फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
असफलता अंत नहीं, सफलता की शुरुआत है - भाग 1


Oct 25, 2021
असफलता अंत नहीं, सफलता की शुरुआत है - भाग 1
दोस्तों, जीवन में कई बार आप पूर्ण तैयारी के साथ अथक प्रयास करते हैं, लेकिन उसके बावजूद भी जीवन में मनचाहा परिणाम नहीं पा पाते हैं और अंततः अपनी क़िस्मत को दोष देते हुए हार मानकर बैठ जाते हैं। ऐसा ही कुछ मेरे एक मित्र के साथ हो रहा था। कोविद की प्रथम लहर के कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने अपने जीवन में एक बड़ा निर्णय लेते हुए अपनी नौकरी से त्यागपत्र देकर अपनी जमा पूँजी से एक नया व्यवसाय शुरू किया था। व्यवसाय जम पाता उसके पूर्व ही लॉकडाउन लग गया। बाज़ार खुलने के बाद उन्होंने पूरी ताक़त के साथ, एक बार फिर अपनी ऊर्जा को इकट्ठा किया और प्रयास करा लेकिन कोविद की दूसरी लहर ने बाज़ार को एक बार फिर बंद करा दिया।
हालाँकि मित्र अपने क्षेत्र में महारत रखते थे, इसके साथ ही सफलता पाने के लिए किसी भी इंसान में जो गुण होने चाहिए, वह सब उनमें थे। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने एक बड़े नुक़सान के साथ अपने व्यवसाय को यह कहते हुए बंद करने का निर्णय लिया कि ‘यार हम तो व्यवसाय करने के लिए बने ही नहीं हैं। जब-जब इस दिशा में काम करा है, नुक़सान ही हाथ लगा है।’
मैंने मित्र को हर तरह से समझाने का प्रयास किया लेकिन वह मानने के लिए तैयार ही नहीं थे। मैंने उन्हें बताया कि हाल ही में ऐसा ही कुछ अनुभव मेरे खुद के साथ भी घटा। इंदौर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में बी॰बी॰ए॰ प्रथम वर्ष के ऊर्जावान छात्रों के लिए किए गए सेमिनार में, मैं अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाया।
हम सभी को कभी ना कभी ऐसी स्थिति से दो-चार होना पड़ता है जब हम पूरी तैयारी के बाद भी अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाते या सर्वश्रेष्ठ देने के बाद भी मनचाहा परिणाम नहीं पा पाते। इस असफलता से बाहर आने के लिए हमारे पास तीन विकल्प रहते हैं। पहला, अपना लक्ष्य बदल लें, दूसरा, मेहनत करना छोड़ दें और जीवन को अपनी गति से चलने दें और तीसरा, उसी लक्ष्य के साथ फिर से काम करें।
दोस्तों जीवन में बड़े निर्णय लेकर किए गए काम में जब शुरुआती असफलताएँ मिलती हैं तो सफल होने का दबाव एकदम बढ़ जाता है। इसी दबाव की वजह से इंसान खुद की क्षमताओं पर ही प्रश्न उठाने लगता है। असफलता का डर इतना बढ़ जाता है कि इंसान पुन: उस रास्ते पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता और उसके ऊपर पलायनवादी मानसिकता इतनी हावी हो जाती है कि वह अपने लक्ष्य को छोड़, हालात से समझौता करने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसे लोग अपनी असफलता के लिए अपने भाग्य को दोषी मानने लगते हैं। जबकि उनकी असफलता का कारण उनका भाग्य नहीं, उनकी सोच और मेहनत करने का गलत तरीका होता है।
दोस्तों अगर सफल होना है तो असफलता से घबराएँ नहीं, बस निम्न पाँच सूत्रों को जीवन में अपनाएँ और सफल हो जाए -
पहला सूत्र - असफलता अंत नहीं है
असफलता अंत नहीं बल्कि अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का समय है। असफलता लक्ष्य के क़रीब पहुँचने का एक आसान, समय के साथ परखा हुआ रास्ता है। लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है। मेरी बात से सहमत ना हों तो थॉमस अल्वा एडिसन की कहानी याद कर लीजिएगा। बल्ब के अविष्कार के पूर्व जब उन्हें बार-बार असफलताएँ मिली तो एक पत्रकार ने उन पर तंज कसते हुए कहा था कि आप 9000 से ज़्यादा बार असफल हो चुके हैं तो एडिसन बोले ‘असफल’, बिलकुल नहीं बल्कि मैंने 9000 से ज़्यादा ऐसी तकनीकें खोजी हैं जो बल्ब के अविष्कार में मेरी मदद नहीं करती। दोस्तों आप उनके इस नज़रिए का परिणाम जानते ही हैं, आज उनकी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी हम उनको याद करते हैं।
दूसरा सूत्र - असफलता को बाँटे
आमतौर पर लोग असफल होने के बाद उसे लोगों से छुपाते हैं और समाज से, अपने परिवार से कट कर अलग रहने का प्रयास करते हैं। इसके स्थान पर असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटे, हो सकता है उनके द्वारा दिया गया कोई सुझाव आपको कोई ऐसा विचार दे दे जिसकी आपने कल्पना भी ना करी हो। वैसे इसका एक फ़ायदा और है यह आपको नकारात्मक विचारों के बोझ से हल्का कर देता है जिससे आप रिलैक्स होकर, नकारात्मक विचारों की कड़ी को तोड़कर अपने मन को सकारात्मक विचारों को स्वीकारने के लिए तैयार कर पाते हैं। नया सकारात्मक माइंडसेट आपको पुनः, नई ऊर्जा के साथ सफलता के लिए काम करने के लिए प्रेरित करता है।
आज के लिए इतना ही दोस्तों कल हम असफलता से सफलता की ओर जाने के अंतिम तीन सूत्र सीखेंगे।
-निर्मल भटनागर
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