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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

जिएँ मन भर के, खुश रहें टन भर के

जिएँ मन भर के, खुश रहें टन भर के
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Oct 3, 2021

जिएँ मन भर के, खुश रहें टन भर के!!! 


कल के लेख की प्रतिक्रिया स्वरूप ज़्यादातर लोगों ने मुझसे प्रश्न किया कि खुश रहने के लिए तन से ऊपर उठकर मन, और मन से ऊपर उठकर आत्म तत्व ज्ञान के स्तर पर जीवन जीने के लिए क्या करना चाहिए? इसके लिए दोस्तों सबसे पहले हमें मनुष्य योनि के महत्व को समझना होगा। हिंदू धर्मशास्त्रों और पुराणों में बताया गया है कि इस दुनिया में छोटे-बड़े सभी जीव मिलाकर 84 लाख योनियाँ है। इन चौरासी लाख योनियों में से सर्वश्रेष्ठ योनि मनुष्य योनि है क्यूँकि ईश्वर ने सिर्फ़ मनुष्यों को चिंतन-मनन अर्थात् सोचने-समझने, अच्छाई और बुराई में फ़र्क़ करने की योग्यता दी है। यही योग्यता हमें मनमाफ़िक खाने, पहनने, घूमने और जीवन को बेहतर बनाने के लिए नई चीजों को खोजने के लिए प्रेरित करती है। अन्यथा मनुष्य शरीर भी किसी अन्य जानवर के जैसा ही है। 


जीवन का सही उद्देश्य और अपनी क्षमता का सही ज्ञान ना होने की वजह से, हम इस सर्वश्रेष्ठ योनि में रहते हुए भी खुश नहीं रह पाते हैं। इसकी बड़ी वजह जीवन के तीनों स्तर अर्थात् तन, मन और तत्व ज्ञान का पता ना होना है। आईए आगे बढ़ने से पहले संक्षेप में इसे समझते हैं। 


एक पक्षी सुबह उठते ही भोजन और पानी की तलाश में निकल जाता है और उस दिन की आवश्यकता पूर्ति जितना खा-पी कर वापस अपने घोंसले में आकर मज़े से रहता है। वह कुछ संग्रहित नहीं करता, ना ही उसे आने वाले दिन की कोई चिंता रहती है। ठीक इसी तरह मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भी कुछ लोग सिर्फ़ अपनी शारीरिक अर्थात् देह की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए जीते हैं। इसे हम तन के स्तर पर जीना कहते हैं। ये लोग अपना पूरा जीवन ज़रूरतों और चाहतों को पूरा करने में निकाल देते हैं।


कुछ लोग अपनी चाहतों और ज़रूरतों से ऊपर उठकर अर्थात् तन के साथ ही मन की ज़रूरतों अर्थात् प्रेम, शांति, ख़ुशी आदि को महसूस कर पाते हैं और यही वे चुनिंदा लोग होते हैं जो ‘मैं’ से आगे बढ़कर सोच, देख और कार्य कर पाते हैं, मन के स्तर पर जी पाते हैं। इस स्थिति में हम जीवन के सही उद्देश्य को पहचानने लगते हैं।


तीसरा स्तर है दोस्तों, तत्व का ज्ञान होना, अर्थात् समझना कि हमारी इस काया और मन के ऊपर भी कुछ है और जब तक वह ‘कुछ’ हमारे अंदर है, हम हैं। इस ‘तत्व का ज्ञान’ हमारे जीवन स्तर को सुख और दुःख के अहसास से ऊपर ले जाता है। इस स्तर पर हमें दुःख भी तंग नहीं करते, वह स्वीकार्य होते हैं। हमें पता होता है कि यह भी जीवन का एक हिस्सा है। इसका भान हमें कृतज्ञता के भाव के साथ जीवन में घटने वाली हर घटना को स्वीकारकर जीना सिखाता है।


