फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
खोजें सुख, अपने अंदर


Dec 5, 2021
खोजें सुख, अपने अंदर !!!
पिछले दो दिन से स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण लॉकडाउन के समान ही एक बार फिर से घर पर रहने और परिवार के साथ कुछ वक्त बिताने का मौक़ा मिला। हालाँकि बुख़ार के कारण मैंने अलग कमरे में रहने का निर्णय लिया लेकिन इस दौरान मैंने लॉकडाउन के दौरान और बाद में हमारे व्यवहार में आए परिवर्तन की तुलना करने का निर्णय लिया।
लॉकडाउन के दौरान एक ओर जहां हमारा पूरा ध्यान अपने इनर सर्कल अर्थात् परिवार, कुछ करीबी रिश्तेदारों और दोस्तों की सलामती, हाल-चाल पर नज़र रखने पर था। अर्थात् हम भौतिक ज़रूरतों से ज़्यादा भावनात्मक ज़रूरतों पर ध्यान दे रहे थे और हम सभी ने अपनी प्राथमिकताओं को सही तरीक़े से परिभाषित कर लिया था। लेकिन हम अपनी नई सोच या प्राथमिकताओं पर ज़्यादा दिन तक टिक नहीं पाए। कोरोना से स्थिति थोड़ी सी सामान्य होते ही हम सभी बातों को भूल वापस से अपने पुराने ढर्रे पर आ गए। अर्थात् भावनात्मक ज़रूरतें या नई प्राथमिकताएँ एक बार फिर हमारे लिए गौण हो गई और हमारा पूरा ध्यान अपने कार्य पर शिफ़्ट हो गया। शायद तात्कालिक रूप से हम में से कई लोगों के लिए यह ज़रूरी भी था पर क्या दोस्तों जीवन में इसी तरह चलना ठीक रहेगा? मैं किसी को सही या ग़लत तो नहीं ठहरा सकता हूँ लेकिन अपनी बात को समझाने के लिए एक कहानी साझा करता हूँ। यह कहानी सोशल मीडिया पर श्री अज़ीज़ द्वारा साझा की गई थी।
पार्टी में एक युवा लड़के को बहुत सुंदर सी लड़की पसंद आ गई। उसने मन ही मन निर्णय लिया की वह कुछ भी हो जाए उसी से शादी करेगा। अगले दिन उस युवा ने अपनी बात पिता को बताते हुए कहा, ‘पिताजी मैंने शादी करने का निर्णय लिया है और उसके लिए एक लड़की भी पसंद कर ली है। वह बहुत ही ज़्यादा सुंदर है। पिता ने बेटे का समर्थन करते हुए उससे उस लड़की से मिलवाने के लिए कहा।
अगले दिन वह युवा उस लड़की को पिता से मिलवाने के लिए ले आया। पिता उस लड़की को देख मंत्रमुग्ध हो गए और बोले, ‘तुम इस लड़की के लायक़ नहीं हो। उसे जीवन भर खुश रखना तुम्हारे बस की बात नहीं है। उसे तो सिर्फ़ वह इंसान खुश रख सकता है जिसके पास कुछ अनुभव हो, पैसा हो और जिसकी समाज में प्रतिष्ठा हो, जैसे मैं। वह युवा अपने पिता का रवैया देख हैरान था उसने तुरंत पिता के सामने अपना विरोध जताते हुए कहा, ‘पिताजी मैं युवा हूँ, पढ़ा लिखा और स्वस्थ भी हूँ और रही बात प्रतिष्ठा, पैसे और अनुभव की तो वह समय के साथ मेरे पास आ जाएगा।’ ब
