फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
जिएँ, जी भर के


Sep 20, 2021
जिएँ, जी भर के!!!
दोस्तों आज के दिन की ज़बरदस्त शुरुआत एक कहानी पढ़ते हुए हुई जिसे मेरी दीदी ने मुझे भेजा था। चलिए आज ‘फिर भी ज़िंदगी हसीन है’ की शुरुआत उसी कहानी के साथ करता हूँ।
रामदीन को किसी ने बताया था कि वह जो भी चाहता है उसे वह सब इंद्रपुरी में मिल सकता है। इसके लिए बस उसे वहाँ जाना पड़ेगा। वैसे भी कई दिनों से रामदीन परेशान चल रहा था इसलिए उसने सोचा चलो इंद्रपुरी भी जाकर भी देख लेते हैं। उसने इंद्रपुरी के बारे में जानकारी निकाली तो उसे पता चला कि इंद्रपुरी बहुत अधिक दूर है और वहाँ जाने का रास्ता भी कठिन है। साथ ही इंद्रपुरी के महाराज सुरक्षा के लिहाज़ से शाम को अंधेरा होते ही इंद्रपुरी के सभी दरवाज़े बंद कर देते हैं।
संध्या होने से पहले इंद्रपुरी पहुँचने का लक्ष्य लेकर रामदीन एक दिन, सुबह जल्दी इंद्रपुरी जाने के लिए निकल पड़े। अपने लक्ष्य को पाने के लिए रामदीन बिना रुके, तेज़ी के साथ इंद्रपुरी की ओर चलते जा रहे थे। इसीलिए वे इंद्रपुरी के रास्ते में पड़ने वाली सुंदर फूलों की वादी, सुंदरवन, नदी, झरने आदि पर भी वे नहीं रुके। उनका लक्ष्य हर हाल में सूर्यास्त से पहले इंद्रपुरी पहुँचने का था। लेकिन रास्ता वाक़ई बहुत लम्बा था और दिन का तीसरा पहर चल रहा था लेकिन अभी भी उन्हें इंद्रपुरी नज़र नहीं आ रही थी। इसी वजह से उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
घबराहट और बेचैनी के साथ चलते-चलते उनकी नज़र तालाब के किनारे बनी एक सुंदर सी कुटिया पर पड़ी। कुटिया के बाहर ही पेड़ के नीचे एक वृद्ध महापुरुष बैठे हुए थे। रामदीन ने उनसे जाकर सलाह लेने का निर्णय लिया। वे उनके पास पहुंचे और उन्हें प्रणाम कर बोले, ‘महात्मन, मैं इंद्रपुरी जा रहा हूँ। मैंने सुना है वहाँ के राजा संध्या होते ही नगर में प्रवेश के सभी द्वार बंद कर देते हैं। अब दिन का तीसरा पहर भी ढलने वाला है। क्या मैं वहाँ तक पहुँच पाऊँगा?’ उस वृद्ध ने ध्यान से रामदीन को देखा और बोले, ‘अगर धीरे चलोगे तो पहुँच भी सकते हो।’
वृद्ध की बात सुन रामदीन हैरत में पड़ गया। वह सोचने लगा साँझ से पहले पहुँचना है तो जल्दी चलना होगा उसके हिसाब से यह वृद्ध तो गलत, एकदम विपरीत कह रहे हैं। रामदीन ने उनकी बात मानने की जगह तेज़ ही चलने बल्कि भागते हुए जाने का निर्णय लिया। वहाँ से आगे बढ़ते ही रास्ता बहुत ऊबड़-खाबड़ व पथरीला था। रामदीन जल्दी पहुँचने की चाह में 2-3 बार उससे टकराकर गिर पड़ा। हालाँकि उसे तकलीफ़ तो बहुत ज़्यादा हो रही थी लेकिन हर बार वह हिम्मत करके उठा और तेज़ दर्द व चोट के साथ ही आगे बढ़ने का प्रयास करने लगा।
कुछ दूर चलने पर उसे इंद्रपुरी नज़र आ रही थी लेकिन तब तक दिन ढलना भी शुरू हो गया था। उसने अंतिम प्रयास करते हुए थोड़ा सा और जोर लगाया लेकिन एक ठोकर की वजह से वहीं निढाल हो कर गिर पड़ा। गिरते समय रामदीन की आँखों के सामने इंद्रपुरी का द्वार था लेकिन वह अंदर नहीं जा सकता था और उसके देखते-देखते ही द्वारपालों ने द्वार बंद कर दिया।
दोस्तों रामदीन की यह कहानी कहीं हम सभी की कहानी तो नहीं है? चलिए समझकर देखते हैं। जिस तरह रामदीन को इंद्रपुरी जाना था ठीक उसी तरह जब हम बहुत छोटे होते हैं तभी से हमें ‘सफलता’ तक पहुँचने के लिए तैयार किया जाने लगता है। सफलता या बड़ा आदमी बनना क्या होता है? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? बल्कि जीवन ही क्या है यह सब समझने के पहले ही हम भी उस सफलता की अंधी दौड़ का हिस्सा बन दौड़ना शुरू कर देते हैं। फूलों की वादियों के समान कब इस चूहा दौड़ में हमारा बचपन खत्म हो जाता है, हमें पता ही नहीं चलता। उसके बाद आता है सुंदर वन, झील नदियाँ झरने आदी अर्थात् हमारी युवावस्था लेकिन तब तक भी इस ‘सफलता’ नामक चिड़िया के बारे में हमें ज़्यादा कुछ पता नही होता और हम इसी को पाने की चाह में अनजान मंज़िल की ओर दौड़ते चले जाते हैं।
जिस तरह रामदीन एक सुंदर सी झोपड़ी पर वृद्ध से सलाह करने रुका था ठीक वैसा ही मुक़ाम हमारे सामने भी आता है लेकिन तब तक हमें हमारी ज़िम्मेदारियाँ, भविष्य की चिंता और असुरक्षा की भावना घेर लेती है और एक बार फिर हम उस अनजान मंज़िल की ओर चलना शुरू कर देते हैं। लेकिन दोस्तों वहाँ पहुँचते-पहुँचते हमें जीवन की सच्चाई का अनुभव होता है और हमें एहसास होता है कि लक्ष्य क्या था और हम कहाँ आ गए? लेकिन अकसर तब तक देर बहुत हो चुकी होती हैं।
लेकिन दोस्तों, अगर समय रहते जीवन का सही मक़सद समझ लिया जाए तो मंजर कुछ अलग हो सकता है। सफलता पाने या बड़े आदमी बनने का प्रयास करना ग़लत नहीं है बस हमें रास्ते का मज़ा अर्थात् फूलों की वादी, सुंदरवन, झील नदी, झरने, तालाब सभी का आनंद लेते हुए धीर-धीरे उसे खोजना है। यही तो वह वृद्ध संत रामदीन को समझाने का प्रयास कर रहे थे।
दोस्तों एक बार फिर इस कहानी को पढ़कर, फिर से मनन करके देखिएगा ज़रूर।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर