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2 मिनिट में नूडल्स मिलते हैं, सफलता नहीं!!!

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 26, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, बात 2010 की है जब मैंने मेरे गुरु के आदेश पर, उनके साथ मंच साझा करते हुए, एक विद्यालय में शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग ली थी। ट्रेनिंग के पश्चात सभी प्रतिभागियों सहित गुरु श्री राजेश अग्रवाल जी से बड़ी सराहना मिली। यक़ीन मानियेगा दोस्तों गुरु से मिली सराहना के कारण मेरे लिये वह पल जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों में से एक था। लेकिन वहाँ से लौटते वक़्त गुरु द्वारा पूछे गये एक प्रश्न के कारण मेरी यह ख़ुशी ज़्यादा देर टिक नहीं पाई। असल में उन्होंने मुझ से पूछा था कि ‘निर्मल, एक बात बताओ, आज की तुम्हारी ट्रेनिंग में क्या तुम मौजूद थे?’ मैं कुछ कहता उसके पहले ही वे बोले, ‘मुझे तो नहीं लगता। सोच कर देखो, जो तुम दूसरों को कह रहे थे क्या तुम ख़ुद उसका पालन करते हो? अगर नहीं तो तुम एक अच्छे ट्रेनर नहीं, अच्छे वक्ता हो।’


यक़ीन मानियेगा दोस्तों, गुरु द्वारा दी गई इस सीख ने मुझे बेहतर इंसान बनने में बहुत मदद करी क्योंकि अब मैं ट्रेनिंग के दौरान बोली गई हर बात पर ख़ुद के अंदर झांक कर देखने लगा कि मैं इस चीज़ को अपने जीवन में उतार पाया हूँ या नहीं। आत्मनिरीक्षण के इस तरीक़े से मुझे अपनी कमियों को पहचान कर, दूर करने में और अपनी विशेषताओं को बार-बार काम में लेने में बहुत मदद मिली। इस आदत की वजह से अब मुझे रोज़मर्रा के अनुभवों से सीखने और बेहतर बनने का मौक़ा रोज़ मिलने लगा और कब ऐसे ही चौदह वर्ष गुजर गये पता ही नहीं चला। सही बोलूँ दोस्तों, तो सिर्फ़ इस एक चीज ने मुझे इस क्षेत्र में विशेषज्ञ के रूप में पहचान बनाने और स्थापित होने में मदद करी।


लेकिन दोस्तों अब वक़्त बदल गया है। आज के युवा विशेषज्ञ बनने में इतना समय नहीं लगाना चाहते हैं। आजकल तो ‘चट मँगनी, पट ब्याह’ का जमाना है। याने आज के युवा तत्काल सफल होना चाहते हैं इसलिए वे अनुभव से सीखने के स्थान पर ख़ुद को शुरू से ही विशेषज्ञ बताना शुरू कर देते हैं और फिर राह में मिलने वाले परिणामों के आधार पर अपने निर्णय, अपनी योजना और क्रियान्वयन के तरीक़ों को बदलते हुए आगे बढ़ते हैं और शायद इसी वजह से उतार-चढ़ाव भरा जीवन जीते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-


एक बार एक फ्लाइट अटेंडेंट हवाईजहाज़ के कॉकपिट में सफ़ाई कर रहा था। सफ़ाई के दौरान अचानक ही उसका ध्यान वहाँ रखी एक किताब पर गया जिसपर लिखा था, ‘तीन स्टेप्स में हवाई जहाज़ उड़ाना सीखें।’ इस युवा ने तत्काल उस किताब को खोला और उसके पहले पन्ने को पढ़ना शुरू किया, जिस पर लिखा था, ‘अगर आप हवाईजहाज़ उड़ाना चाहते हैं तो इंजन चालू करने के लिए हरे बटन को दबाइए।’ उस युवा अटेंडेंट ने तुरंत ऐसा ही किया जिसकी वजह से हवाईजहाज़ का इंजन चालू हो गया। यह देख वह युवा बहुत खुश हुआ और उसने अगली स्टेप जानने के लिए उस किताब के पन्ने को पलटा। जिसपर लिखा हुआ था, ‘हवाई जहाज़ को दौड़ाने के लिए पीला बटन दबाइए। उस युवा ने जैसे ही पीला बटन दबाया वैसे ही हवाई जहाज़ तेज गति से दौड़ने लगा। युवा ने उत्साहित हो किताब के पन्ने को पलटा। तीसरे पन्ने पर लिखा हुआ था कि अब हवाई जहाज़ को ऊपर उठाने याने उड़ाने के लिए अपने सामने लगे नीले बटन को दबाइए।’ उस युवा ने तत्काल नीले बटन को दबाया जिसके कारण हवाई जहाज़ आसमान में उड़ने लगा।


हवाईजहाज़ को उड़ता देख यह युवा बहुत खुश हुआ और सोचने लगा, ‘इतने आसान कार्य को ज़बरदस्ती जटिलता के साथ पेश करते हैं। ऐसे ही अन्य विचारों के साथ यह युवा अगले २० मिनिट तक हवा में जहाज़ उड़ाता रहा। अंत में जब उसका मन भर गया तो उसने हवाईजहाज़ को वापस नीचे उतारने का निर्णय लिया और किताब के अगले पेज को पढ़ने लगा जिस पर लिखा था, ‘हवाई जहाज़ को नीचे उतारने के लिए किताब का दूसरा वॉल्यूम ख़रीदें।’


दोस्तों आगे कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है कि उस जहाज़ का और उस युवा फ्लाइट अटेंडेंट का क्या हुआ होगा। साथ ही साथ आप यह भी समझ ही गए होंगे कि बिना सीखे, बिना अनुभव लिए ख़ुद को विशेषज्ञ बताने का परिणाम क्या हो सकता है। इसलिए दोस्तों सफलता को २ मिनिट नूडल्स की तरह देखना बंद कीजिए और जीवन में सजगता के साथ रोज़ नया सीखते हुए आगे बढ़िये।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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