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हृदय में सत्य को दृढ़ कर असत्य को मिटाएँ…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 3, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अच्छी बातें बताने या फिर किसी बात पर रोकने और टोकने पर आपने कभी ना कभी बच्चों के मुख से अवश्य सुना होगा, ‘मैं कोई बच्चा नहीं हूँ…’ या ‘मुझे भी पता है…’ अथवा ‘इतना समझदार तो मैं भी हूँ…’ आदि। यह स्थिति अक्सर उस वक़्त सामने आती है जब आप किसी एक ही बात पर बार-बार बच्चों को रोकते या टोकते हैं। वे याने बच्चे इसे सामान्यतः अपनी स्वतंत्रता या निजता का हनन मानते हैं और फिर विद्रोह करते हैं। जिसका प्रभाव अक्सर रिश्तों में कड़वाहट के रूप में देखा जाता है। दोस्तों, अगर आप इस स्थिति का समाधान खोज रहे हैं तो जरा इस कहानी को ध्यान से सुनिए-


बात कई साल पुरानी है, एक युवा अपने परिवार के साथ अपने गुरु के पास गया और एकांत में मौक़ा मिलने पर उनसे बोला, ‘गुरुजी, आप जानते ही हैं मैंने दुनिया के बेहतरीन संस्थानों में एक से अपनी शिक्षा पूर्ण करी है। इस शिक्षा ने मुझे विवेकशील और अपना अच्छा और बुरा समझने लायक़ बनाया है। साथ ही आप यह भी जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में पर्याप्त ज्ञानार्जन करने के साथ-साथ मैंने कभी कोई चूक नहीं की है। लेकिन इसके बाद भी मेरे माता-पिता और परिवार के अन्य बड़े लोग मुझे निरंतर सलाह देते रहते हैं; मुझे रोकते-टोकते रहते हैं। मुझे समझ नहीं आता है कि जब उन्होंने मुझे अच्छी शिक्षा दिलवाकर ज्ञानवान बना दिया है, तो फिर वे मुझे उन्हीं बातों के लिए रोकते-टोकते क्यों हैं?’


प्रश्न का जवाब देने के स्थान पर गुरुजी ने मुस्कुराते हुए पास रखी हथौड़ी को उठाया और उसे ज़मीन पर गड़े एक खूँटे पर दे मारा। युवक गुरु के इस इशारे को समझ नहीं पाया और वहाँ से चला गया। अगले दिन वह युवक अनमने भाव से फिर गुरु जी के पास गया और अपने प्रश्न को दोहराता हुआ बोला, ‘गुरुजी, मैंने कल आपसे एक प्रश्न किया था लेकिन आपने उसका उत्तर नहीं दिया। क्या आप मुझे आज उस प्रश्न का उत्तर देंगे?’ गुरु जी ने आज भी बिना कुछ कहे खूँटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। युवक को लगा गुरु जी एक पहुँचे हुए सिद्ध पुरुष हैं और शायद इस समय मौन साधना में लीन हैं। विचार आते ही वह एक बार फिर वहाँ से उठकर चला गया।


तीसरे दिन वह युवा फिर आया और गुरुजी के सामने अपना प्रश्न दोहरा कर शांत खड़ा हो गया। गुरुजी ने आज भी उसके प्रश्न के जवाब में खूँटी पर एक हथौड़ी और मार दी। अब उस युवा का धैर्य जवाब दे चुका था। इसलिए वह थोड़ा चिढ़ते हुए बोला, ‘गुरुजी, मैं तीन दिन से लगातार आपसे एक प्रश्न पूछ रहा हूँ, पर आप मेरे प्रश्न का जवाब ही नहीं दे रहे हैं।’ इस पर गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘बेटा, मैंने तो हर बार तुम्हारे प्रश्न का जवाब दिया है।’ इस पर वह युवा बोला, ‘मैं समझ नहीं पाया गुरुजी। मुझे तो याद नहीं आता आपने कब मेरे प्रश्न का जवाब दिया।’ इस पर गुरुजी ने मुस्कुराते हुए अपनी चिर-परिचित शैली में कहा, ‘बेटा, मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूँ। अगर मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींच-तान करने या ज़रा सी ठोकर लगने या फिर ज़मीन में जरा सी हलचल होने पर यह खूँटी निकल सकती है। मनुष्य के संदर्भ में यही काम बड़ों द्वारा एक ही बात को बार-बार दोहराना करता है। इसे रोक-टोक मानना मेरी नज़र में ग़लत है। बड़ों द्वारा कही गई बातों से उपजे सकारात्मक विचार हमारे मन रूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करते हैं, ताकि ज़रा सी विपरीत परिस्थितियों या नकारात्मक विचार आने पर हमारी पवित्र भावनाएँ प्रभावित ना हों और हम दृढ़ता के साथ जीवन मूल्यों, अच्छी बातों और संस्कारों का पालन अपने जीवन में करते रहें।


बात तो दोस्तों, गुरुजी की एकदम सत्य थी। जिस तरह गुरुजी ने युवक को सही दिशा का बोध कराया, ठीक उसी तरह हम भी बच्चों को इसी तरह सिखा कर उसके मन और हृदय में सत्य को दृढ़ करें और असत्य को मिटा दें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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