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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

क्या आपने दौलत और शोहरत कमा ली है

क्या आपने दौलत और शोहरत कमा ली है
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Dec 29, 2021

क्या आपने दौलत और शोहरत कमा ली है?


‘आपके लिए दौलत-शोहरत के मायने क्या हैं?’ स्वागत के लिए कहे जाने वाले सामान्य शब्दों के स्थान पर अहमदाबाद में इस प्रश्न से हुए स्वागत ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया। इसकी मुख्य वजह इस प्रश्न को पूछने वाले व्यक्ति की उम्र थी। मैंने उस 20-22 वर्षीय युवा की आँखों में आँखें डालते हुए कहा, ‘तुम इस प्रश्न का उत्तर अपनी उम्र के हिसाब से सुनना चाहते हो या मेरी अपनी सोच अथवा समझ के आधार पर।’


उस युवा का प्रश्न वाक़ई गहरे अर्थ लिए हुए था, जिसका जवाब बिना सोचे-समझे देना थोड़ा मुश्किल था। इसलिए मैंने सवाल के जवाब में सवाल ही पूछ लिया, जिससे मुझे उस पर विचार करने के लिए थोड़ा समय मिल जाए। लेकिन उस युवा ने मुझे ज़रा सा भी समय देने के स्थान पर सीधा-सपाट जवाब दिया, ‘आपसे प्रश्न पूछा है, इसलिए आप अपनी सोच के आधार पर जवाब दें।’ मैंने मुस्कुराते हुए उस युवा से कहा, ‘समय और स्वाँस मेरे लिए सबसे क़ीमती है और परिवार में मान मेरे लिए असली शोहरत है। लोग बाहर मेरे लिए ताली बजाए और घर में लोग असंतुष्ट रहते हुए गालियाँ दें, ऐसी तालियाँ और शोहरत किस काम की। अब रही अंतिम बात दौलत की तो उसके लिए मैं तुम्हें राजा भृतहरि की कहानी और उनके जीवन से जुड़ी एक घटना सुनाता हूँ।


प्राचीन उज्जैन के प्रतापी राजा भृतहरि अपनी तीसरी पत्नी पींगला पर अत्यधिक विश्वास किया करते थे और उसके प्यार में मोहित होकर राजा के रूप में अपने कर्तव्यों को ही भूल गए थे। आध्यात्मिक गुरु गोरखनाथ से प्रसाद के रूप में मिले फल की बदौलत उन्हें पता चला कि उनकी सोच के विपरीत रानी पींगला उन्हें धोखा दे रही हैं तो उनके मन में वैराग्य जाग गया और उन्होंने अपना राज-पाट, धन-दौलत सब कुछ विक्रमादित्य को सौंप दिया और स्वयं 12 वर्षों तक एक गुफा में बैठकर तपस्या करने लगे। बाद में राजा भृतहरि ने वैराग्य शतक, शृंगार शतक एवं नीति शतक की रचना करी।


राजा भृतहरि अपनी साधना पूर्ण कर जंगल से जा रहे थे कि अचानक ज़मीन पर सूर्य के सामान चमकती हुई किसी चीज़ ने उनका ध्यान भंग करा। उन्होंने उसे क़रीब से देखा तो एहसास हुआ कि यह तो बहुत ही क़ीमती हीरा है जिसके सामने सूर्य की चमक भी फीकी लग रही थी, उन्होंने ऐसा हीरा पहले कभी देखा नहीं था। एक पल के लिए उन्होंने सोचा, ‘मैं इस हीरे को उठा लेता हूँ।’ लेकिन अगले ही पल उनके मन में ख़याल आया कि ऐसे कई हीरे-जवाहरात, राज-पाट छोड़कर ही तो मैंने तपस्या का रास्ता चुना था। भीतर की आवाज़ सुनते ही उनकी चेतना जाग गई और उन्होंने उस हीरे को उठाने का विचार त्याग दिया।


राजा भृतहरि को यह निर्णय लिए अभी कुछ ही पल हुए थे कि उन्होंने नंगी तलवार लिए दो घुड़सवारों को अपनी ओर आते हुए देखा। हीरे के समीप पहुँचते ही दोनों घुड़सवार हीरे पर अपना हक़ जमाने लगे। बातचीत से कोई हल ना निकलता देख दोनों ने तलवार उठा ली और भीड़ गए। कुछ ही मिनटों में इस हीरे के लिए की गई लड़ाई का परिणाम दोनों की मृत्यु के रूप में आया। राजा भृतहरि ने देखा हीरा, जिसके लिए यह युद्ध लड़ा गया था, अभी भी ज़मीन पर पड़ा-पड़ा अपनी चमक बिखेर रहा था वहीं दोनों योद्धा की लाश ज़मीन पर लहूलुहान पड़ी थी। 


कहानी पूरी होते ही मैंने उस युवा से कहा, ‘अगर तुम उक्त कहानी के घटनाक्रम को बारीकी से देखोगे तो तुम्हें मेरा जवाब मिल जाएगा। लेकिन फिर भी मैं अपने नज़रिए से इसे तुम्हें बताता हूँ। राजा भृतहरि के मन में हीरे को देख लालच आया लेकिन उन्होंने उस निर्जीव चीज़ के आकर्षण से खुद को बचाया और अपनी खुद की चमक बढ़ाने पर ध्यान दिया। दूसरी ओर दोनों योद्धा उस निर्जीव पत्थर की चमक में उलझ गए और अपने प्राण गँवा दिए। वहीं धरती पर पड़े हीरे को एहसास ही नहीं था कि उसकी चमक दूसरों को आकर्षित कर रही है, उसे अपनी क़ीमत का भी अंदाज़ा नहीं था।


यही स्थिति हमारी भी है, भौतिक चीज़ें, जिसकी सही मायने में क़ीमत कुछ भी नहीं है, के आकर्षण में हम अपना स्वास्थ्य, अपना जीवन लुटाते, गँवाते जाते हैं। जबकि हमें पता है कि अगर हमने इन्हें हासिल भी कर लिया तो इनका और हमारा साथ बहुत थोड़े समय का है। इसलिए मेरी नज़र में मेरी दौलत, लोगों के मन में मेरे लिए अच्छे भाव, अच्छी यादें, अच्छा स्वास्थ्य और जीवन को पूर्ण रूप से जीने का भाव है। जी हाँ दोस्तों, याद रखिएगा थोड़ा पाने की लालसा में, आकर्षण में, हमें बहुत कुछ नहीं खोना है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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