फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
इतना तो चलता है
Nov 30, 2021
इतना तो चलता है…
‘हाँ मैं पुराने जमाने का आउटडेटेड इंसान हूँ और मैं ऐसा होते हुए भी बहुत खुश, संतुष्ट और एक अच्छे भविष्य, अच्छी और सच्ची दुनिया के लिए आशान्वित हूँ।’ यही विचार तो सबसे पहले मेरे मन में आए थे जब मैंने मित्र को परिवार के साथ ग़लत शब्दों वाली वेब सिरीज़ ना देखने का सुझाव दिया था और ऐसा करने पर मेरे मित्र ने मुझसे कहा, ‘यार किस दुनिया में रह रहा है, तुझे पता भी है आजकल बच्चे अपने दोस्तों के साथ सामान्यतः इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। वैसे भी पूरी सिरीज़ में इस तरह की भाषा का प्रयोग एक-आध प्रतिशत ही होगा। इतनी सी बात के पीछे ससपेंस वाली इतनी अच्छी सिरीज़ छोड़ दूँ? यह सिरीज़ एक सच्ची घटना पर आधारित है और इसे अंत तक देखने पर तुम समझ पाओगे की इसकी कहानी बुराई पर अच्छाई की जीत, साहस, बलिदान, मेहनत आदि जैसी सकारात्मक और अच्छी बातों का संदेश भी देती है। तुम इस सिरीज़ के रिव्यू पढ़ कर देखो। मेरे ख़याल से तो तुम्हें भी इसे देखना चाहिए।’
मुझे नहीं पता मैं सही हूँ या ग़लत पर मित्र के इतना कहने या समझाने के बाद भी मैं उनकी बात से सहमत नहीं था और कम से कम ‘इतनी सी बात…’ बात वाली उनकी सोच से तो बिलकुल भी नहीं। लेकिन फिर भी एक बार विरोध जताने के बाद, उस वक्त मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा क्यूंकि उनके बच्चों के सामने मैं उन्हें ज़्यादा कुछ कहना नहीं चाहता था।
असल में दोस्तों ‘इतना तो चलता है…’ इस रवैए के चक्कर में हमें पता ही नहीं चलता है कि हम कब ग़लत आदतों के अथवा ग़लत संगत के शिकार बन जाते हैं। हर ग़लत चीज़ या आदत की शुरुआत थोड़े से ही होती है। कुछ दिनों बाद उसी मित्र से फिर मिलने का मौक़ा मिला। इस बार मैंने इस विषय को अपने नज़रिए से उन्हें विस्तारपूर्वक समझाने का निर्णय लिया और इसके लिए मैंने उन्हें अपने साथ नाश्ते पर चलने का निमंत्रण दिया। वे तुरंत राज़ी हो गए।
हम दोनों पैदल ही पास ही में स्थित एक बगीचे में पहुँच गए और वहाँ लगी बेंच पर बैठ कर बातें करने लगे। बगीचे के बाहरी हिस्से में ही एक प्रसिद्ध फ़ूड स्टाल से समोसे-कचौरी की आती ख़ुशबू को सूंघते ही वे बोले, ‘यार सुगंध से ही पेट भरना होगा या तू कुछ खिलाएगा भी?’ मैंने तुरंत उनसे माफ़ी माँगी और उन्हें कुछ पल का इंतज़ार करने के लिए कहा और उस फ़ूड स्टाल से नाश्ता लेने चला गया।
कुछ ही मिनटों बाद मेरे हाथ में पोहा, समोसा और जलेबी देख मित्र एकदम खुश हो गए और बोले, ‘यार सुगंध ही बता रही है की यह कितना स्वादिष्ट बना होगा।’ मैं जवाब में मुस्कुरा दिया और बोला, ‘तुम्हें शायद पता नहीं होगा इस स्टाल पर सिर्फ़ जैविक सामग्री का ही उपयोग किया जाता है। तुम इस नाश्ते को खाना शुरू करो उसके पहले मैं तुम्हें एक बात बता देना चाहता हूँ कि इस नाश्ते को लाते वक्त जब मैं उस पेड़ के नीचे से गुजर रहा था तब ऊपर से पानी जैसा कुछ इसके ऊपर गिरा है।
मेरे इतना कहते ही मित्र के चेहरे का भाव बदल गया लेकिन उसे नज़रंदाज़ करते हुए मैंने कहा, ‘यार 99.99 प्रतिशत खाना एकदम शुद्ध, सात्विक और जैविक पदार्थों से बना है, अगर थोड़ा सा इस पर कुछ गिर भी गया तो क्या फ़र्क़ पड़ता है?’ मित्र लगभग ग़ुस्से से बोले, ‘पहले तो तू इसे फेंक।’ मैंने मित्र से फिर कहा, ‘यार उसकी मात्रा इतनी कम थी की तुम्हें इसके स्वाद में कुछ भी अंतर नहीं लगेगा और वैसे भी यह बहुत उच्च क्वालिटी के जैविक सामान से बनाया गया है।
मेरे इतना बोलते ही मित्र को ग़ुस्सा आ गया और वो बोला, ’तू पहले इसे फेंक! कम या ज़्यादा गंदगी से क्या फ़र्क़ पड़ता है। गंदगी तो गंदगी है।’ उसके इतना बोलते ही मैं उसके पास गया और बोला, ‘यही वो कारण है जो मैं तुम्हें उस दिन वेब सिरीज़ देखने से रोक रहा था। जिस तरह ज़रा सी गंदगी तुम्हारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। ठीक उसी तरह नकारात्मक या ग़लत शब्द या विचार तुम्हारे या परिवार के मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।’
जी हाँ दोस्तों रोज़मर्रा के जीवन में हम अकसर अपने सामने घटने वाली ग़लत बातों को नज़रंदाज़ करते हैं या उसे आज के युग के हिसाब से सामान्य मान छोड़ देते हैं। लेकिन यही छोटे-छोटे नकारात्मक संस्मरण हमारे नज़रिए, हमारे जीवन मूल्यों को बर्बाद कर देते हैं। जिस तरह बहुत सारे दूध को दही में परिवर्तित करने के लिए एक चम्मच दही ही काफ़ी रहता है थी उसी तरह एक अच्छा या बुरा विचार हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर