फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
खुश रहना है तो ख़ुशियाँ बाँटिए


Sep 22, 2021
खुश रहना है तो ख़ुशियाँ बाँटिए!!!
दोस्तों, मेरा मानना है कि खुश रहते हुए अपना जीवन जीना एक कला है और अगर यह कला है तो हमें अन्य कलाओं जैसे ही इसमें महारथ हासिल करने के लिए इसका बार-बार अभ्यास करना होगा। लेकिन दोस्तों आमतौर पर हमें इसका ठीक विपरीत, ख़ुशियों को टालना सिखाया जाता है। जी हाँ दोस्तों, भविष्य को बेहतर बनाने के लिए आज की ख़ुशियों को कल पर टालना। अपनी बात के समर्थन में आपको कुछ घटनाएँ याद दिला देता हूँ जो हम सभी के जीवन में घटी हैं…
1) पहले बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षा को अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर लो फिर सब ठीक हो जाएगा।
2) अच्छे कॉलेज से पढ़ाई पूरी कर लो फिर जो चाहो वो करना।
3) एक अच्छी नौकरी मिल जाए फिर सब सेट हो जाएगा और फिर शादी, घर, गाड़ी, बैंक बैलेंस इत्यादि।
दोस्तों, हम इसी तरह से अपनी ख़ुशियाँ आगे टालते जाते हैं जबकि हक़ीक़त तो कुछ और ही है। ख़ुशियाँ टालने से कभी नहीं मिलती और ना ही वो किसी चीज़, पद, प्रतिष्ठा या पैसा पाने से मिलती है। तो फिर ख़ुशी पाने का सबसे आसान रास्ता क्या है? मेरी नज़र में दोस्तों ख़ुशियों को बाँटना! चलिए इसी बात को मैं कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूँ-
रोज़ की ही भाँति राजू आज फिर सामान ख़रीदने के लिए बाज़ार गया। अभी वह सब्ज़ी आदि ले ही रहा था कि उसकी नज़र किनारे पर बैठी बुजुर्ग महिला पर गई। वह उसे देखते ही बोली, ‘बाबूजी संतरे ले लो, आज अभी तक बोहनी नहीं हुई है। सामान नहीं बिकेगा तो खाना कैसे मिलेगा?’ बुजुर्ग फल वाली के शब्द ने राजू को अंदर तक हिला दिया। वो सोच रहा था एक और तो बड़ी दुकानों पर भीड़ लगी हुई है दूसरी और इस उम्र में मेहनत कर खाने का प्रयास करने वाली यह बुजुर्ग औरत अच्छे फल लेकर भी भूखी बैठी हुई है।
राजू उस बुजुर्ग फल वाली के यहाँ गया और उनसे बोला, ‘अम्मा लाओ एक किलो संतरे दे दो।’ बुजुर्ग महिला की आँखों में चमक आ गई, उसने तुरंत संतरे तोले और राजू से पैसे लेकर उसे दे दिए। राजू ने तुरंत उस थैली में से एक संतरा निकाला और उसे छील कर एक फाँक खाई और बचा हुआ उस बुजुर्ग महिला को देकर बोला, ‘अम्मा, संतरे तो अच्छे नहीं है। तुम्हीं खा कर देख लो।’ बुजुर्ग महिला ने राजू के हाथ से संतरा लिया और खाकर कुछ बोलती उससे पहले ही राजू वहाँ से चला गया।
अगले दिन फिर राजू उस बूढ़ी महिला के पास पहुँचा, फिर से 1 किलो संतरा लिया और उसमें से एक संतरा निकालकर छीला और एक फाँक खाकर फिर से उसे ख़राब बताया और बचा हुआ संतरा बुजुर्ग महिला को देकर आगे बढ़ गया। अब तो यह उसका रोज़ का ही नियम हो गया था।
एक दिन राजू के साथ उसकी पत्नी भी बाज़ार आयी थी उसने जब राजू को इस तरह करते हुए देखा तो वह बोली, ‘अम्मा रोज़ तुम्हें इतने अच्छे संतरे देती है तुम नाहक ही उसमें कमी निकालकर भला-बुरा कहते हो। राजू पत्नी की बात सुन मुस्कुराते हुए बोला, ‘अरे पगली कमी निकालना तो बस एक बहाना है, असल में मैं उसे इस तरह एक संतरा खिला देता हूँ। इससे उसका नुक़सान भी नहीं होता है और उसके पेट में एक फल भी चला जाता है।’
फल वाली बुढ़िया और राजू के बीच की रोज़ की इस चिक-चिक को पास में ही सब्ज़ी बेचने वाली भी देखा करती थी। उस दिन उसने भी बुजुर्ग फल वाली महिला से कहा, ‘अम्मा, ये लड़का रोज़ तुम्हारा अच्छे संतरों की बुराई करता है, उसमें कमियाँ निकालता है। फिर भी मैं देखती हूँ तुम रोज़ उसे अच्छे से अच्छे संतरे तोल कर देने के साथ एक संतरा अतिरिक्त देती हो। आख़िर इस बेकार लड़के के लिए तुम अपना नुक़सान क्यों करती हो?’
सब्ज़ी वाली की बात सुन बुजुर्ग महिला मुस्कुरा दी और हंसते-हंसते बोली, ‘पगली वो मुझे एक संतरा खिलाने के लिए, मेरे संतरों या मुझे भला-बुरा कहता है। उसको लगता है जैसे मैं उसके प्यार भरे तरीक़े को पहचान नहीं पा रही हूँ। असल में वजन में अतिरिक्त संतरा उसके इसी प्यार की वजह से चला जाता है।
सोच कर देखिए दोस्तों, ना राजू का नुक़सान हुआ ना ही उस बुजुर्ग महिला का, पर इस छोटे से रोज़मर्रा के काम में दोनों का ही सुख छुपा हुआ है। विश्वास कीजिएगा जीवन का आनंद, असली मज़ा ऐसी छोटी-छोटी बातों में ही छुपा हुआ है। ख़ुशियाँ पैसों से नहीं ख़रीदी जा सकती है वह तो दूसरों के प्रति आदर और प्रेम की भावना से किए गए छोटे-मोटे कार्यों, बातों से पाई जा सकती है। यही छोटी-मोटी बातें हमारे जीवन में मिठास घोल देती हैं, इसीलिए तो कहते हैं, ‘ख़ुशी बाटने से बढ़ती है और दुःख बाँटने से घटता है’ और साथ ही दोस्तों देने में जो सुख है वो पाने में नहीं, अगर विश्वास ना हो तो आज किसी को मुस्कुराहट देकर देखिएगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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