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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

जहाँ चाह, वहाँ राह

जहाँ चाह, वहाँ राह
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May 3, 2021
जहाँ चाह, वहाँ राह…

दोस्तों आज मैं विशेषकर व्यवसायियों और सेल्फ़ एम्प्लॉईड़ या हर ऐसे व्यक्ति से बात करना चाहूँगा जो अपने हुनर, अपनी योग्यता से अपना घर चलाते हैं। लॉकडाउन और अनिश्चितताओं से भरे पूरे वर्ष में माना इस वक्त चीज़ें आपके मन के माफ़िक़ नहीं चल रही हैं लेकिन दोस्तों फ़र्क़ क्या पड़ता है? वैसे आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूँ कि मैं भी इसी वर्ग से ताल्लुक़ रखता हूँ। साथियों पहले भी हमने खुद ने ही शून्य से शुरू करके यहाँ तक का सफ़र पूर्ण किया था ज़रूरत पड़ी तो एक बार फिर कर लेंगे। हाँ, आप बोल सकते हैं कि इस बार हमारे ऊपर क़र्ज़ा है या व्यापार शुरू करने के लिए पूँजी नहीं है आदि, लेकिन दोस्तों याद रखिएगा इस बार हमारे पास तीन महत्वपूर्ण चीज़ें हैं जो हमें बहुत जल्द पहले से बेहतर स्थिति में पहुँचा देंगी। पहली चीज़ है अनुभव, दूसरी चीज़ है अपने क्षेत्र में इतने वर्षों में बनाया गया अपना नेटवर्क और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है साख। दोस्तों अगर आप सिर्फ़ दो और बातों को बरकरार रख लें तो काम हो जाएगा। लेकिन उसे बताने से पूर्व मैं आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ। यह कहानी कहीं बाहर की नहीं बल्कि अपने देश की ही है।

यह कहानी हमारे देश के पूर्व हॉकी खिलाड़ी और भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान की है। इस खिलाड़ी का जन्म गुरुचरण सिंह एवं दलजीत कौर के यहाँ 27 फ़रवरी 1986 को हरियाणा के शहर, शाहबाद मार्कंडा में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा शिवालिक पब्लिक स्कूल, मोहाली से पूर्ण करी और उसके बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से बी॰ए॰ करा। उनके बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह एक प्रतिभाशाली ड्रैग फ्लिकर थे और इंडियन ऑयल के लिए खेला करते थे लेकिन चोट लगने की वजह से वे अपने सपने, ‘अपने देश के लिए खेलना’ को पूरा नहीं कर पाए। लेकिन उन्होंने अपने छोटे भाई को यह सपना पूरा करने में मदद करी और उन्हें हॉकी खेलने की ट्रेनिंग दी।

जनवरी 2004 में उनके छोटे भाई और हमारे चहेते इस खिलाड़ी का चयन भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम में हुआ और उन्हें कुआलालंपुर में सुल्तान अज़लान शाह टूर्नामेंट में पहली बार देश का प्रतिनिधित्व करने का मौक़ा मिला। जनवरी 2009 में अपने बेहतरीन खेल और लीडरशिप स्किल की वजह से उन्हें भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम का कप्तान चुना गया। वे अपने खेल में इतने माहिर थे कि वे 145 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से ड्रैग फ़्लिक किया करते थे। दोस्तों यह गति ड्रैग फ़्लिप में दुनिया में सर्वाधिक थी।

जब वे अपने कैरियर में चरम पर थे तब एक घटना ने उनका पूरा जीवन बदल दिया। 22 अगस्त 2006 को शताब्दी ट्रेन से वे दिल्ली जा रहे थे। जहाँ से उन्हें 24 अगस्त 2006 को भारतीय टीम में शामिल होकर जर्मनी में होने वाले विश्वकप हॉकी टूर्नामेंट में भाग लेने जाना था। ट्रेन में सुरक्षाकर्मी से गलती से बंदूक़ चल गई और उससे निकली गोली इस बेहतरीन खिलाड़ी की रीढ़ की हड्डी के पास जा लगी। जिसकी वजह से वे गम्भीर रूप से घायल हो गए और पैरों के लकवे का शिकार हो गए। इस दुर्घटना की वजह से यह खिलाड़ी जिस समय विश्वकप खेलने वाला था उस समय व्हीलचेयर पर था। इलाज के दौरान डॉक्टर ने कह दिया था कि वे अब कभी व्हीलचेयर से नहीं उठ पाएँगे। लेकिन कहते हैं ना, ठान लो तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है। वे हार मानने वाले लोगों में से नहीं थे उन्होंने डॉक्टर या किसी भी व्यक्ति की नकारात्मक बातों पर ध्यान नहीं दिया और मात्र दो साल में, वर्ष 2008 में भारतीय हॉकी टीम में वापसी करी।

जी हाँ दोस्तों आप सही पहचान रहे हैं मैं भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ संदीप सिंह भिंडर के बारे में बात कर रहा हूँ जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बलबूते पर ना सिर्फ़ खुद को गम्भीर चोट से उबारा, बल्कि खुद को वापस से भारतीय हॉकी टीम में स्थापित किया।

उनकी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने तेरह वर्षों बाद, वर्ष 2009 में मलेशिया को फाइनल में हराकर सुल्तान अज़लान शाह कप पर क़ब्ज़ा किया, संदीप सिंह इस टूर्नामेंट के शीर्ष गोल स्कोरर भी थे। उन्हीं की कप्तानी में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने वर्ष 2012 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों के लिए 8 वर्षों बाद क्वालिफ़ाई किया और फ़्रान्स की टीम को 8-1 से हराकर क्वालिफ़ायर फ़ाइनल में शानदार जीत दर्ज की। इन 8 गोलों में से पाँच गोल संदीप सिंह भिंडर ने किए थे जिसमें एक हैट्रिक शामिल है। दोस्तों इस क्वालिफ़ायर टूर्नामेंट में संदीप सर्वोच्च स्कोरर भी थे। उन्हें हॉकी में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ड्रैग फ़्लिकर में से एक माना जाता है।

जी हाँ दोस्तों, इस कहानी से हम विपरीत परिस्थितियों से लड़कर खुद को फिर से ना सिर्फ़ स्थापित करने बल्कि इतिहास रचने के लिए आवश्यक दो महत्वपूर्ण सूत्र सीख सकते हैं। पहला सूत्र है, कभी ना हार मानने वाला सकारात्मक दृष्टिकोण एवं दूसरा सूत्र है पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने सपने पर यक़ीन करना। दोस्तों इन दोनों सूत्रों को ऊपर के तीनों सूत्र अनुभव, नेटवर्क और साख के साथ काम में लेंगे तो यकीनन आनेवाले समय में सफलता आपके कदम चूमेंगी।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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