फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
एक चुटकी ईमानदारी
April 13, 2021
एक चुटकी ईमानदारी…
सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफ़ॉर्म पर चले जाइए या फ़ोन पर की गई बातचीत को याद करके देख लीजिए या फिर किसी भी सामूहिक चर्चा के दौरान की गई बातों को याद करिए, एक सामान्य बात आप पाएँगे कि हम किसी ना किसी की ईमानदारी या कार्य के प्रति ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैए को लेकर चर्चा ज़रूर करते हैं। चाहे फिर वह हमारी जान बचाने के लिए खुद की जान को जोखिम में डालकर अपनी ड्यूटी निभाने वाले डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ़ या आवश्यक सुविधाओं को मुहैया कराने वाले पुलिस, बिजली विभाग या नगर पालिका आदि के कर्मचारी ही क्यूँ ना हों। दोस्तों, आप सभी से मेरा एक प्रश्न है, अगर समाज की स्थिति वाक़ई इतनी चिंताजनक है तो आख़िर इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है?
चलिए उत्तर देने से पहले आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ। अपनी ईमानदारी, नेक स्वभाव व सभी लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहने की वजह से रामू काका अपने गाँव में बड़े प्रसिद्ध थे। वे अक्सर अपने सभी मित्रों को साथ में खाना खाने और मिलने-जुलने के लिए अपने यहाँ बुला लिया करते थे। एक दिन उन्होंने सभी मित्रों के साथ खेत पर पिकनिक मनाने का प्रोग्राम बनाया।
सुबह जल्दी ही सभी मित्र खेत पर एकत्रित हो गए और नाश्ते के साथ-साथ हँसी-ठिठोली व बातचीत का दौर शुरू हो गया। दोपहर को भोजन पकाते वक्त रामू काका को एहसास हुआ कि नमक की मात्रा आवश्यकता से कम है, उन्होंने तुरंत अपने बेटे को बुलाया और उसे पैसे देते हुए बोले, ‘बेटा बाज़ार से नमक का एक पैकेट लेकर आ जाओ। लेकिन नमक ख़रीदते वक्त एक बात याद रखना ना तो उसकी मात्रा कम लेना और ना ही ज़्यादा साथ ही उसका दाम भी सही-सही चुकाना अर्थात् ना तो कम ना ही ज़्यादा।’
इतने छोटे और कम क़ीमत वाले सामान को लाने के लिए पिता से इतनी हिदायत सुन बेटे को थोड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अपने पिता से एक प्रश्न पूछा, ‘पिताजी ज़्यादा दाम पर ना लाना तो समझ आता है लेकिन मोल-भाव करके कम दाम पर नमक लाने में हर्ज ही क्या है?’
रामू काका बच्चे की दुविधा समझ गए और उसे समझाते हुए बोले, ‘देखो बेटा ऐसा करना हमारे पूरे गाँव को बर्बाद कर सकता है।’ पिता का जवाब सुन बेटे की दुविधा और बढ़ गई, उसने पिता से फिर से एक और प्रश्न पूछा, ‘मैं समझ नहीं पाया पिताजी, कम दाम पर नमक लाना पूरे गाँव को बर्बाद कैसे कर सकता है?’ रामू काका बोले, ‘तुम खुद ही सोचकर देखो कोई भी व्यक्ति कम दाम पर सामान क्यों बेचेगा? उसे पैसे कि सख़्त ज़रूरत होगी तभी ना? और अगर हम उसकी इस स्थिति का फ़ायदा उठाएँगे तो हम निश्चित तौर पर उसकी कड़ी मेहनत, बहाए हुए पसीने का अपमान करेंगे।’
