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हर पल याद रखो की तुम अकेले नहीं हो…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 12, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, स्थिति कितनी भी विकट क्यों ना हों; आप ढेरों परेशानियों, दुविधाओं, असहनीय पीड़ाओं से घिरे क्यों ना हों; आप कितना भी अकेलापन क्यों ना महसूस कर रहे हों लेकिन याद रखियेगा दोस्तों, हक़ीक़त में आप कभी भी अकेले नहीं हैं। चलिए अपनी इस बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-


एक सर्द रविवार की सुबह 10-11 वर्षीय राजू अपने पिता, जो कि एक मंदिर में पुजारी थे, से कहता है, ‘पिताजी, मैं पूरी तरह तैयार हूँ।’ पिता ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में उससे पूछा, ‘किस लिये?’ तो वह बालक मुस्कुराते हुए बोला, ‘भूल गए क्या पिताजी आज रविवार है और हर रविवार की तरह हमें आज भी गाँव वालों को ईश्वरीय शक्ति और ऊर्जा के विषय में जागरूक करने जाना था।’ बच्चे की बात सुन पिता बोले, ‘बेटा, आज ठंड बहुत ज़्यादा है और बीच-बीच में हल्की बारिश भी हो रही है।’ बेटा आश्चर्य से पिता की ओर देखते हुए बोला, ‘लेकिन पिताजी ठंड और बारिश के बीच भी लोगों का ईश्वरीय शक्ति और ऊर्जा के विषय में जानना ज़रूरी है।’ पिता ने एक बार फिर बेटे को टालते हुए बोला, ‘बेटा, मेरी तबियत ठीक नहीं है और मैं इस मौसम में बाहर नहीं जा सकता हूँ।’


पिता की बात सुन बच्चा निराश था। उसने एक और प्रयास करते हुए पिता से कहा, ‘तो फिर क्या मैं अकेला जाकर लोगों को जागरूक कर सकता हूँ?’ पिता एक पल के लिये ख़ामोश रहे फिर कुछ सोचते हुए बोले, ‘ठीक है बेटा, तुम जा सकते हो लेकिन थोड़ा सतर्क और सावधान रहना व काम पूरा होते ही वापस आ जाना और हाँ लोगों को जागरूक करने के लिए आवश्यक पर्चे यह रहे।’ बच्चे ने पिता को धन्यवाद कहा और पर्चे लेकर सर्द हल्की बारिश वाले मौसम में निकल पड़ा।


उस दिन 10-11 साल का वह बच्चा अकेला ही गाँव की गलियों में घूम-घूम कर लोगों को पर्चा देते हुए ईश्वरीय शक्ति के बारे में जागरूक करने लगा। ठंड और बारिश में लगभग 2 घंटे तक पर्चे बाँटने के बाद, हाथ में अंतिम पर्चा लिए वह सोचने लगा कि इसे, किसे दिया जाए क्योंकि उसे उस इलाक़े अब कोई और व्यक्ति नज़र ही नहीं आ रहा था। कुछ देर विचार करने के बाद वह सुनसान सड़क पर चलता हुआ एक पुराने से घर तक पहुँचा और घंटी बजाने लगा। लेकिन उसके इस प्रयास के बाद भी कोई बाहर नहीं आया।


कई बार प्रयास करने के बाद भी जब किसी ने घर का दरवाज़ा नहीं खोला तो उस बच्चे ने वापस जाने का निर्णय लिया। लेकिन उसी पल उस बच्चे को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया और उससे कहा, ‘थोड़ा और प्रयास करो।’ बच्चा वापस से दरवाज़े की ओर पलटा और इस बार घंटी बजाने के साथ-साथ ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा भी ठोकने लगा। जल्द ही उसे अपने इस प्रयास का परिणाम मिला और एक बुजुर्ग महिला ने धीमे से आकर दरवाज़ा खोला। बच्चे ने चमकती आँखों, मुस्कान और पूरी ऊर्जा के साथ पर्चा देते हुए कहा, ‘माताजी, अगर मैंने आपको परेशान किया हो तो मुझे माफ़ कीजियेगा। मैं आपको केवल यह बताना चाहता था कि भगवान वास्तव में आपसे प्यार करते हैं। आप इस पर्चे को अवश्य पढ़ियेगा, यह आपको भगवान और उनके महान प्रेम के बार में जागरूक करेगा।’ बुजुर्ग अम्मा ने बच्चे को धन्यवाद कहते हुए आशीर्वाद दिया और बच्चा भी अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे से निभा पाने के कारण खुश होकर घर लौट आया।


