फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
ख़ुशहाली का सूत्र - प्लग-इन एंड प्लग-आउट


Sep 24, 2021
ख़ुशहाली का सूत्र - प्लग-इन एंड प्लग-आउट !
घर में जाने के पूर्व क्या आप बाहर के कार्य, ग़ुस्सा, तनाव और परेशानियों को घर के बाहर छोड़ते हैं? क्या? नहीं समझ पाए आप इस बात को? चलिए, कोई दिक़्क़त नहीं, मैं इसे थोड़ा विस्तार से समझाने का प्रयास करता हूँ।
अकसर पारिवारिक और रिश्तों से सम्बंधित काउन्सलिंग के दौरान मैंने एक बात कॉमन पायी है कि परिवार और रिश्तों में तनाव आमतौर पर बाहरी या कामकाजी नकारात्मक भावों को घर के अंदर ले जाने से शुरू होता है और अगर इसको समय से प्रबंधित ना किया जाए तो यह धीरे-धीरे हमारी मानसिक शांति और परिवार में आपसी प्यार को खत्म करना शुरू कर देता है।
नकारात्मक भावों की वजह से उपजे तनाव, दबाव और ग़ुस्से को प्रबंधित करके अपनी शांति और रिश्ते बचाने का सबसे आसान तरीक़ा है, ‘डिटैचड़ अटैचमेंट’ अर्थात् चीजों, घटनाओं, परिस्थितियों और लोगों के साथ रहते हुए भी उनसे कटे हुए रहना या दूर रहना। वैसे जो मैं कह रहा हूँ थोड़ा सा मन में उलझन पैदा करने वाला है लेकिन मैं इसे आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ।
राजेश का मन आज थोड़ा उखड़ा हुआ था क्यूँकि ऑफ़िस में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के बाद भी अधिकारी कभी खुश होते ही नहीं थे, अपितु हमेशा टार्गेट, डेडलाइन, प्रोजेक्ट प्लानिंग आदि को लेकर दूसरों से तुलना कर आलोचना में लगे रहते थे। ऐसा नहीं है कि राजेश ने बॉस की अपेक्षा अनुसार खुद में परिवर्तन लाने का प्रयास नहीं करा, बस वह अपने वरिष्ठों की अपेक्षाओं को पूरी नहीं कर पा रहा था। इसी वजह से राजेश अब चिड़चिड़ा होता जा रहा था। अकसर ऑफ़िस से साथ आयी यह चिड़चिड़ाहट ग़ुस्से के रूप में घर पर पत्नी व बच्चों पर निकला करती थी।
राजेश की ही तरह उसकी पत्नी रश्मि भी नौकरी किया करती थी। उसके कार्यालय का भी माहौल कुछ-कुछ राजेश के कार्यालय की ही तरह था। उसकी दिनचर्या भी राजेश की दिनचर्या के मुक़ाबले ज़्यादा उलझन और व्यस्तता वाली रहती थी क्यूँकि उसे कार्यालय और घर दोनों की ज़रूरतों को पूर्ण करते हुए दोनों में सामंजस्य बैठाना पड़ता था। कार्यालय से आने के बाद उसे घर पहुँचकर बच्चों को सम्भालना, उन्हें पढ़ाना, उनकी फ़रमाइशों को पूरा करना, खाना बनाना, नौकरानी को हैंडल करना, अगले दिन की तैयारी करना, आदि अनेक काम करना होते थे। इसके बाद भी वह हमेशा खुश और प्रसन्नचित्त रहती थी।
राजेश रश्मि को इस तरह हमेशा खुश व प्रसन्नचित्त देख हैरान रहता था। एक दिन उसने रश्मि से इसका राज पूछा। रश्मि बोली, ‘हमारे घर के बाहर लगे पीपल के पेड़ की वजह से मैं यह कर पाती हूँ।’ राजेश हैरानी से बोला, ‘पीपल के पेड़ की वजह से? मैं समझा नहीं कुछ, थोड़ा विस्तार से बताओ।’ रश्मि बोली, ‘तुमने देखा होगा घर से निकलते समय मैं कुछ पलों के लिए पीपल के पेड़ के पास रुकती हूँ और ठीक इसी तरह कार्यालय या बाहर आते वक्त भी मैं पीपल के पेड़ के पास रुकती हूँ, तुमने कभी सोचा है मैं ऐसा क्यूँ करती हूँ? असल में बाहर से आते वक्त मैं अपनी सारी परेशानियाँ, दिक़्क़तें, नकारात्मक भाव, बचे हुए काम आदि सभी कुछ पीपल के पेड़ पर टांग देती हूँ और ठीक इसी तरह जब घर से कहीं जाती हूँ तो घर की सभी ज़िम्मेदारियों या परेशानियों को वहाँ टांग कर बाहर वाला थैला उठा लेती हूँ। अकसर मैंने पाया है कि बहुत सारी दिक़्क़तें, परेशानियाँ तो पीपल का पेड़ ही कम कर देता है।
जी हाँ दोस्तों हमारी ज़्यादातर परेशानियों का कारण ज़िम्मेदारियाँ, आकांक्षायें, अपेक्षाओं आदि का ग़लत प्रबंधन करना रहता है। अकसर हम बाहर की परेशानी घर में और घर की परेशानी बाहर लेकर घूमते रहते हैं। ऐसे में ना तो हम बाहर के कार्यों को पूर्ण समर्पण के साथ कर पाते हैं ना ही घर पर पूरा ध्यान दे पाते हैं। इसीलिए मैंने शुरू में आपसे पूछा था कि, ‘क्या आप ग़ुस्सा, तनाव और परेशानियों को घर के बाहर टांग कर घर में जाते हैं?’ अगर नहीं तो दोस्तों इस छोटे से उपाय को आज ही काम में लेना शुरू कर दें घर की ज़िम्मेदारियों को अपने साथ काम पर ना ले जाएँ और ना ही कामकाजी तनाव को अपने ऊपर, अपने घर वालों पर या अपने निजी जीवन में हावी होने दें। दोस्तों ज़िंदगी और कुछ भी नहीं सिर्फ़ विभिन्न पहलुओं के बीच बेहतरीन तालमेल बैठाने का नाम है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर