फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
अपनी प्रतिक्रिया से उतरें दिल में या दिल से


Aug 27, 2021
अपनी प्रतिक्रिया से उतरें दिल में या दिल से!!!
दोस्तों आज जीवन जीने का सलीका सिखाने वाली एक बड़ी अच्छी सी कहानी पढ़ने का मौक़ा मिला। इसके लेखक कौन हैं मुझे नहीं पता, पर आईए आज के शो की शुरुआत उसी कहानी से करते हैं-
विद्यालय में 7 वर्षीय राजू अपनी सीट पर बैठा हुआ था। तभी अचानक उसने अपने पैरों के बीच के हिस्से को भीगा हुआ पाया। उसे देखते ही एक पल के लिए तो उसकी जान ही निकल गई थी। उसका दिल बैठा जा रहा था और वह तो सोच भी नहीं पा रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है? आज तक तो कभी ऐसा नहीं हुआ था। वह जानता था कि अगर विद्यालय में सहपाठियों को इस बारे में पता चल गया तो वह हंसी का पात्र बन जाएगा और फिर जब तक वह विद्यालय में रहेगा उसे चिढ़ाया जाएगा और अगर यह बात कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियों को पता चल गई, तब तो वे जीवन भर उससे बात नहीं करेंगी।
इन्हीं सब चिंता के साथ राजू सर नीचा करके बैठ गया और चमत्कार के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। उसके दिमाग़ में एक ही चीज़ चल रही थी, ‘किसी को भी इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए अन्यथा मैं कभी इनमें से किसी का सामना नहीं कर पाऊँगा।’ अभी वह विचारों में ही खोया हुआ था कि शिक्षक को अपनी ओर आता देख उसकी धड़कन कई गुना बढ़ गई और उसका गला सूख गया।
शिक्षक उससे कुछ ही कदम की दूरी पर थे कि अचानक बबलू नाम का सहपाठी खड़े होने के प्रयास में राजू के ऊपर अपनी पानी की बोतल के साथ गिर गया। गिरते ही बोतल का सारा पानी राजू की पेंट पर ढुल गया। पानी गिरते ही राजू ने मन-ही-मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और बबलू के ऊपर ग़ुस्सा होने का नाटक करने लगा।
पानी गिरते ही उपहास का पात्र बनने की बजाय राजू सहानुभूति का पात्र बन गया, शिक्षक उसे नीचे ले गए और पहनने के लिए उसे दूसरी पेंट उपलब्ध करवायी। इतनी देर अन्य बच्चों ने उसकी बेंच के आसपास की सफ़ाई कर दी। कक्षा में सभी बच्चों की सहानुभूति राजू के प्रति अद्भुत थी। लेकिन जैसा की अकसर हक़ीक़त में होता है, किसी की गलती की सजा किसी ओर को मिल जाती है ठीक उसी तरह कक्षा के अन्य बच्चों के उपहास का पात्र अब बबलू था, राजू नहीं। वैसे बबलू ने राजू की मदद करी थी लेकिन उसे एहसास कराया गया कि वह ग़लत था।
ख़ैर जैसे-तैसे वह दिन बिता और विद्यालय की छुट्टी होने के बाद सभी बच्चे घर जाने के लिए बस स्टाप की तरफ़ जाने लगे। तभी राजू अचानक से बबलू के पास गया और फुसफुसा कर उसे धन्यवाद देते हुए बोला, ‘मुझे पता है तुमने जानबूझकर मेरे ऊपर पानी गिराया था, है ना?’ बबलू ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए धीरे से जवाब दिया, ‘मैंने भी एक बार तुम्हारी तरह अपनी पेंट गीली कर ली थी।’
वैसे निश्चित तौर पर आप इस कहानी में छिपे अर्थ को समझ गए होंगे फिर भी मैं अपने नज़रिए से उसे आपको बताने का प्रयास करता हूँ। हम सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव, अच्छा-बुरा दौर आता है। जो कभी हमें ख़ुशी देता है तो कभी दुःख, कभी हमारे मन का होता है, कभी नहीं। कभी हमें अच्छे काम के लिए तारीफ़ मिलती है, तो कभी बुराई।
इन्हीं प्रतिक्रियाओं में से कुछ प्रतिक्रियाएँ हमारा दिल दुखाती हैं, तो कुछ हमारे दिल को छू जाती हैं, हमें सुकून देती हैं। हमें किसी भी स्थिति में अपनी बात रखने से पहले एक बार सोच लेना चाहिए या याद करके देख लेना चाहिए कि जब हम उस स्थिति में थे तब हमें कैसा लगा था? किस प्रतिक्रिया या बात ने हमारे दिल को छुआ था और किसने परेशान किया था? ऐसा करना आपको निश्चित तौर पर दूसरे का मज़ाक़ उड़ाने, अनावश्यक टिप्पणी करने से रोक देगा।
जी हाँ दोस्तों, जीवन का मज़ा लोगों को छोटा दिखाने में नहीं बल्कि उन्हें साथ लेकर चलने में है। हमेशा प्रतिक्रिया या टिप्पणी करने से पहले सही स्थिति को समझने के लिए, उसमें खुद को रखकर देखें और भगवान से प्रार्थना करते हुए यथासंभव मदद करें। बल्कि मैं तो यह भी कहूँगा कि आप ईश्वर का धन्यवाद दें कि उसने आपको ऐसी स्थिति में रख रखा हैं कि आप जरूरतमंद की मदद करने लायक़ हैं। फिलिप्स ब्रूक्स ने सही कहा है, ‘धैर्य रखें और समझें, बदले की भावना के साथ दुर्भावना पूर्ण जीवन जीने के लिए यह जीवन बहुत छोटा है।’
-निर्मल भटनागर
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