आईए दोस्तों अब हम तत्व ज्ञान के स्तर पर जीवन जीने के लिए आवश्यक 5 आदतों को समझते हैं-


पहली आदत : सकारात्मक रहें 

जीवन में आपको सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार के अनुभव मिलेंगे। पर सामान्यतः हम सकारात्मक बातों को भूल इन चंद नकारात्मक अनुभवों को पकड़कर बैठ जाते हैं और जीवन के प्रति अपने नज़रिए को ख़राब कर लेते हैं। इसके स्थान पर ईश्वर के प्रति हर बात के लिए कृतज्ञता का भाव रख जो मिल रहा है उसे स्वीकारना और सकारात्मक रहना सीखें।


दूसरी आदत : वर्तमान में रहें 

जीवन में हम ज़्यादातर समय या तो भविष्य के सपनों में खोए रहते हैं या फिर अतीत के नकारात्मक अनुभवों में उलझे रहते हैं। दोनों ही स्थितियों में हम अपने वर्तमान को खो देते हैं। नकारात्मक अनुभवों से सीखना या सपने देखना ग़लत नहीं है। सपने देखें, बहुत बड़े देखें लेकिन उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर वर्तमान में सच करें और उनके पूरे होने पर जश्न मनाएँ। लेकिन कभी मनमाफ़िक परिणाम ना मिले तो चिंतित ना हों, उससे अनुभव लें और आगे बढ़ें।


तीसरी आदत : मदद करें 

दोस्तों मदद करने के लिए आपके पास बहुत कुछ होना ज़रूरी नहीं है, सिर्फ़ मदद करने का भाव ही काफ़ी है। इसके लिए खुद से यह तीन प्रश्न करें-

पहला प्रश्न - इस वक्त मैं कैसे अपने आसपास मौजूद लोगों की मदद कर सकता हूँ?

दूसरा प्रश्न - इस वक्त क्या मैं किसी के जीवन को बेहतर बना सकता हूँ?

तीसरा प्रश्न - इसी पल मैं किस तरह ख़ुशी बाँट सकता हूँ?


चौथी आदत : कृतज्ञ रहें

सबसे महत्वपूर्ण आदत है कृतज्ञता के भाव के साथ रहना। दोस्तों आप निश्चित तौर पर मेरी इस बात से सहमत होंगे कि कोई तो सुप्रीम पॉवर है जो जब तक चाहती है हम इस दुनिया में रह पाते हैं। वह हमारे अंदर उसके तत्व, जिसे हम आत्मा कहते हैं, के ज़रिए हमारी सभी इंद्रियों और शक्तियों पर नियंत्रण रखती है। इसी की वजह से हम सुन, बोल और भोजन ही क्या हर काम कर पाते हैं और जब वो नहीं तो हम भी नहीं। मतलब उपरोक्त शक्ति या योग्यता हमारी है ही नहीं और जब कुछ हमारा है ही नहीं तो घमंड किस बात का? इसके स्थान पर हर चीज़ के प्रति कृतज्ञ रहना सीखें।


पाँचवी आदत : माफ़ करें 

दोस्तों, यह एक ऐसी आदत है जो आपके जीवन को बहुत आसान बना देती है। हमें लोगों को इसलिए माफ़ नहीं करना है कि हम बहुत बड़े और संत व्यक्ति हैं। बल्कि इसलिए करना है क्यूँकि हम शांति से जीना चाहते हैं। माफ़ करना हमें अपेक्षा और उपेक्षा के द्वन्द से बचाकर जीवन को आसान बना देता है। वैसे भी क्या फ़र्क़ पड़ता है किसी ने कुछ गलत कर दिया तो? आने वाले कुछ पलों के बाद इसका कोई महत्व बचने वाला नहीं है। इसलिए याद रखिएगा दोस्तों, जिसने सहना सीख लिया उसने रहना सीख लिया।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

dreamsachieverspune@gmail.com

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