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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

अर्थहीन लक्ष्यों में अपना जीवन ना गँवाए

अर्थहीन लक्ष्यों में अपना जीवन ना गँवाए
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July 31, 2021

अर्थहीन लक्ष्यों में अपना जीवन ना गँवाए! 


कहते हैं ना, लक्ष्य के बिना जीवन, उस लिफ़ाफ़े के समान है जिस पर पता लिखा हुआ नहीं है। इसे आप कितने भी अच्छे माध्यम से भेज दें, यह कभी भी, कहीं पहुँच नहीं पाएगा। जी हाँ दोस्तों, जीवन में लक्ष्य का होना उतना ही आवश्यक है, जितना दिए में तेल होना। 


आपने निश्चित तौर पर यह कहानी सुनी होगी, एक बार एक फ़ैक्टरी में एक मशीन में ख़राबी आ जाती है। शहर के बड़े और नामी सभी इंजीनियर उस मशीन को सुधारने का प्रयत्न करते हैं, पर असफल रहते हैं। तभी एक अनपढ़, सीधा सा दिखने वाला व्यक्ति आता है और मशीन सुधारने की पेशकश करता है। मालिक भी सोचता है, ‘इतने लोग प्रयास कर चुके हैं एक और कर लेगा तो क्या फ़र्क़ पड़ता है। यह युवक कुछ देर तक मशीन को हर तरह से देखता है फिर अपने औज़ारों में से एक हथौड़ी निकालकर मशीन पर एक जगह ज़ोर से वार करता है, मशीन चालू हो जाती है। दोस्तों जिस मशीन को ठीक करने का प्रयत्न शहर के कई बड़े इंजीनियर कर चुके थे, उसे एक अनपढ़ ने हथौड़ी के मात्र एक वार से कैसे ठीक कर दिया? बड़ा साधारण सा जवाब है, उसे पता था वार कहाँ करना है। 


ठीक ऐसा ही लक्ष्य के मामले में भी होता है दोस्तों। ज़्यादातर लोग जीवन में लक्ष्य बनाते हैं, उसे पाने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं लेकिन फिर भी सफलता उनसे कोसों दूर रहती है। ऐसा क्यों होता है? क्या उनकी मेहनत में कमी है? दिशा सही नहीं है? बिलकुल नहीं दोस्तों, मेहनत और काम करने की दिशा में कोई कमी नहीं रहती बस कई बार लोग अर्थहीन लक्ष्य बना लेते हैं, बल्कि कुछ मामलों में तो यहाँ तक कहा जा सकता है कि वे रास्ते को ही अपना लक्ष्य मान लेते हैं। 


पहले हम एक छोटी सी कहानी के माध्यम से अर्थहीन लक्ष्य क्या होते हैं यह समझते हैं और उसके बाद रास्ते को ही क्यों लक्ष्य समझ लिया जाता है यह समझने का प्रयास करते हैं।


गाँव के बाहरी हिस्से में हाइवे के किनारे रहने वाले एक किसान के पास बहुत प्यारा सा कुत्ता था। वह कुत्ता अक्सर किसान के घर के बाहर हाइवे के किनारे बैठा रहा करता था। उसके हमेशा अलर्ट बैठने के तरीक़े से ऐसा लगता था जैसे वह किसी गाड़ी के आने का इंतज़ार कर रहा हो।


वैसे होता भी ऐसा ही था, जैसे ही कोई भी वाहन उस हाइवे से गुजरता, वह भौंकते हुए उसके पीछे दौड़ लगाने लगता। ऐसा लगता था जैसे वह वाहन को ओवरटेक करने की कोशिश करते हुए दौड़ रहा है। किसान का पड़ौसी रोज़ बड़े आश्चर्य के साथ उस कुत्ते को ऐसा करते हुए देखा करता था। एक दिन उसने इस विषय पर किसान से बात करने का निश्चय किया। वह सुबह-सुबह ही किसान के घर पहुँचा और बोला, ‘क्या आपको लगता है कि आपका कुत्ता कभी उन वाहनों से आगे निकल पाएगा? किसान ने बड़ी गम्भीर आवाज़ में कहा, ‘वैसे आप जो कह रहे हैं वह बात मुझे बिलकुल भी परेशान नहीं करती।’ पड़ौसी ने जवाब सुनते ही अगला प्रश्न किया, ‘तो फिर आप किस बात से परेशान हैं?’ किसान और ज़्यादा गम्भीर होकर बोला, ‘मैं तो इस बात से परेशान हूँ कि अगर वह कभी भी किसी गाड़ी के आगे निकल भी गया या उसने किसी गाड़ी को पकड़ भी लिया तो वह उसका करेगा क्या?’


ठीक इसी तरह सही लक्ष्य ना बनाना या रास्ते को ही मंज़िल समझना भी अर्थहीन लक्ष्य बनाने के सामान ही है। जैसे- पड़ोसी जैसी कार, बंगला या कुछ और सामान लेने के बारे में सोचना या फिर बहुत सारे पैसे कमाने को अपना लक्ष्य बनाना आदि। अगर दोस्तों लक्ष्य अर्थहीन होंगे तो आपको मिलने के बाद थोड़ी ही देर का सुकून देंगे। कुछ समय पश्चात ही आप वापस उसी चूहा दौड़ में हिस्सा लेने के लिए खुद को तैयार करने लगेंगे। 


दोस्तों अगर जीवन में खुश और संतुष्ट रहना है तो जीवन में किसान के उस कुत्ते की तरह व्यवहार ना करें, जो अर्थहीन लक्ष्यों का पीछा करते हुए अपने क़ीमती जीवन को बर्बाद करता है। जब भी लक्ष्य बनाए एक बार खुद से पूछें, ‘आने वाले 5 से 10 वर्षों में यह लक्ष्य मेरे जीवन में क्या महत्व रखेगा या क्या सकारात्मक बदलाव लाएगा?’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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