काफ़ी देर तक आपस में बहस करने, समाधान तक पहुँचने का प्रयास करने के बाद भी वे दोनों जब किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए तो उन्होंने पुलिस की मदद लेने का निर्णय लिया। वे थाने गए और अधिकारी को अपनी पूरी कहानी कह सुनाई। अधिकारी ने उस लड़की से मिलने और उसकी राय जानने के बाद अपना फ़ैसला सुनाने का निर्णय लिया। पिता और बेटे ने तुरंत उस लड़की को वहाँ बुलवा लिया। उस लड़की की सुंदरता देख पुलिस अधिकारी भी उस पर मोहित हो गया और बोला, ‘तुम दोनों ही उसके लायक़ नहीं हो। उसे खुश रखने के लिए उपरोक्त बातों के साथ समाज में रुतबा और ताक़त रखने वाला इंसान की ज़रूरत पड़ेगी, जैसे मैं। अब उस लड़की को पाने का झगड़ा और बढ़ चुका था। तीनों आपस में लड़े जा रहे थे। अंत में कोई समाधान ना निकलता देख उन्होंने शहर के सबसे बड़े नेता, मंत्री जी से मदद लेने का निर्णय लिया।
मंत्री ने उस लड़की को देखते ही खुद उससे शादी करने का ऐलान करते हुए कहा, ‘इसे सिर्फ़ मेरे जैसा व्यक्ति जिसके पास पैसा, पद, प्रतिष्ठा, ताक़त, शक्ति सब कुछ हो, वही खुश रख सकता है। मंत्री की बात सुन अब झगड़ा चार लोगों में होने लगा। वे चारों उस देश के राजा के पास पहुंचे। राजा ने उस लड़की को देखते ही कहा, ‘इस सुंदर लड़की को तो राज सुख मिलना चाहिए। इसके लिए तो हमारा राजकुमार सर्वाधिक उपयुक्त है।
सभी को आपस में लड़ता देख वह लड़की पहली बार बोली, ‘आप सभी लोग आपस में मत लड़िए। हम एक रेस लगाते हैं मैं आगे दौड़ती हूँ और आप सभी में से जो मुझे पकड़ लेगा मैं उससे शादी करूँगी।’ सभी लोग उस लड़की द्वारा दिए गए समाधान से खुश थे। लड़की के तेज़ गति से दौड़ना शुरू करते ही पाँचों लोग उसके पीछे लग गए। वे बिना कुछ सोचे समझे उस लड़की के पीछे दौड़े चले जा रहे थे। दौड़ते-दौड़ते अचानक रास्ते में एक बड़ा अंधेरा सा गड्डा आया और वे पाँचों उस में गिर गए। उनके उस गड्डे में गिरते ही वह लड़की वापस आयी। उसे देखते ही पाँचों लोगों ने उससे लगभग एक साथ ही पूछा, ‘ऐ सुंदर लड़की आख़िर तुम हो कौन?’ वह लड़की मुस्कुराते हुए बोली, ‘मैं सुख हूँ!!! आप लोगों की ही तरह अकसर लोग मुझे पाने के लिए दौलत, शोहरत, ताक़त, प्रतिष्ठा आदि को ज़रूरी मान लेते हैं और इन्हें पाकर मुझे पाने के लिए एक अनजानी दौड़ में लग जाते हैं। उनका लक्ष्य हर हाल में मुझे पाना रहता है। ऐसा करते वक्त वे भूल जाते हैं कि उनके पास मेरे साथ जीने के लिए सीमित समय है और वे इस समय को मुझे चीजों के ज़रिए बाहर से पाने में गँवा देते हैं। इसके स्थान पर अगर वे याद रखते की उन्हें परमेश्वर ने मेरे साथ ही इस दुनिया में भेजा है। मैं तुम्हारे अंदर ही हूँ, तुमने अपने अंदर मुझे खोजा ही नहीं इसलिए मैं तुम्हें कभी मिल नहीं पाई।’ आशा करता हूँ दोस्तों हम सब एक बार फिर अपनी प्राथमिकताएँ तय करेंगे और उसके अनुसार अपना जीवन जिएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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