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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

आत्मा का भी रखें ख़्याल

आत्मा का भी रखें ख़्याल
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Aug 14, 2021

आत्मा का भी रखें ख़्याल…


दोस्तों आज के शो की शुरुआत मैं पिछले दो दिनों में हुए दो अनुभवों के साथ करता हूँ-


पहला अनुभव - काउन्सलिंग के लिए आए बच्चे से ‘भविष्य में आप क्या बनना चाहेंगे?’ पूछने पर उसने बड़ा सीधा सा जवाब दिया ‘मिलिनेयर!’ वैसे दोस्तों उसके जवाब ने मुझे हैरान नहीं किया क्यूँकि आजकल आमतौर पर हर बच्चा ऐसा ही ख़्वाब देखता है, ऐसे ही लक्ष्य बनाता है। मैंने तत्काल उस बच्चे से दूसरा प्रश्न करा, ‘मान लो तुम आज मिलिनेयर बन गए, अब बताओ इन पैसों का क्या करोगे?’ तो वह कुछ भी जवाब नहीं दे पाया। ख़ैर इस बातचीत को यहीं पर रोकते हैं और दूसरे अनुभव पर भी चर्चा कर लेते हैं।


दूसरा अनुभव - कल अल्प प्रवास पर अपने गृह नगर जाने और अपने बचपन के दोस्तों से मिलने का मौक़ा मिला। काफ़ी लम्बे अंतराल बाद बचपन के दोस्तों से मिलने के कारण मैं बहुत उत्साहित था। वैसे बताने की ज़रूरत नहीं है कि अच्छे दोस्तों का साथ हमेशा आपकी ऊर्जा काफ़ी बढ़ा देता है। 


शुरुआती बातचीत के दौरान एक मित्र ने मुझसे प्रश्न किया, ‘और बता तेरा स्कूल कंसलटेंसी का कार्य कैसा चल रहा है?’ मैंने वर्तमान बदलते परिवेश और इस दौर में स्कूलों की वर्तमान स्थिति पर बताना शुरू ही किया था कि एक अन्य मित्र ने मेरी बात को बीच में काटते हुए, एक अजीब सी बात कह दी। ‘यार तू निर्मल से उसके व्यवसाय के बारे में बात कर अपना वक्त क्यूँ बर्बाद कर रहा है? इसे मुफ़्त के काम करने से फ़ुरसत मिलेगी तभी तो व्यवसाय पर ध्यान दे पाएगा।’ उसकी बात सुन मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया क्यूँकि मुझे बहुत अच्छे से पता था कि वह मेरा सच्चा हितैषी है और वाक़ई मेरे लिए चिंतित होने के कारण इस तरह के शब्दों का प्रयोग कर रहा है।


तभी एक अन्य मित्र ने उसे ग़लत तरह से बात करने के लिए टोका तो वह बोला, ‘चलो तुम ही बताओ यह मुफ़्त में रोज़ 3-4 घंटे अपने रेडियो शो और लेख के लिए क्यूँ बर्बाद करता है? मुफ़्त में चाहे जिसकी काउन्सलिंग क्यों करता है?’ बात को ग़लत दिशा में जाता देख, मैंने दोनों को बीच में ही रोकते हुए कहा, ‘मित्र, हम हर काम सिर्फ़ पैसे के लिए नहीं करते हैं, जीवन को अगर ख़ुशी-ख़ुशी जीना है तो दिन का कुछ समय हमें अपनी आत्मा के लिए भी निकालना होगा और मैं रेडियो शो और अपने लेख के माध्यम से अपनी आत्मा को तृप्त करने का प्रयास करता हूँ।’


दोस्तों उपरोक्त दोनों अनुभवों ने मुझे सोचने के लिए मजबूर किया कि आख़िर हमसे गलती कहाँ हो रही है? मेरे अनुसार शायद पैसे या भौतिक चीजों को ही सब कुछ मान लेने के कारण। इसे मैं आपको हमारी वर्तमान सोच और जीवनशैली से समझाने का प्रयास करता हूँ।


इस तेज़ी से दौड़ती और बदलती मशीनी दुनिया में रोज़ एक जैसा काम करते हुए हम खुद भी मशीन बन गए हैं, शायद पैसे कमाने और संसाधन इकट्ठा करने की मशीन। संसाधन और पैसे जोड़ने के पीछे हमारा तर्क अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छे से निभाना रहता है। लेकिन अकसर, इस मशीनी प्रयास में हम खुद कहीं खो जाते हैं और हमारी आत्मा को आवश्यक ऊर्जा मिलना बंद हो जाती है और वह रोज़मर्रा में मिलने वाले नकारात्मक अनुभवों के नीचे दबती चली जाती है। 


तो दोस्तों अब सबसे मुख्य सवाल आता है, ‘आख़िर किस तरह हम अपनी आत्मा को इस तरह के बोझ से मुक्त कर सकते हैं?’ जवाब बड़ा साधारण है, ‘आत्मा के लिए अमृत पान करके!’ अमृत पान अर्थात् हमारी आत्मा को ऐसे अनुभव देना जो उसे अंतहीन, दिशाहीन, जीतोड़ मेहनत के बोझ से मुक्त कर सके और यह कार्य आत्मा को अच्छी लगने वाली बातों को करके किया जा सकता है। यही बात हमें युवा पीढ़ी को भी सीखाना होगी। 


वैसे यह अमृत पान एक अच्छी किताब या एक अच्छी प्रेरणादायक कहानी पढ़कर या फिर कानों के रास्ते आत्मा तक जाकर ऊर्जा देने वाले अच्छे उद्धरणों को सुनकर किया जा सकता है। अकसर, अच्छी किताबें या कुछ अच्छी प्रेरणादायक कहानियां हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए सकारात्मक ऊर्जा से भर देती हैं। यही सकारात्मक ऊर्जा, प्रेरणा बन हमें अपनी सीमाओं को पार करने की शक्ति देकर, हमारे अंदर नई संभावनाओं को जागृत करती है। 


जी हाँ दोस्तों, निश्चित तौर पर आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे। आत्मा के लिए किए गए कार्य आपको सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं और यही ऊर्जा आपको जीवन में रोज़मर्रा में मिलने वाले नकारात्मक अनुभवों से लड़ने की ताक़त देती है। इसके लिए हमें अपनी दैनिक दिनचर्या में आत्मा के लिए अमृत का काम करने वाले, उम्मीद जगाने वाले और जीवन को सम्भावनाओं से भरने वाले कम से कम तीन कार्यों को शामिल करना होगा। जिससे हमारी आत्मा और हमारे दिल को भी मुस्कुराने की वजह मिल सके।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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