फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
ज़िंदगी, कैसी है पहेली भाई


July 30, 2021
ज़िंदगी, कैसी है पहेली भाई…
‘ज़िंदगी कैसी है पहेली भाई, कभी ये रुलाए, कभी यह हंसाए…’ यह गाना तो निश्चित तौर पर आप सभी ने सुन ही रखा होगा और निश्चित तौर पर यह प्रश्न कभी ना कभी आपके मन में भी उठा होगा। जीवन के बारे में सबसे मज़ेदार बात यही है कभी यह हंसने, खुश रहने का मौक़ा देती है तो कभी रुलाने लगती है और समझ ही नहीं आता है कि ऐसा हमारे साथ हो क्यूँ रहा है?
कोई इसे ईश्वर का दिया हुआ सर्वोत्तम तोहफ़ा मानता है, तो कोई इसे एक उलझी हुई पहेली के समान देखता है। कोई सब कुछ होते हुए भी परेशान है, तो कोई रुखी-सुखी रोटी खाकर भी अपनी झोपड़ी में मस्त है। ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न है, ‘जीवन है क्या? इसे बेहतर कैसे बनाया जा सकता है?’
तो दोस्तों मेरी नज़र में, यह जीवन वैसा ही है, जैसा आप इसे बनाना चाहते हैं, बल्कि यह कहना शायद और ज़्यादा बेहतर होगा, कि यह सौ प्रतिशत वैसा ही है, जैसा आप इसे देखते हैं। जी हाँ दोस्तों, अगर आप इसे ईश्वर का दिया वरदान या तोहफ़ा मानते हैं, तो यह वैसा ही है और अगर आप को यह बोझ या उलझी हुई पहेली लगता है तो भी आप बिलकुल ठीक सोच रहे है। इसे मैं आपको एक छोटी सी कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूँ।
गाँव में एक बहुत ही सुंदर और प्रसिद्ध काँच से बना हुआ शीशमहल था। बहुत दूर-दूर से लोग उसकी सुंदरता देखने के लिए आया करते थे। इस शीशमहल की ख़ासियत थी कि इसकी दिवार, दरवाज़े, खिड़कियाँ और यहाँ तक की छत और फ़र्श भी दर्पणों से इस तरह बनाया गया था कि आप अंदर जाने के बाद किसी भी दिशा में देखें, आपको अपना प्रतिबिम्ब ही नज़र आएगा।
एक दिन चौकीदार की आँखों से बचकर एक कुत्ता उस शीशमहल में घुस गया। अंदर जाने के बाद कुत्ते ने अपने आप को बहुत सारे कुत्तों से घिरा हुआ पाया। खुद को चारों ओर से इतने सारे कुत्तों से घिरा हुआ देख वह हैरान, आश्चर्यचकित था। कुछ पल के लिए तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे, वह बुत बना सा खड़ा था।
कुछ समय पश्चात उसने परिस्थिति से लड़ने का मन बनाया और अन्य कुत्तों को डराने के उद्देश्य से अपने दांत दिखाने लगा। उसके प्रतिबिंबों ने भी ठीक उसी तरह जवाब दिया। इतने सारे कुत्तों को एक साथ दांत दिखाता देख वह घबरा गया और वह जोर-जोर से भोंकने लगा, इस बार भी प्रतिबिंबों ने उसकी नक़ल करी। उसने और ज़ोर लगा कर भौंका, ठीक वैसा ही उसके प्रतिबिंबों ने किया। प्रतिबिंबों द्वारा कई गुना ज़्यादा ताक़त से जवाब दिए जाने की वजह से कुत्ता बहुत ज़्यादा घबरा गया और वह अपने ही प्रतिबिंबों से लड़ने के लिए काफ़ी देर तक वह काँच के ऊपर इधर-उधर छलांग मार-मार कर हमला करने लगा। इस वजह से उसके कुछ दांत और नाखून भी टूट गए। ठीक वैसा ही उसके प्रतिबिंबों के साथ भी हो रहा था। कुछ घंटों बाद वह कुत्ता निढाल हो फ़र्श पर गिर पड़ा।
अगली सुबह सुरक्षा कर्मी ने नियमानुसार शीशमहल को खोला और सफ़ाई के लिए सफ़ाई कर्मियों को अंदर भेजा। एक सफ़ाई कर्मी जब शीशमहल के केंद्रीय कक्ष में पहुँचा तो उसे वहाँ हज़ारों प्रतिबिंबों से घिरे, एक दुखी और बेजान, निढाल कुत्ते को फ़र्श पर पड़ा हुआ पाया।
दोस्तों सोचकर देखिए, क्या वहाँ उस कुत्ते को नुक़सान पहुँचाने वाला कोई था? नहीं! फिर वह कुत्ता निढाल और बेजान अवस्था में क्यों मिला? असल में वह कुत्ता खुद के प्रतिबिंबों से ही लड़ते-लड़ते मर गया था। उसके सभी शत्रु और सारी परेशानियाँ उसी की बनाई हुई थी।
जी हाँ दोस्तों, यह दुनिया ना तो हमारे जीवन को अच्छा बनाती है और ना ही बुरा। हमारे आस-पास जो कुछ भी घट रहा है वह निश्चित तौर पर हमारे विचारों, भावनाओं और इच्छाओं का प्रतिबिम्ब मात्र है। आप रोज़मर्रा में इस दुनिया से मिलने वाली प्रतिक्रियाओं से अपने द्वारा जाने-अनजाने में चाही गई चीज़ ही माँग सकते हैं।
अगर आप एक बेहतरीन जीवन जीना चाहते हैं, हमेशा ख़ुश और संतुष्ट रहना चाहते हैं तो सबसे पहले उसकी अच्छी तस्वीर देखना शुरू कीजिए, उन सभी ख़ुशियों को अपने जीवन में आता हुआ महसूस कीजिए। भूलिएगा मत दोस्तों, यह दुनिया एक बहुत बड़ा आईना है, हमें हमेशा अपने मन को स्थिर रखते हुए एक बहुत अच्छी मुद्रा बनाए रखना होगा, तभी हमें एक अच्छा प्रतिबिम्ब देखने को मिलेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर