Jan 7, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, किसी बात को कहना और उसे मानना दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। उदाहरण के लिए, हम सभी जानते हैं कि हर बच्चा अनूठा, अनोखा और विशेष है, लेकिन उसके बाद भी सामाजिक और दिखावटी अपेक्षाओं के चलते हम उसपर वो बातें करने का दबाव डालते हैं, जो उसकी क्षमताओं के अनुरूप है ही नहीं। जी हाँ दोस्तों, शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए मैंने इसे बहुत क़रीब से महसूस किया है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ। हालाँकि यह कहानी किसने लिखी है, मुझे नहीं पता, लेकिन फिर भी इसमें छिपी सीख की महत्ता को पहचानते हुए, इसे अपने शब्दों में आपसे साझा कर रहा हूँ।
बात कई साल पुरानी है, विदेश यात्रा के अपने अनुभव के आधार पर जंगल के राजा ने जंगली शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए एक योजना बनाई और फिर एक दिन सभी जानवरों की मीटिंग बुलाकर उसमें एलान कर दिया कि आज से सभी जानवरों के बच्चे हमारे द्वारा बनाई गई विशेष पाठशाला में पढ़ेंगे। जिसमें हम दुनिया की आवश्यकता और अपेक्षाओं के अनुरूप सभी कार्यों में दक्ष बच्चे तैयार करेंगे। अब कोई बच्चा अनपढ़ नहीं रहेगा। हर पशु के लिए अपने बच्चों को विद्यालय भेजना आवश्यक होगा और हाँ जो बच्चा शिक्षा लेकर परीक्षा उत्तीर्ण करता जाएगा उसे राजा स्वयं अपने विद्यालय का सर्टिफिकेट देगा।
सभी जानवरों को राजा का अनोखा विचार पसंद आया और वे अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के विषय में सोचने लगे। अगले दिन से ही शेर, हाथी, भालु और चीते का बच्चा विद्यालय आने लगा। इन्हें विद्यालय जाता देख, जंगल में आग सी लग गई, अगले कुछ दिनों में बंदर, ख़रगोश, ऊँट, जिराफ़, कछुए और मछली आदि सभी ने भी अपने बच्चों को विद्यालय भेजना शुरू कर दिया। लगभग एक माह बाद शेर ने अपनी योजना के तहत प्रथम टेस्ट यानी परीक्षा का आयोजन किया और फिर सभी जानवरों को अपने बच्चों का परीक्षा परिणाम देखने के लिए विद्यालय बुलाया। सर्वप्रथम नंबर आया हाथी का, शिक्षक ने अपने चश्में को नाक पर चढ़ाते हुए, पहले तो तिरछी नज़र से हाथी के बच्चे को देखा फिर कहा, ‘फेल है यह तो।’ माता-पिता चिंतित स्वर में बोले, ‘किस विषय में फेल हो गया जी।’ शिक्षक उसी लहजे में बोला, ‘पेड़ पर चढ़ने में।’ जवाब सुनते ही माता-पिता चिंतित स्वर में बोले, ‘अब क्या करें?’ शिक्षक हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली, ‘ट्यूशन दिलवाओ, कोचिंग में भेजो, और क्या!’ अब हथनी और हाथी की जिन्दगी का एक ही मक़सद था, ‘बच्चे को पेड़ पर चढ़ने में टॉप करवाना।’
किसी तरह साल बीता और अंतिम रिजल्ट आया। इस बार तो हाथी, ऊँट, जिराफ़ सब के बच्चे फेल हो गए थे और बंदर की औलाद कक्षा में प्रथम आयी। प्राचार्य ने बंदर के बच्चे को मंच पर बुलाकर मेडल दिया। जिसे देख कर बंदर ने उछल-उछल कर कलाबाजियाँ दिखाकर, गुलाटियाँ मार कर खुशी का इजहार किया। वहीं दूसरी ओर हाथी, ऊँट, जिराफ़, कछुआ आदि अपमानित महसूस कर रहे थे। उन सबने घर पहुँचते ही अपने बच्चों को खूब कूटा और बोला, ‘नालायकों, इतने महँगे स्कूल में पढ़ाते हैं तुमको। साथ ही ट्यूशन-कोचिंग सब लगवाई हैं, और तो और सारी सुविधाएँ भी दे रहे हैं। फिर भी आज तक तुम पेड़ पर चढ़ना नहीं सीखे हो। सीखो, बंदर के बच्चे से, सीखो कुछ, पढ़ाई पर ध्यान दो।