अब बच्चे के साथ वहाँ मौजूद अन्य लोग भी दुविधा में थे, इस बार सब ने मिलकर पूछा, ‘बाक़ी तो समझ आया पर इससे गाँव कैसे बर्बाद हो जाएगा?’ रामू काका ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘साथियों थोड़ा - सा गहराई के साथ सोच कर देखिए, पहले समाज में ज़रा सी भी बेईमानी नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे हम लोगों में से ही कुछ लोगों ने अपने मुनाफ़े के लिए एक-एक चुटकी बेईमानी मिलाना शुरू कर दिया और सोचते रहे ‘इतने से में क्या होगा’ लेकिन अब खुद ही देख लो हम कहाँ पहुँच गए हैं।’
जी हाँ दोस्तों एक चुटकी बेईमानी हमें यहाँ तक ले आई है कि हम ईमानदारी को भी शक की नज़रों से देखने लगे हैं। अब सबसे महत्वपूर्ण बात आती है कि इससे निपटा कैसे जाए? जिस तरह यह बेईमानी एक दिन में नहीं फैली है उसी तरह यह बेईमानी एक दिन में खत्म नहीं होगी लेकिन इसके बाद भी मेरी नज़र में इसका एक साधारण - सा समाधान है। सबसे पहले हमें अपना लालच छोड़ना होगा और एक चुटकी ईमानदारी अपने हर कार्य में बढ़ानी होगी।
विश्वास न हो दोस्तों तो ज़रा हमारे बीच के ही इन सामान्य लोगों के असामान्य कार्यों को देख लीजिए, उज्जैन निवासी श्री मनीष शुक्ला को ही लीजिए, दो-तीन वर्ष पूर्व एक दिन एक कबाड़ी उनके घर के सामने से एक मेडिकल बेड को लेकर जा रहा था। उसे देख उनके मन में विचार आया कि यह तो इसे ले जाकर कबाड़े में दे देगा। उन्होंने उस कबाड़ी से उस बेड को ख़रीद लिया और उसे ज़रूरत मंद लोगों को निशुल्क उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया। आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे वे अन्य मेडिकल उपकरणों को भी निशुल्क उपलब्ध करवाने लगे।
कोविद के दौरान मरीज़ों को परेशान होता देख उन्होंने 6 सिलेंडरों के साथ निशुल्क ऑक्सीजन उपलब्ध करवाना शुरू किया। जो जल्द ही समाज की मदद से 40 सिलेंडरों तक पहुँच गया। हाँलाकि उनका लक्ष्य लोगों की मदद से इसे सौ सिलेंडर तक पहुँचाने का है। उनकी इस सेवा से पिछले तीन दिनों में ही कई लोगों की जान बच पाई है। उन्हें इस तरह कार्य करता देख उज्जैन के ही ऑटो चालक माज़िद भाई भी आगे आए और उन्होंने लोगों को अस्पताल आने जाने और ऑक्सीजन सिलेंडर पहुँचाने के लिए निशुल्क ऑटो सेवा देना प्रारम्भ कर दिया।
दोस्तों ऐसे और भी कई लोग हैं जो अपने कार्य में एक चुटकी अतिरिक्त अच्छाई डाल कर इस दुनिया को रहने के लिए और बेहतर जगह बना रहे हैं। उदाहरण के लिए उज्जैन की ही सिस्टर गीता वर्मा, सिस्टर पुष्पा वर्मा, सिस्टर अंजलि, डॉक्टर शुभम या शीला बाई को ही देख लीजिए जिन्होंने अस्पताल में आग लगने पर खुद की जान की परवाह ना करते हुए कोविद मरीज़ों को गोदी में उठाकर सुरक्षित बाहर निकाला।
दोस्तों ईमानदारी, अच्छाई बात करने से नहीं अपितु छोटे-छोटे कार्य करने से बढ़ती है और समाज में संवेदनशीलता बढ़ाती है। आईए दोस्तों आज मिलकर एक निर्णय लेते हैं कि जिस कार्य को करने में हमारी आत्मा साथ नहीं देगी उस कार्य को नहीं करेंगे। साथ ही अपने द्वारा किए जाने वाले रोज़मर्रा के हर कार्य में एक चुटकी ईमानदारी बढ़ाकर धीरे-धीरे इस माहौल को बदलेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com