Aug 17, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हाल ही में एक ऐसा बच्चा कैरियर काउन्सलिंग के लिए आया जो पूर्व में भी मुझसे काउन्सलिंग करवा चुका था। उत्सुक्ता वश मैंने उस बच्चे से पूछा, ‘देखो जहाँ तक मुझे याद है, तुम्हारी योग्यता, क्षमता और पारिवारिक स्थितियों को देखते हुए हमने पिछली बार निर्णय लिया था कि तुम मेडिकल अर्थात् डॉक्टरी की पढ़ाई करोगे।’ मेरी बात सुन बच्चे ने सिर हिलाते हुए ‘हाँ’ में जवाब दिया। जब मैंने फिर से काउन्सलिंग करवाने के विषय में चर्चा करी तो मुझे पता चला असफलता के डर से उसने मेडिकल एंट्रेंस की परीक्षा ‘नीट’ दी ही नहीं है।
वैसे बच्चे का जवाब, मेरे लिए नया नहीं था। आजकल बच्चों के व्यवहार में यह परिवर्तन बड़ा सामान्य हो गया है। वे अक्सर प्रतियोगिता या प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के पहले ही हार मान लेते हैं। अगर आप आजकल के बच्चों को ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे, वे पहले तो हर लक्ष्य को बड़ा ही आसान मानकर चलते हैं, लेकिन जब उनका सामना हक़ीक़त से होता है, तब उन्हें लक्ष्य को बीच में छोड़ना आसान लगता है। कई बच्चे जो इस पड़ाव को पार कर कुछ और कदम लक्ष्य की ओर बढ़ाते हैं, वे भी शुरुआती असफलता को अंतिम परिणाम मान, फिर से प्रयास करने के स्थान पर, लक्ष्य को बीच में ही छोड़ देते हैं।
दोस्तों, मेरी नज़र में तो इसके लिए पूरी तरह पालक ही ज़िम्मेदार हैं क्यूँकि वे बच्चों को तकलीफ़ ना हो या उनका कोई नुक़सान ना हो इसलिए कभी भी उन्हें विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों से अकेले निपटना नहीं सिखाते हैं। बीतते समय के साथ यही स्थिति उन्हें कम्फ़र्ट ज़ोन में रहने का आदि बना देती है। कम्फ़र्ट ज़ोन या संरक्षित अर्थात् प्रोटेक्टेड माहौल में रहने के आदी बच्चे अक्सर अज्ञात भय के डर से खुद पर संदेह करना शुरू कर देते हैं, जो इस समस्या की मूल जड़ है।
याद रखिएगा, जब अज्ञात भय और संदेह आपके अंतःकरण पर क़ब्ज़ा करता है, तब निराशा आपको घेरना शुरू कर देती है। जी हाँ साथियों, जब भी हम अज्ञात भय और खुद पर संदेह करते हुए अपनी योग्यता पर अविश्वास करते हैं, तब निराशा की वजह से दुर्भाग्य, हमारा भाग्य बन जाता है और हमारे जीवन में असफलता का दौर शुरू हो जाता है। असफलता, अविश्वास, हीन भावना हमारे अंतर्मन को नुक़सान पहुँचाकर हमारे मन में अनचाहे विचारों का तूफ़ान खड़ा कर देती है, जो आपके जीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर देता है। असल में साथियों इन नकारात्मक विचारों की ग़ुलामी ही इन बच्चों को बिना प्रतियोगिता में भाग लिए ही हारने को मजबूर कर रही है।
दोस्तों, बच्चों ही नहीं बल्कि मैं तो कहूँगा कि असुरक्षा के भाव व अनचाहे डर से बचने के लिए हम सभी को भी इस बात को समझना होगा कि जब तक हम किसी कार्य में हाथ नहीं डालेंगे या किसी कार्य को करने का प्रयास नहीं करेंगे तब तक हमें अपनी शक्ति, अपनी क्षमता का भान कैसे होगा? जी हाँ साथियों, जब तक इंसान किसी कार्य को करके या परिस्थितियों का सामना करके यह नहीं समझ जाता है कि उसमें इस परिस्थिति से निपटने या इस कार्य को पूर्ण करने की क्षमता है, तब तक वह किसी ना किसी पर निर्भर रहता है या यह कहना बेहतर होगा कि वह पंगु बना रहता है।
दोस्तों, अगर हमें सफल बनना है या अपने बच्चों को जीवन में सफल बनाना है तो हमें उन्हें सिखाना होगा कि जीवन में विपरीत परिस्थितियों या चुनौतियों से भागना नहीं है, उनका सामना करना है। इसके साथ ही हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज़ या अंतर्मन के आधार पर जो भी अच्छा या श्रेष्ठ लगता है, उसे पाने के लिए दृढ़ संकल्प के साथ प्रयास करना है, उस दिशा में पहला कदम उठाना है। जब आप कोई नया कार्य या नई चुनौती का सामना करते है, तब विपरीत परिणाम मिलने की सम्भावना अधिक रहती है। लेकिन इससे घबराना नहीं है, खुद के ऊपर शंका, संदेह या अविश्वास जैसे भावों को हावी नहीं होने देना है। बल्कि निडर, जागरूक और सचेत रहते हुए, उस कार्य को शुरू करना है। वैसे किसी ने सही कहा है, ‘हर मनुष्य सब कुछ नहीं कर सकता है लेकिन प्रत्येक मनुष्य कुछ ना कुछ ज़रूर कर सकता है।’ मैं बस इसी बात को आगे बढ़ाते हुए सिर्फ़ इतना और कहूँगा, ‘यदि वह हिम्मत ना हारे तो वह कुछ ना कुछ अच्छा और बड़ा ज़रूर कर सकता है।’ याद रखिएगा, ‘हिम्मत’ हमेशा बाज़ी मारती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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