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कर्म दिशा देते हैं, पर शब्द रिश्तों की नींव रखते हैं…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Sep 18
  • 3 min read

Sep 18, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, हम सब मान कर चलते हैं कि जीवन में कर्म ही सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। लेकिन इस विषय में मेरा मानना है कि हमारे जीवन में जितना महत्व कर्म का है, उतना ही महत्व बोले गए शब्दों का भी होता है। शब्दों से आप एक ओर जहाँ किसी का दिल जीत सकते हैं, वहीं आप किसी के दिल को गहरी चोट भी पहुँचा सकते हैं। चलिए इसी बात को एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-


बात कई साल पुरानी है, एक बार एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काट रहा था। तभी उसे पेड़ के नीचे बैठे शेर की आवाज़ सुनाई दी। जिसे सुन वह डर कर वहाँ से भागने लगा। उसी क्षण कराहती आवाज के साथ शेर ने उससे कहा कि उसके पैर में कांटा चुभा है और इसी वजह से वो चल-फिर नहीं पा रहा है। शेर की परेशानी को समझ लकड़हारे ने हिम्मत दिखाते हुए उसके पैर में से कांटा निकाला और उसकी जान बचाई। इस घटना के बाद शेर और लकड़हारा दोनों दोस्त बन गए।


कुछ दिनों में यह बात लकड़हारे के सभी दोस्तों और परिजनों को पता चल गई। उन सभी ने लकड़हारे की हिम्मत की दाद दी और इस ख़ुशी में एक पार्टी आयोजित करने का निर्णय लिया और उसमें शेर को भी आने का निमंत्रण दिया। तय दिन जब पार्टी में शेर पहुंचा तो उसे देख वहाँ मौजूद सभी मेहमान डर गए। जिसे देख लकड़हारा बोला—“मित्रों, डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, यह शेर तो कुत्ते से भी सीधा है।”


लकड़हारे की यह बात शेर को भीतर तक चुभ गई। लेकिन उसने ख़ुद पर क़ाबू रखते हुए कहा, “आप सभी निश्चिंत रहिए मैं किसी को नुक़सान नहीं पहुँचाऊँगा।” इतना कहकर उसने लकड़हारे को एक कुल्हाड़ी लाने और फिर ज़ोर से अपनी पीठ पर वार करने का कहा। लकड़हारे ने जब ऐसा करने से मना किया तो शेर धमकी देते हुए बोला, “अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुम्हें मार कर खा जाऊँगा।”


‘मरता क्या ना करता’, लकड़हारे ने शेर की बात मानी और कुल्हाड़ी मंगवा कर उसकी पीठ पर वार किया। जिसकी वजह से शेर की पीठ पर गहरा घाव बन गया। शेर ने उस वक्त तो कुछ नहीं कहा, बस लँगड़ाता हुआ वापस जंगल की ओर चला गया। कई सालों बाद जब लकड़हारे और शेर की मुलाकात हुई, तब लकड़हारे द्वार घाव के विषय में पूछने पर शेर ने कहा, “तेरे द्वारा कुल्हाड़ी के प्रहार से दिया गया घाव तो कब का भर गया, पर कुत्ते से तुलना करने वाले तेरे शब्दों से मिला घाव आज तक नहीं भरा है।”


दोस्तों, लकड़हारे और शेर की यह कहानी हमें सिखाती है कि शारीरिक चोट समय के साथ भर जाती है, पर शब्दों से लगी चोट हमेशा हरी रहती है। आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में अक्सर हम जल्दबाज़ी में बोलते हैं; प्रतिक्रिया देते हैं। मजाक और गुस्से में दी गई ऐसी प्रतिक्रियाओं में कई बार हमारे मुँह से ऐसे शब्द निकल जाते हैं जो सामने वाले को दिल की गहराई तक चोट पहुँचा देते हैं। जिसके कारण आपसी रिश्ते हमेशा के लिए खटास से भर जाते हैं।


इसलिए ही दोस्तों, बचपन से ही हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने के लिए कहा जाता है। युवा वर्ग को तो इस बात का और भी ज़्यादा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि वे इस उम्र में अपने रिश्ते, करियर और आत्मविश्वास की नींव रखते हैं। ऐसे विशेष समय में उनके द्वारा कहा गया एक कठोर शब्द दोस्ती तोड़ सकता है, टीम वर्क बिगाड़ सकता है और अवसर छीन सकता है। वहीं, इसके विपरीत उनके द्वारा कहा एक सकारात्मक शब्द रिश्तों को मजबूत बना सकता है, प्रेरणा दे सकता है और उन्हें एक भरोसेमंद लीडर के रूप में स्थापित कर सकता है। निम्न तीन बातें हमेशा याद रखियेगा दोस्तों-

1) शब्द चरित्र का आईना होते हैं – आप जैसा सोचते हैं, वैसा ही बोलते हैं।

2) शब्द अवसर बनाते और बिगाड़ते हैं – जी हाँ एक अच्छा संवाद दरवाज़े खोल सकता है, वहीं कटु वचन रिश्ते तोड़ सकते हैं।

3) शब्द स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं – कर्म भले भुला दिए जाएँ, पर कहे हुए शब्द याद रहते हैं।


इसलिए दोस्तों हमेशा बोलने से पहले सोचें। एक क्षण का असंयमित वचन जीवनभर का घाव दे सकता है, और एक संवेदनशील शब्द जीवनभर की प्रेरणा बन सकता है। इसलिए, यदि आप सफलता और अच्छे संबंध चाहते हैं, तो अपने शब्दों को हथियार नहीं, बल्कि मरहम बनाइए और याद रखिए, “कर्म दिशा देते हैं, पर शब्द रिश्तों की नींव रखते हैं!”


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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