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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

कंट्रोल्ड फ़्रीडम के साथ करें बच्चों की परवरिश…

Feb 6, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

राजपुर में 10 वर्षीय हर्षिता अपने माता-पिता के साथ रहती थी। हर्षिता के समीप ही एक बुजुर्ग दम्पत्ति रहा करते थे, जिन्हें वह दादा-दादी कह कर बुलाया करती थी। एक दिन दादाजी अपने घर के बाहर क्यारी में एक सुंदर सा फूल का पौधा लगा रहे थे। जिसे देख हर्षिता ने भी दादाजी से एक पौधा लेकर अपने घर की क्यारी में लगा दिया। हर्षिता को अपने इस पौधे से इतना अधिक प्यार था कि वह हर पल उस पौधे का ख़याल रखा करती थी। जैसे समय पर खाद-पानी देना या फिर कीड़ों से बचाने के लिए दवा का छिड़काव करना, आदि। इसी वजह से हर्षिता का पौधा जल्दी फल-फूलने लगा।


हर्षिता के विपरीत दादाजी पौधे के प्रति थोड़े लापरवाह नज़र आते थे। हर्षिता के समान ना तो वे समय पर खाद-पानी देते थे और ना ही दवा आदि का छिड़काव करते थे। इसी वजह से दादाजी का पौधा एकदम मरियल सा नज़र आया करता था। बीतते समय के साथ दोनों पौधे बड़े होते गए। हर्षिता का पौधा जहाँ एकदम हरा-भरा फूलों से लदा, बड़ा सुंदर नज़र आता था, वहीं दादाजी का पौधा अभी भी अपना सर्वश्रेष्ठ रूप नहीं ले पाया था। एक दिन रात के समय अचानक तेज़ आँधी के साथ ज़ोरदार बारिश होने लगी।


बारिश रुकने के बाद मौसम ठीक होने पर अगले दिन जब हर्षिता अपने पौधे का हाल देखने गई तो उसने अपने सुंदर से पौधे को क्यारी में ज़मीन से उखड़ा हुआ पाया। वह उसी पल दादाजी के पौधे का हाल देखने के लिए उनके घर की ओर भागी। वहाँ उसने अपनी आशा के विपरीत दादाजी के पौधे को लगभग पूरी तरह सही सलामत पाया। वह हैरान थी कि दादाजी का मरियल सा पौधा किस तरह आँधी-तूफ़ान जैसी विपरीत परिस्थितियों के बीच बचा रह गया। हर्षिता तुरंत दादाजी के पास गयी और बोली, ‘दादाजी, आप तो अपने पौधे के प्रति एकदम लापरवाह थे। आप कभी उसे समय पर खाद-पानी या दवाई नहीं दिया करते थे। लेकिन उसके बाद भी आपका पौधा आँधी और बारिश झेल गया, जबकि मेरा पौधा तो जड़ से ही उखड़ गया।’


हर्षिता की बात सुन दादाजी गम्भीर स्वर में बोले, ‘हर्षिता बेटा, यह तुम्हारा वहम है कि मैं पौधे के प्रति लापरवाह था। असल में तुम अपने पौधे के लिए ज़रूरत से ज़्यादा चिंतित थी। तुमने पौधे को हर चीज़, फिर चाहे वह खाद हो या पानी या फिर कीटनाशक, प्रचुरता में दी। इस वजह से तुम्हारे पौधे को कभी खुद को जीवित रखने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा। सीधे शब्दों में कहूँ, तो उस पौधे को कभी पानी की तलाश के लिए अपनी जड़ें ज़मीन में ज़्यादा फैलानी नहीं पड़ी और ना ही उसे कीटों से लड़ने और खुद को बचाने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना पड़ी। वह सिर्फ़ दिखने में सुंदर था लेकिन अंदर से पूरी तरह खोखला या कमजोर। इसीलिए वह आँधी-तूफ़ान और बरसात की मार नहीं झेल पाया और जड़ से ही उखड़ गया। इसके विपरीत मैं अपने पौधे पर हमेशा पूरी नज़र बनाए रखता था। मैं उस पौधे को जब बहुत ज़्यादा ज़रूरत होती थी तभी खाद, पानी या दवाई देता था।


दोस्तों, काफ़ी दिनों पूर्व पढ़ी यह कहानी मुझे इस रविवार मध्यप्रदेश के एक शहर धार में ज्ञानकुंज प्ले स्कूल के प्रोग्राम के दौरान तब याद आयी, जब एक पालक को मैंने अपने बच्चे को अति सुरक्षित माहौल उपलब्ध करवाते हुए देखा। वे बच्चे के खेल के दौरान भी ज़रूरत से ज़्यादा टोका-टोकी कर रही थी, जबकि वहाँ बच्चों का ध्यान रखने के लिए शिक्षिका पहले से मौजूद थी। वैसे भी आजकल मैंने ज़्यादातर पालकों को अपने बच्चों को आवश्यकता से अधिक केयर या सुरक्षित वातावरण देते हुए देखा है। आजकल एकल और छोटे परिवार में इस तरह का व्यवहार सामान्य हो गया है। इसी वजह से ऐसे माहौल में पले बच्चे जीवन में संघर्ष करना सीख ही नहीं पाते हैं और हर चीज़ को सरल और सुलभ मान व्यवहार करते हैं। शारीरिक और भावनात्मक तौर पर मज़बूत ना होना ही इन बच्चों के विपत्ति या चुनौती भरे विपरीत समय या परिस्थिति के दौरान बिखर जाने का सबसे बड़ा कारण होता है।


जिस तरह दोस्तों, दादाजी ने दूर से अपने पौधे पर पैनी निगाह बना रखी थी और उस पौधे को अत्यधिक आवश्यकता होने पर ही पानी, खाद या दवा उपलब्ध करवाई थी, ठीक उसी तरह अगर हम अपने बच्चों को कंट्रोल्ड फ़्रीडम के साथ बड़ा करें अर्थात् उसे समय-समय पर अच्छी और बुरी चीजों का भान कराते हुए, अत्यधिक ज़रूरत होने पर ही मदद उपलब्ध कराएँ तो ही वह विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों या असफलता के दौर में अपना सर्वश्रेष्ठ देना सीख पाएगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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