Jan 9, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक बहुत ही प्यारी कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक दिन समुद्री केकड़े ने रेतीले समुद्र के किनारे पर घूमने का निर्णय लिया। वह पानी से बाहर आया और रेत पर घूमने लगा, यह उसके लिए एक अनूठा और आश्चर्य पैदा करने वाला अनुभव था क्यूँकि जहाँ-जहाँ वो चलता था, उसके पीछे उसके पैरों के निशान बनते जाते थे। चूँकि ऐसा उसके जीवन में पहली बार हो रहा था इसलिए वह विस्मित हो बार-बार पीछे पलटकर अपने पैरों के निशान देख रहा था।
अभी वह थोड़ा दूर ही चला था कि समुद्र से एक तेज लहर उठी और उसके पैरों के निशान को मिटाते हुए वापस लौट गई। केंकड़े को समुद्र का ऐसा करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा। उसने समुद्र को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया। लेकिन इसी दौरान उसका ध्यान एक बार फिर अपने पीछे की ओर गया तो वह फिर खुश हो गया क्यूँकि समुद्री रेत पर एक बार फिर उसके पैरों के निशान बनने लगे थे। अब वह थोड़ी दूर चलता और फिर रुक कर, पलटकर पीछे देखता और खुश होता और एक बार फिर मदमस्त होकर रेतीले समुद्री किनारे पर चलने लगा।
इतने में एक और तेज लहर आई और उसके पैरों के निशान को मिटाते हुए चली गई। इस बार समुद्री केंकड़े को और जोर से ग़ुस्सा आया और उसने लगभग चिल्लाते हुए समुद्र से कहा, ‘समुद्र!, मैं तो तुम्हें अपना मित्र, अपने परिवार का सदस्य मानता था, पर आज मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। तुम्हारी लहर की हिम्मत देखो मेरे बनाए हुए पैरों के निशान को मिटा रही है। कैसे दोस्त हो तुम जो अपनी लहर को ऐसा करने से रोक नहीं रहे हो।
समुद्री केंकड़े की बात सुन समुद्र गम्भीर स्वर में बोला, ‘ मित्र शांत हो जाओ, लहर को मैंने ही तुम्हारे पैरों के निशान मिटाने के लिए कहा था क्यूँकि अपनी मस्ती के चक्कर में तुम यह भी भूल गए थे कि तुम्हारे पीछे मछुआरे आ रहे थे। अगर वे तुम्हारे पैरों के निशान देख लेते तो वे तुम्हारा शिकार कर लेते। मित्र होने के नाते मैं तुम्हारा नुक़सान होते हुए कैसे देखता? तुम्हीं बताओ क्या मेरे पास तुम्हारे पैरों के निशान मिटाने के अलावा कोई और उपाय था?’ समुद्र की बात सुन केंकड़े की आँखों में आंसू आ गए। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि जिसे वह अपना दुश्मन या विरोधी मान रहा था, असल में तो वो उसका दोस्त और जीवन का रखवाला था। केंकड़े ने तुरंत समुद्र से माफ़ी माँगी और समुद्र को धन्यवाद कहा।
ठीक इसी तरह दोस्तों हम सब के साथ भी होता है। अपनी तात्कालिक स्थिति या ख़ुशी अथवा छोटे-मोटे लक्ष्यों या परिणामों को देख हम अपने हितैषियों, परिजनों या फिर दोस्तों की बातों को समझ नहीं पाते हैं और अपने छोटे या सीमित तर्कों के आधार पर बनी सोच के अनुसार उन्हें ग़लत समझ लेते हैं। किसी को भी दोषी या गलत ठहराने के पहले हमेशा इस बात को याद रखें कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इसलिए कोई भी धारणा बनाने या किसी को ग़लत ठहराने, मन में बैर या ग़लत भावना लाने के पहले एक बार दूसरे पहलू को भी जानने का प्रयास करें। वैसे ऐसी स्थिति में आप अपने दिल की सुन कर भी निर्णय ले सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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