Aug 22, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, तुलना और वह भी उन बातों की जो ना तो आपके हाथ में है और ना ही सामने वाले के, अंततः आपको नकारात्मक मनःस्थिति ही दे सकती है। उदाहरण के लिए, ‘देखो वह कितना क़िस्मत वाला है, जो सेठ के परिवार में जन्मा है।’ या ‘मेरी तो क़िस्मत उसी दिन फूट गई थी जिस दिन गरीब परिवार में जन्म लिया था।’ अब आप ही सोच कर देखिए कहाँ, कब, किस परिवार में जन्म होगा या हुआ है, ना तो सामने वाले के हाथ में था और ना ही आपके। ऐसे में, इसे आधार मान कर सोचना या तुलना करना आपको उलझन में ही डालता है।
आप किस परिवार में जन्में, आपकी शिक्षा कहाँ हुई या फिर आप किन हालातों में पले-बढ़े या आपका लालन-पालन कैसे हुआ इसके लिए आप ज़िम्मेदार नहीं हैं। लेकिन एक बात तो तय है, किन हालातों में आपकी मृत्यु होगी? उसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ आप ही ज़िम्मेदार रहेंगे। यह कहने से मेरा तात्पर्य है कि जन्म से समझदार होने तक आप निर्भर या किसी पर आश्रित थे, इसलिए उस समय के हालातों के लिए आप ज़िम्मेदार नहीं है, लेकिन इसके बाद का जीवन आप कैसे जिएँगे?, यह निश्चित तौर पर आपके कर्मों पर निर्भर करता है।
जी हाँ साथियों, आपका जीवन किसी से तुलना करने पर बेहतर नहीं बनता अपितु मनःस्थिति ठीक रख परिस्थितियों से बाहर निकल कर कर्म करना ही आपको महान बनाता है। उदाहरण के लिए कारागार में जन्म लेने वाले कृष्ण भी कर्म करने के बाद ही द्वारिकाधीश बन पाए थे। आपका जन्म दोस्तों कितनी भी प्रतिकूलताओं या अनुकूलताओं में क्यूँ ना हुआ हो, आपका भविष्य तो निरंतर कुछ श्रेष्ठ करने की चाह और उस दिशा में आपके द्वारा किए गए सतत प्रयासों से ही बेहतर बनता है। कारागार में जन्में कृष्ण ने जब बड़े और श्रेष्ठ लक्ष्यों की पूर्ति के लिए पूतना, तृणावर्त, अघासुर, बकासुर, व्योमासुर, चारूण, मुष्टिक और कंस जैसे प्रतिकूल लोगों से निपटने के लिए कर्म करे, तब वे अपने जन्म को चरितार्थ कर पाए। इसी तरह जब हम तमाम प्रतिकूलताओं, विघ्न, बाधाओं, विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना करते हुए, अपने कर्म पथ पर लगातार आगे बढ़ते जाते हैं, तब जीवन में सफल हो पाते हैं।
दोस्तों, अगर सफलता के लिए आपने बड़ा और श्रेष्ठ लक्ष्य रखा है तो आपको उसके लिए प्रयास भी अतिश्रेष्ठ करना होंगे। इसे मैं आपको किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए आवश्यक 3ए (3A) के सूत्र से समझाने का प्रयास करता हूँ। मान लीजिए आपका लक्ष्य किसी भी वस्तु को सौ प्रतिशत पाने का है अर्थात् आपका एम्बिशन अर्थात् इच्छा किसी वस्तु को 100 प्रतिशत पाना है तो अब आपको अपने एटीट्यूड अर्थात् अपने दृष्टिकोण को उस लक्ष्य से 200 प्रतिशत बड़ा बनाना होगा और अब इस इच्छा को हक़ीक़त में बदलने के लिए अपने ऐक्शन अर्थात् कर्म को लक्ष्य के मुक़ाबले 300 प्रतिशत ज़्यादा करना होगा, तब आप अपने जीवन में हर लक्ष्य को तमाम विपरीत स्थितियों के बाद भी हक़ीक़त में बदल पाएँगे।
विपरीत परिस्थितियों के बाद भी लक्ष्य को हक़ीक़त में बदलने के लिए 1 एक्स एम्बिशन, 2 एक्स एटीट्यूड और 3 एक्स ऐक्शन के सूत्र को दृढ़ इच्छाशक्ति, उच्च आत्मबल और समर्पित भाव के साथ काम में लाना ही हमें सफल बनाता है। शायद इसीलिए तो दोस्तों भगवान श्री कृष्ण ने कर्म को प्रधान बताया है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments