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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

चमत्कार नहीं, मेहनत बनाएगी सफल

चमत्कार नहीं, मेहनत बनाएगी सफल
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Aug 30, 2021

चमत्कार नहीं, मेहनत बनाएगी सफल !!!


काम को अंतिम पल तक टालना और फिर आख़री समय में किसी भी तरह उसे पूरा करके मनमाफ़िक सर्वश्रेष्ठ परिणाम की आशा रखना, एक ऐसी आदत है, जो ज़्यादातर बच्चों में देखी जाती है। हाल ही में काउन्सलिंग के लिए आए एक बच्चे के माता-पिता ने बच्चे की इस आदत के बारे में जैसे ही मुझे बताया, बच्चा चिढ़ते हुए बोला, ‘आप हमेशा मेरे पीछे पड़े रहते हो। बताओ आज तक किसी भी परीक्षा में मेरा परिणाम ख़राब आया है क्या?’ उसके ऐसा कहते ही उसके पिता ने उसे याद दिलाते हुए कहा, ‘बताओ आज हम सर के पास आने वाली बस क्यों चूक गए थे? अंतिम पलों में तुम्हें याद आया था कि सामान घर पर छूट गया है और ऐसा तुम्हारे साथ अकसर होता है।’


वैसे दोस्तों बच्चा ही क्यों? हममें से ज़्यादातर लोग अंतिम पल पर चालाकी द्वारा अथवा क़िस्मत की वजह से पूर्ण हो जाने वाले कार्यों को अकसर अपनी योग्यता से जोड़ लेते हैं और खुद को उसी हिसाब से ईनाम का हक़दार मान लेते है। लेकिन याद रखिएगा चालाकी भरे तरीक़ों से बड़ी सफलता नहीं पायी जा सकती है। आइए एक कहानी के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते हैं-


समुद्र किनारे एक नमक का व्यापारी रहता था। वह रोज़ अपने गधे पर नमक ढो कर बाज़ार बेचने के लिए ले जाया करता था। मालिक वैसे तो गधे का बहुत ज़्यादा ध्यान रखा करता था लेकिन गधे को हमेशा लगता था कि मालिक उस पर बोझ लादकर अत्याचार करते हैं। वह रोज़ कुछ ना कुछ युक्ति लगाकर बोझा उठाने से बचने का प्रयास करता था। 


एक दिन, रोज़ की ही तरह, व्यापारी गधे की पीठ पर नमक की बोरी रख बाज़ार जा रहा था। तभी अचानक रास्ते में पड़ने वाली उथली नदी में गधे का संतुलन बिगड़ने की वजह से नमक की बोरी पानी में गिर गई। पानी में गिरते ही बहुत सारा नमक उसमें घुलने लगा लेकिन मालिक ने उसकी चिंता करने की जगह पहले तो गधे को सम्भाला, उसे दुलारा और उसके बाद नमक की बोरी को पानी में से उठाया और वापस से गधे की पीठ पर रख दिया। लेकिन इतनी देर में तो बहुत सारा नमक पानी में घुल चुका था इसलिए बोरी का वजन बहुत कम हो गया था।


अचानक कम हुए वजन से गधा बहुत खुश था पर उसे ज़्यादा कुछ समझ नहीं आया। कुछ दिनों पश्चात एक बार फिर ऐसी ही घटना घटी, पानी में काफ़ी सारा नमक घुल जाने की वजह से बोरे का वजन इस बार भी काफ़ी कम था। गधे को इस बार वजन कम होने का राज समझ आ गया। बस फिर क्या था वह रोज़ इस हरकत को दोहराने लगा।


कुछ दिनों में व्यापारी को गधे की चाल समझ आ गयी लेकिन उसने गधे की हरकत को नज़रंदाज़ करा। लेकिन जब गधे ने मालिक को ‘गधा’ समझना शुरू किया, तब मालिक ने गधे को सबक़ सिखाने का निर्णय लिया। अगले दिन व्यापारी नमक की जगह सूत का थैला रख बाज़ार की ओर चल दिया, गधे ने आज भी रोज़ की तरह हरकत करी और थैले को नदी में गिरा दिया। लेकिन इस बार सूत (कपास) पानी में भीगने की वजह से बहुत भारी हो गया और उस दिन गधे को बहुत ज़्यादा वजन उठाना पड़ा। इससे गधे को एहसास हो गया कि मेहनत से बचने का कोई शॉर्टकट नहीं होता। 


उस बच्चे और कहानी वाले गधे की ही तरह दोस्तों कई बार हम भी जीवन में शॉर्टकट निकाल सफल होने का प्रयास करते हैं लेकिन अंतिम समय पर पढ़कर अच्छे नम्बर लाने वाले बच्चे को भी इसी आदत की वजह से बस चूकने का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा था और इसी तरह चालाकी से बचने के प्रयास में गधे को अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ा था। 


ठीक इसी तरह दोस्तों क़िस्मत के भरोसे जीवन जीने वाले व्यक्ति को भी एक ना एक दिन, किसी ना किसी रूप में इस आदत की वजह से नुक़सान उठाना पड़ता है। अकसर कहा जाता है कि, ‘दबाव में हम अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं।’ शायद यह सही भी है लेकिन काम को अंतिम पल तक टालकर स्वयं पर दबाव बनाने के स्थान पर सुनियोजित तरीक़े से लक्ष्य और उसकी पूर्णता दिनांक के अनुसार, योजना बनाकर कार्य करना आपको सकारात्मक दबाव में रख, आपकी सफलता तय करता है। याद रखिएगा दोस्तों क़िस्मत की वजह से अंतिम पलों में कार्य कर मिलने वाली सफलता को अपनी योग्यता ना समझें अन्यथा किसी दिन इसकी बड़ी क़ीमत चुकाना पड़ेगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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