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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

अच्छे रिश्तों के लिए अपेक्षाओं में बनाए बेहतर संतुलन

अच्छे रिश्तों के लिए अपेक्षाओं में बनाए बेहतर संतुलन
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Dec 23, 2021

अच्छे रिश्तों के लिए अपेक्षाओं में बनाए बेहतर संतुलन !!!


दोस्तों, अक्सर कहा जाता है व्यक्ति के जीवन की क्वालिटी उसके संबंधों की क्वालिटी से तय होती है और उसकी नेटवर्थ उसके नेटवर्क से तय होती है या उसके बराबर होती है। लेकिन तेज़ी से बदलती इस दुनिया में जहाँ रोज़ नए परिवर्तन, नई जटिल परिस्थितियों को जन्म दे रहे हैं, वहाँ रिश्तों को सफलता पूर्वक निभाना, बचाए रखना, सम्भालना असंभव सा होता जा रहा है। फिर चाहे रिश्ते पारिवारिक, व्यवसायिक, राजनैतिक या फिर वैश्विक स्तर के ही क्यों ना हों। 


रिश्तों को सम्भालने में विचारों का द्वन्द किसी भी बड़ी से बड़ी समस्या के द्वन्द से कहीं बड़ा होता है। इसीलिए दोस्तों आजकल इंसान के अंदर एक अपूर्णता का एहसास घर कर गया है जिसकी वजह से उसके अंदर असुरक्षा की भावना बढ़ गई है। बढ़ा हुआ असुरक्षा का भाव उसकी ज़रूरतें, उसकी आवश्यकताएँ बढ़ा देता है और इन्हीं विशेष ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वो रिश्ते बनाता है। जब उसकी ज़रूरतें, उसकी आवश्यकताएँ पूरी नहीं होती, तब रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है। फिर भले ही रिश्तों की प्रकृति और प्रकार कैसा भी क्यूँ ना हो। गहराई में उतरकर देखने पर आप पाएँगे कि हर रिश्ते की वजह व्यक्ति की आवश्यकता, उसकी ज़रूरत से जुड़ी होती है। अर्थात् हर रिश्ते के पीछे स्वार्थ का भाव, अपेक्षाएँ और भावनात्मक ज़रूरतें होती हैं। जब भी यह स्वार्थ या अपेक्षा पूरी नहीं होती है, रिश्तों में दूरी या कड़वाहट आने लगती है। चलिए उदाहरण के लिए पारिवारिक रिश्तों को ही ले लेते हैं। इस रिश्ते में हमारी अपेक्षा रहती है कि सामने वाला हमारी भावनाओं, ज़रूरतों, इच्छाओं, प्राथमिकताओं को समझे, उन्हें सम्मान दे और अगर वह इन्हें समझ नहीं पाता है तो रिश्तों में भावनात्मक उलझनों की वजह से दूरियाँ बढ़ने लगती हैं।


दोस्तों अगर आप आपसी रिश्ते की गरमाहट बरकरार रखना चाहते हैं तो आपको अपने अंदर विस्तृत समझ को विकसित करना होगा ताकि आप आपसी अपेक्षाओं और ज़रूरतों में बेहतर संतुलन बना सकें। चलिए इसे हम एक उदाहरण से समझते हैं। कल्पना कीजिए कि आप सब्ज़ी या किराना लेने के लिए दुकानदार के पास पहुँचते हैं। अब आप उसे ऑर्डर देने के लिए क्या कहेंगे? यही ना की भैया, मुझे फ़लाना सामान 1, 2 या 4 किलो दे दीजिए। अब आपके द्वारा ऑर्डर देने पर दुकानदार क्या करेगा? तराज़ू लेगा और उसके एक पलड़े में आपके द्वारा बताई गई क्वांटिटी के हिसाब से वजन रखेगा और दूसरे में सामान और कांटा जैसे ही बीच में आ जाएगा अर्थात् दोनों पलड़ों में संतुलन बन जाएगा, दुकानदार वह सामान आपको दे देगा। सही है ना दोस्तों?


चलिए अब हम इसी उदाहरण को दूसरे नज़रिए से देखते हैं। मान लीजिए आप एक किलो सामान लेना चाहते हैं और दुकानदार ने तराज़ू के एक पलड़े में 500 ग्राम का वजन रख रखा है और दूसरे में सामान। अब आप बताइए क्या आपको सही तोल के हिसाब से सामान मिल पाएगा? बिल्कुल नहीं! मतलब यह हुआ दोस्तों तराज़ू के दोनों पलड़े सही वजन के साथ संतुलित होंगे तभी हमें बराबर वजन का सामान मिलेगा। 


रिश्तों की भी स्थिति ठीक ऐसी ही होती है। अक्सर हम 500 ग्राम इज्जत, प्यार, अपनापन रखकर 1 किलो वापस पाने की आस रखते हैं। अगर आप रिश्तों को सही रखना चाहते हैं तो आपको इस बात को स्वीकारना होगा कि जितना प्रेम, अपनापन, सम्मान आप सामने वाले से चाहते हैं तराज़ू के दूसरे पलड़े में हमें उतना ही उनके लिए रखना होगा। अर्थात् दोस्तों रिश्तों में जो आप सामने वाले से अपेक्षा रख रहे हैं वही आपको उनको भी देना होगा, तभी रिश्तों का तराज़ू संतुलित रहेगा और यह अपने अंदर विस्तृत समझ विकसित किए बिना सम्भव नहीं होगा। हमें स्वीकारना होगा कि जितना करीबी और आत्मीय रिश्ता होगा उसका आनंद उठाने के लिए हमें उतनी ही ज़्यादा कोशिश करना होगी।


तो साथियों अब देर किस बात की, अगर आप रिश्तों का बेहतर प्रबंधन करना चाहते हैं तो आज से ही अपने नज़रिए में परिवर्तन लाए और सबसे पहले अपने रिश्तों को वो देना प्रारम्भ करें जो आप उनसे अपेक्षा करते हैं। अपेक्षाओं का बेहतर संतुलन ही रिश्तों को मज़बूत बना सकता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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