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हर सिक्के के हैं दो पहलू…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

June 18, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर स्थिति परिस्थिति में कहीं ना कहीं से नकारात्मकता खोज ही लेते हैं और फिर उसका दोष दूसरों पर लगाने लगते हैं। ऐसे लोगों की नज़र में तो कई बार ईश्वर भी गुनाहगार होता है। उदाहरण के लिए मैं आपको कल ही की एक घटना सुनाता हूँ।


कल एक विद्यालय में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान ब्रेक में एक शिक्षक मुझसे मिलने के लिए आए। चूँकि मैं उन शिक्षक को पहले से ही जानता था और मुझे पता था कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान वे गम्भीर रूप से बीमार हुए थे और साथ ही उस दौरान उन्होंने बड़ी मुश्किल परिस्थितियों का सामना भी किया था। इसी कारण शुरुआती बातचीत के दौरान जब मैंने उनके स्वास्थ्य के विषय में पूछा तो वे बोले, ‘सर, अब स्वास्थ्य तो बिलकुल अच्छा है। लेकिन कुछ बातें मुझे बड़ा परेशान करती हैं।’ जब मैंने उन्हें थोड़ा विस्तार से बताने के लिए कहा तो वे बोले, ‘सर, शायद आपको पता नहीं होगा कोरोना के दौरान में बहुत लम्बे समय तक जीवन-मृत्यु के बीच में झूला हूँ। एक स्थिति तो ऐसी आई थी जब हमारे इलाक़े के सभी डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे और कहा था इन्हें तत्काल इंदौर ले जाओ अन्यथा जान बचाना मुश्किल हो जाएगा। उस वक्त मुझे मेरे घर वालों ने अकेला छोड़ दिया था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि उन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? हमेशा मैंने देखा है जब भी मैं मुश्किल स्थितियों में होता हूँ ईश्वर मुझे बिलकुल अकेला छोड़ देता है। कभी भी मेरा अपना कोई मेरा साथ नहीं देता। जिसके लिए मैंने तो अपना पूरा जीवन लगाया था वे ही बीमारी के दौरान मुझसे दूर हो गए।’


उनकी बात सुन मुझे सारी बात तत्काल समझ आ गई। मैंने जवाब देने के स्थान पर उनसे एक प्रश्न ही कर लिया। मैंने पूछा, ‘सर, जहाँ तक मुझे याद है आपका इलाज इंदौर में ही हुआ था। अगर आपके घरवाले आपके साथ नहीं थे तो आप अस्पताल पहुंचे कैसे?’ तो वे सज्जन बोले, ‘सर, वो तो मेरे मित्रों ने मुझे अस्पताल पहुँचा दिया। जैसे ही उन्हें मेरी स्थिति का पता चला वो मेरे पास आए और गोदी में उठा कर ले गए।’ मैंने उन पर अगला प्रश्न दागते हुए कहा, ‘सर, मुझे जहाँ तक याद है आपके इलाज में काफ़ी पैसा लगा था।’ मैं अपनी बात पूरी कर पाता उसके पहले ही वे बोले, ‘वो भी सर सब दोस्तों और परिवार वालों ने मिलकर इकट्ठा किया था।’


उनकी बात सुन मैं सोच रहा था कि सबसे मदद मिलने और जान बच जाने के बाद भी ये सज्जन नकारात्मक सोच और नज़रिए के कारण मदद करने वाले अपने परिवार और परिचितों को ही दोष दे रहे है। मैंने उसी पल उनसे कहा, ‘सर, मुझे तो परिवार वालों से ज़्यादा गलती आपकी लग रही है। ज़रा गम्भीरता से सोचेंगे तो समझ जाएँगे।’ मेरे स्पष्ट जवाब से वे चौंके और थोड़ा खुद को संयमित करते हुए बोले, ‘सर, मैं समझ नहीं पाया कैसे?’ मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘सर, आपके दोस्तों को आपकी हालत का कैसे पता चला?’ उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘सर, परिवार वालों ने फोन करा था।’ मैंने उनकी बात को नज़रंदाज़ करते हुए कहा, ‘सर, आपके माता-पिता की उम्र काफ़ी ज़्यादा है। उनके लिए सम्भव नहीं था कि वे आपको गोद में उठा कर दो मंज़िल नीचे ले जाएँ। इसलिए उन्होंने खुद को सुरक्षित रखने पर जोर दिया ताकि वे अपने पूरे संसाधनों के साथ आपको बचा सकें। अगर आप इकट्ठे हुए पैसों पर नज़र डालेंगे तो पाएँगे कि ज़्यादातर पैसा आपके माता-पिता के परिचितों द्वारा दिया गया था। अर्थात् उन्होंने ना सिर्फ़ अपनी बचत बल्कि अपने जीवन भर के सम्बन्धों की पूँजी भी आपको बचाने में लगा दी। अब यह आपके ऊपर है कि आप इसका उधार उन्हें दोष देते हुए चुकाना चाहते हैं या नकारात्मक बातों को भूलकर, जीवन भर उनका अच्छे से ख़याल रखते हुए चुकाना चाहते हैं।’


याद रखिएगा दोस्तों, जीवन में घटने वाली हर घटना में आपके लिए कुछ ना कुछ अच्छा छुपा होता है। वो तो कई बार हम उन बातों को पहचान नहीं पाते हैं इसलिए दुःख, परेशानी, नकारात्मकता भरा जीवन जीते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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