फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
चरित्र बड़ा या ज्ञान


Sep 26, 2021
चरित्र बड़ा या ज्ञान!!!
कोरोना की वजह से लगभग डेढ़ वर्ष बाद अब विद्यालय खुलना प्रारम्भ हो चुके हैं और पूर्व की ही तरह बच्चों ने धीमी गति से ही सही लेकिन विद्यालय आना प्रारम्भ कर दिया है। एक ओर जहां माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई की चिंता सताने लगी है, वहीं दूसरी ओर शिक्षक भी बच्चों की लिखने की गति और पढ़ाई के तरीक़े में आए बदलाव की वजह से चिंतित हैं। इस विषय में एक सामान्य सी धारणा बन गई है कि ‘बच्चों की शिक्षा का बहुत सारा नुक़सान हो गया है।’
लेकिन दोस्तों मेरी नज़र में यह सही नहीं है। कोरोना काल में बच्चे मात्र किताबी शिक्षा से दूर रहे, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अशिक्षित रहे या कुछ सीख नहीं पाए। मुझे तो लगता है कोरोना ने हमें अपनों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हुए उन्हें संस्कार और जीवन मूल्य के साथ कई और बातें सिखाने का मौक़ा दिया हैं। जिसकी सहायता से वे खुशहाल जीवन जी पाएँगे और इस दुनिया को बेहतर बना सकेंगे। इसे मैं एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
राजा विक्रम वीर सिंह के राजदरबार में राजवल्लभाचार्य नाम के महान ज्ञानी राजपुरोहित थे। उनके ज्ञान की वजह से बड़े से बड़े विद्वान भी उनके प्रति आदर का भाव रखा करता था। वे जहां से भी गुजरते थे राजा सहित सभी लोग उनके सम्मान में खड़े हो ज़ाया करते थे। लेकिन राजवल्लभाचार्य जी को अपने ज्ञान का लेश मात्र भी अहंकार नहीं था। उनका मानना था कि ज्ञान और चरित्र मिलकर ही आपको जीवन में आनंदित रख सकते हैं।
राजा की न्यायप्रियता, ज्ञान, राज्य के प्रति समर्पण के कारण प्रजा राजपुरोहित जी के ही समान राजा का भी सम्मान करती थी। लेकिन राजपुरोहित जी इस वजह से राजा के व्यवहार में आ रहे परिवर्तन की वजह से चिंतित थे। उन्हें एहसास था कि राजा के मन में अपने ज्ञानी और अटूट ख़ज़ाने का मालिक होने की वजह से अहंकार आने लगा है। राजपुरोहित जी ने राजा को समझाने का प्रयास करा कि उन्हें प्रजा से प्यार व सम्मान उनके चरित्र की वजह से मिलता है, ना की उनके ज्ञान या ख़ज़ाने की वजह से, पर राजा तो अपने अहंकार के नशे में चूर थे। वे राजपुरोहित जी की बात समझ नहीं पाए। राज पुरोहित जी ने राजा को समझाने के लिए एक योजना बनाई और उसके अनुसार वे राजा के ख़ज़ाने का जायज़ा लेने चले गए।
ख़ज़ाने की सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षाकर्मी ने उनकी इज्जत व पद की वजह से अंदर जाने दिया। अंदर पहुँचकर राजपुरोहित जी ने बिना ख़ज़ांची को बताए वहाँ से 5 मोती उठा लिए और बाहर आ गए। सुरक्षाकर्मी और ख़ज़ांची को राजपुरोहित का व्यवहार थोड़ा अटपटा लगा लेकिन फिर भी उन्होंने इसे नज़रंदाज़ कर दिया। अगले दिन फिर से राजपुरोहित ने ऐसा ही किया। इस बार ख़ज़ांची और सुरक्षाकर्मी के मन में विचार आया कि शायद राजपुरोहित के मन में लालच आ गया है। लेकिन अपने अन्तर्द्वन्द की वजह से वे राजपुरोहित या राजा से कुछ नहीं बोले। लेकिन अब सुरक्षाकर्मी और ख़ज़ांची दोनों के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व के समान श्रद्धा व सम्मान नहीं था। तीसरे दिन फिर से राजपुरोहित जी ने वही क्रम दोहराया और ख़ज़ाने से 5 मोती लेकर चलते बने। इस बार ख़ज़ांची के धैर्य का बांध टूट गया और उसका संदेह, विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित जी की नियत ख़राब हो गयी है। वह तुरंत राजा के पास गया और उन्हें विस्तारपूर्वक पूरी घटना बता दी।
इस बात से राजा के मन को बड़ा आघात पहुँचा और उनके मन में राजपुरोहित जी के लिए जो आदरभाव था, वह चकनाचूर हो गया। अगले दिन जब राजपुरोहित जी दरबार पहुंचे तब राजा या कोई भी सभासद उनके सम्मान में अपने स्थान पर खड़ा नहीं हुआ। लेकिन वे बिलकुल सामान्य बने रहे और राजा को प्रणाम कर अपने स्थान पर बैठ गए।
राजसभा की कार्यवाही पूर्ण होने के बाद राजा ने राजपुरोहित जी को वहीं रोका और उनसे प्रश्न किया, ‘सुना है आपने ख़ज़ाने में से कुछ क़ीमती रत्न चुराए हैं?’ राजपुरोहित जी को हाँ में गर्दन हिलाता देख राजा को ग़ुस्सा आ गया और वे लगभग चिल्लाते हुए बोले, ‘राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं था? ऐसा काम करते हुए आपको लज्जा क्यों नहीं आई? ऐसा करके आपने जीवनभर कमाई प्रतिष्ठा खो दी। कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया? कहाँ हैं वे रत्न?’ राजपुरोहित जी पूर्व की भाँति एकदम शांत रहते हुए बोले, ‘महाराज, सभी रत्न महारानी साहिब के पास सुरक्षित हैं।’
राजा जवाब सुन आश्चर्यचकित थे। राजा के विस्तार से समझाने का कहने पर राजपुरोहित जी बोले, ‘राजन, अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर मैं आपको सिर्फ़ यह समझाने का प्रयास कर रहा था कि हमारे ज्ञान और सम्पत्ति के मुक़ाबले हमारे चरित्र और संस्कार की वजह से हमें आदर और सम्मान की नज़र से देखा जाता है। मात्र 15 रत्नों की वजह से मेरी इज्जत, मेरा ज्ञान सब कुछ शून्य हो गया है अर्थात् आप व अन्य सभी लोग मुझे जो भी सम्मान दे रहे थे वो मेरे संस्कार और चरित्र के कारण दे रहे थे। इसीलिए मेरी आपसे करबद्ध विनती है कि आप अपना लोभ और अहंकार छोड़ अपने चरित्र पर अधिक ध्यान दें और साथ ही राज्य में चरित्रवान लोगों को अधिक सम्मान दें।
आशा है दोस्तों, अब आप सभी मेरी बात से सहमत होंगे कि ‘कोरोना ब्रेक’ की वजह से बच्चों की शिक्षा को कोई नुक़सान नहीं हुआ है और दूसरा विद्यालय खुलने के बाद किताबी ज्ञान बढ़ाने के लिए अभी हमारे पास बहुत समय है। अभी हमारी प्राथमिकता बच्चों को शिक्षा के लिए मानसिक रूप से तैयार करने के साथ-साथ जो संस्कार और चरित्र निर्माण सम्बन्धी सीखी गई बातों को याद दिलाना रहेगा।, अन्यथा हम फ़ायदे के स्थान पर उनका नुक़सान कर बैठेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

Be the Best Student
Build rock solid attitude with other life skills.
05/09/21 - 11/09/21
Two Batches
Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)
Batch 2 - For all minors (below 18 Yrs)
Duration - 14hrs (120m per day)
Investment - Rs. 2500/-

MBA
( Maximize Business Achievement )
in 5 Days
30/08/21 - 03/09/21
Free Introductory briefing session
Batch 1 - For all adults
Duration - 7.5hrs (90m per day)
Investment - Rs. 7500/-

Goal Setting
A proven, step-by-step workshop for setting and achieving goals.
01/10/21 - 04/10/21
Two Batches
Batch 1 - For all adults (18+ Yrs)
Batch 2 - Age group (13 to 18 Yrs)
Duration - 10hrs (60m per day)
Investment - Rs. 1300/-