वह सप्ताह ऐसे ही बीत गया। अगले रविवार गाँव में आयोजित धर्म सभा में पंडित जी ने अपनी बात कहने के पश्चात लोगों को संबोधित करते हुए कहा, ‘अब आप में से कोई अपना अनुभव साझा करना चाहता हो, तो कर सकता है।’ सभा की अंतिम लाइन में बैठी वही बुजुर्ग महिला अपने स्थान पर खड़ी हुई और पूर्ण गंभीरता के साथ चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए बोली, ‘आप में से कोई भी मुझे नहीं जानता होगा क्योंकि मैं आज पहली बार इस धर्म सभा में आई हूँ। कुछ समय पूर्व मेरे पति की मृत्यु हो गई थी और अब मैं इस दुनिया में पूरी तरह अकेली हूँ। अकेलेपन से मेरे अंदर जीवन के प्रति निराशा भर गई थी और मैं अवसाद का भी शिकार हो गई थी। मुझे जीवन मे कोई आशा नजर नहीं आ रही थी और मैं अब और जीना नहीं चाहती थी। इसलिए पिछले रविवार मैंने रस्सी का फंदा बना कर अपने गले में डाला और दूसरे सिरे को पंखे से बांध आत्महत्या करने को तैयार हो गई। मैं पैर से कुर्सी को नीचे गिराने वाली ही थी कि किसी ने मेरे घर की घंटी को बजाना शुरू कर दिया। मैंने सोचा एक-दो प्रयास करके वो चला जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वो लगातार प्रयास करता रहा।


बीच में जब एक पल के लिये घंटी की आवाज़ बंद हुई तो मैंने फिर से अपनी योजना पर काम करने का सोचा लेकिन तभी घंटी की आवाज़ के साथ दरवाज़े को ठोकने की आवाज़ आने लगी। मैंने काफी इंतज़ार किया, लेकिन हर बार दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी। कुछ देर में वह आवाज इतनी तेज हो गई कि मेरे लिये उसे और नजरअंदाज करना संभव नहीं था। मैंने अपनी गर्दन से रस्सी हटाई और दरवाजे तक गई। घंटी तब भी बज रही थी और दरवाजा तब भी खटखटाया जा रहा था। मैंने दरवाज़ा खोला, तो मेरी आँखों ने जो देखा उस पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था, मेरे दरवाज़े के सामने अब तक का सबसे कांतिमान और दिव्य बच्चा था।’


इतना कह कर वे एक पल के लिए रुकी फिर धीमे स्वर में मुस्कुराते हुए बोली, ‘बच्चे का वर्णन करना भी मेरे लिये संभव नहीं है। उसने मुस्कुराते हुए देवदूत सी आवाज़ में मुझसे कहा, 'माता, मैं सिर्फ आपको बताना चाहता हूँ कि भगवान वास्तव में आपसे प्यार करते हैं।’ इतना कहकर नन्हा फ़रिश्ता तो ठंड और बारिश के बीच मुझे पर्चा दे ग़ायब हो गया। उसके बाद मैंने पर्चे में लिखे एक-एक शब्द को बड़े गौर से पढ़ा और मैंने रस्सी और फंदे को उतार कर फेंक दिया। जैसा कि आप देख सकते हैं अब मैं पारियों के समान खुश हूँ क्योंकि मुझे अब हर पल परमपिता परमेश्वर के साथ होने का एहसास है।


दोस्तों, मुझे नहीं लगता अब और कुछ आगे बताने की ज़रूरत है। बस इतना कहना चाहूँगा कि हर पल बस इस बात का एहसास रखो कि तुम अकेले नहीं हो हर पल परमेश्वर तुम्हारे साथ है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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