा के अनुरूप होता है।’ लेकिन जब कोई घटना हमारी इच्छा या योजना के ख़िलाफ़ हो जाती है, तो हम इस बात को भूल, नकारात्मक भावों के शिकार होकर, दोष देना शुरू कर देते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।
एक दिन रामू का पूरा दिन बहुत ही ख़राब गुजरा। रात को उसने अपने पूरे दिन को याद करते हुए ईश्वर से कहा, ‘प्रभु नाराज़ ना हों, तो एक बात पूछूँ?’ भगवान ने एकदम शांत भाव से मुस्कुराते हुए कहा, ‘ज़रूर वत्स! जो पूछना चाहते हो, वो पूछो।’ रामू बोला, ‘प्रभु, आपने आज मेरा पूरा दिन ख़राब क्यों करा?’ भगवान पूर्व की ही तरह मुस्कुराते हुए एकदम शांत भाव से बोले, ‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है रामू?’ रामू थोड़ा खिन्न स्वर में बोला, ‘सुबह अलार्म नहीं बजा इसलिए उठने में थोड़ी देरी हो गई।’ भगवान बोले, ‘तो!’ रामू बोला, ‘तो क्या? मैं अपने कार्य पर जाने में थोड़ा लेट हो गया। उसके बाद मेरी गाड़ी ख़राब हो गई; और तो और मुझे रिक्शा भी बड़ी मुश्किल से मिला। जैसे-तैसे कार्यालय पहुँचा तो वहाँ भी दिन की शुरुआत अधिकारी की चार बातें सुनकर हुई। कुल मिला कर कहूँ तो एक भी चीज मनमाफिक नहीं थी।’
भगवान बोले, ‘अच्छा, फिर…’ रामू बोला, ‘प्रभु, इस जल्दबाज़ी में मैं अपना टिफ़िन नहीं ले जा पाया। लंच के समय कैंटीन बंद मिली। बड़ी मुश्किल से पास की एक दुकान पर सैंडविच मिला, वह भी अच्छा नहीं था। आज पूरा दिन ऐसे ही गुजरा है।’ भगवान अभी भी मुस्कुरा रहे थे। रामू ने शिकायती लहजे में अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘शाम को घर आते वक़्त एक फ़ोन आया, सुन कर ऐसा लग रहा था मानो आज मुझे कोई बड़ा मुनाफ़ा मिलने वाला है। मैं उस व्यक्ति की पूरी बात सुन पाता उसके पहले ही मेरा फ़ोन अपने आप ही बंद हो गया।’ भगवान बोले, अच्छा… फिर…’ रामू बोला, ‘घर आया तो पता चला आज बाई नहीं आई थी। इसलिए साफ़-सफ़ाई कर खुदने ही खाना बनाया और अंत में सोचा कि अब जाकर आराम से ए.सी. चलाकर सो जाता हूँ, तो लाइट चली गई।’ इतना कहकर एक पल के लिये रामू रुका फिर ठंडी साँस लेते हुए बोला, ‘प्रभु, एक ही दिन में सारी तकलीफें मुझे ही, ऐसा क्यों किया आपने मेरे साथ?’
भगवान उसी शांत भाव के साथ मुस्कुराते हुए बोले, ‘वत्स! आज तुम पर कोई आफ़त आई थी। मैंने अपने देवदूतों को भेजकर उन्हें रुकवाया। आज तुम्हारा अलार्म बजने से और गाड़ी को चालू होने से मैंने ही रोका था क्योंकि आज गाड़ी से एक्सीडेंट होने का डर था। कैंटीन का खाना आज ख़राब था, उसे खाने से तुम्हारा स्वास्थ्य ख़राब हो सकता था। इसलिए मैंने तुम्हें उसे खाने से रोका। और जो तुम फ़ोन पर बड़े मुनाफ़े वाली बात कर रहे थे ना, असल में वो तुम्हें एक घोटाले में फँसाने की साज़िश थी। मेरे द्वारा फ़ोन बंद कर देने के कारण तुम उससे बच गए। इतना ही नहीं घर में शॉर्ट सर्किट से आग लग सकती थी और सोये हुए होने के कारण तुम्हें नुक़सान पहुँचा सकती थी। इसलिए मैंने बिजली बंद कर दी थी। कुल मिलाकर कहूँ तो आज मैंने जो कुछ भी किया तुम्हें सुरक्षित रखने के लिए ही किया था।’
दोस्तों अगर आप गौर करेंगे तो पाएँगे जितनी बातें रामू को तकलीफ़ दायी लग रही थी, असल में वे सब भगवान ने उसके जीवन को बचाने के लिए की थी। असल में ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव ना होने के कारण हम अक्सर शिकायत करते याने असंतुष्ट रहते हुए जीवन जीते हैं। इसके स्थान पर अगर हम ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास कर जीवन जिएँ तो यकीनन खुश और सुखी रहते हुए शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।
इसके लिए दोस्तों, हमें ख़ुद को विश्वास दिलाना होगा कि ईश्वर हमारे लिए जो भी योजना बनाता है; हमारे जीवन में जो भी घटनायें घटित करते हैं, वे सब हमारी बेहतरी के लिए होती है। बस कई बार हमें यह बात लंबे वक्त के बाद समझ आती है। इसलिए दोस्तों, हर पल शंका के साथ जीने या फिर सभी चीजों का भार हर पल अपने कंधे पर रख परेशान होने के स्थान पर सब कुछ ईश्वर पर छोड़ कर जीवन जीना शुरू कर दें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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