फेल तो हालांकि मछली भी हुई थी। बेशक, वो तैराकी में प्रथम आयी थी, पर बाकी विषय में तो फेल ही थी। मास्टरनी बोली, ‘आपकी बेटी के साथ उपस्थिति की समस्या है। अन्यथा वह और अच्छा कर सकती थी।’ मछली ने बेटी को आँखें दिखाई! जिसपर बेटी ने माँ को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘माँ, मेरा दम घुटता है इस स्कूल में। मैं ढंग से साँस ही नहीं ले पाती। मुझे नहीं पढ़ना इस स्कूल में। हमारा स्कूल तो तालाब में होना चाहिये न?’ बच्ची की बात पर माँ ने एकदम दृढ़ आवाज़ में कहा, ‘नहीं! यह जंगल के राजा द्वारा स्थापित सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है। तुम्हें यहीं पढ़ना होगा। तालाब वाले स्कूल में भेजकर मुझे अपनी बेइज़्ज़ती नहीं करानी है। हम समाज के इज़्ज़तदार लोग हैं। तुम्हें इसी विद्यालय में पढ़ना होगा। फ़ालतू बातों पर से दिमाग़ हटाओ और पढ़ाई पर ध्यान दो।’
आज लगभग पूरे जंगल का यही हाल था। हर बच्चा किसी ना किसी बात पर पिट रहा था। बूढ़े बरगद को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसने थोड़ी ऊँची आवाज़ में सब पर चिढ़ते हुए बोला, ‘क्यों पीट रहे हो, बच्चों को?’ जिराफ़ गंभीर स्वर में बोला, ‘दादा, यह सब पेड़ पर चढ़ने में फेल हो गए?’ बात सुन बरगद मुस्कुराने लगा, फिर गंभीरता के साथ बोला, ‘पर इन्हें पेड़ पर चढ़ाना ही क्यों है? उसने हाथी से कहा, अपनी सूँड़ उठाओ और सबसे ऊँचा फल तोड़ लो। जिराफ़ तुम अपनी लंबी गर्दन उठाओ और सबसे ऊँचे पत्ते को तोड़-तोड़ कर खाओ।’ बात सुनते ही ऊँट भी गर्दन लंबी करके फल और पत्ते खाने लगा।
दोस्तों, जब सब जानवरों ने ध्यान से इस विषय में सोचा तो उन्हें समझ आया कि सभी अपने आप में पूर्ण हैं। लेकिन शायद यह बात हम सभी, अभी भी समझ नहीं पाए हैं कि हाथी के बच्चे को पेड़ पर क्यों चढ़ाना? मछली को तालाब में ही रहने दो। अरे भई जब हम जानते हैं कि हर बच्चा अनूठा और अनोखा अर्थात् अलग-अलग योग्यताओं का धनी है तो फिर उन्हें एक जैसा क्यों बनाना है? आप ख़ुद सोच कर देखिए, अनावश्यक तुलना कर बच्चों को अपमानित करने से हमें क्या मिलेगा? सिवाए इसके कि हम उस पर ‘फैल्योर’ या ‘डफ़र’ का एक टैग लगा देंगे। आप सोच कर देखिए, अगर हमने बंदर का प्रथम आने पर सम्मान किया होता और अन्य को नालायक, कामचोर, लापरवाह, डफ़र, फैल्योर आदि सिद्ध करने के स्थान पर उनका उत्साहवर्धन करते हुए बताया होता कि वे क्या अच्छा कर सकते हैं तो वे भी सफलता की नई कहानी लिख देते।सही कहा ना मैंने? आप स्वयं सोचिए, मछली भले ही पेड़ पर ना चढ़ पाए लेकिन वह समंदर को पूरा नाप सकती है।
तो आईए दोस्तों, आज से हम बच्चों की अनोखी प्रतिभा और क्षमता की कद्र करना शुरू करते हैं। फिर चाहे वो पढ़ाई, खेल, नाच, गाने, कला, अभिनय, व्यापार, खेती आदि किसी भी क्षेत्र में क्यों ना हो। जरूरी नहीं कि सभी बच्चे पढ़ने में ही अव्वल हो, लेकिन यक़ीन मानियेगा प्रेरणा और मौक़ा दिये जाने पर वह अपने पसंदीदा क्षेत्र में अच्छा कर सकते है। हमारा तो काम बस उसे अच्छे संस्कार व नैतिक मूल्य सिखाना है। जिससे वह गलत रास्ते ना चुने। ध्यान रखियेगा कि आपके बच्चे भी आपसे ही सीखेंगे अब ये आपके ऊपर निर्भर है कि आप उन्हें क्या सिखाना पसन्द करेंगे..!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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