फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
जीतना है तो मूल्य आधारित, उदार दृष्टिकोण रखें


June 21, 2021
जीतना है तो मूल्य आधारित, उदार दृष्टिकोण रखें…
दोस्तों इस समय हम सभी लोग कुछ हद तक विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर की वजह से कोई भावनात्मक, तो को कोई मानसिक या व्यवसायिक रूप से टूटा हुआ है। ऐसी विषम परिस्थितियों के दौर में भी कई ‘ज्ञानी’ और ‘सोशल मीडिया वीर’ किसकी ज़िम्मेदारी थी?, कहाँ चूक हुई?, किस-किस को क्या-क्या करना या नहीं करना चाहिए था? इसमें लगे हुए हैं। मेरा इन सभी लोगों से सिर्फ़ एक प्रश्न है, ‘क्या आपके इस कार्य से समस्या का समाधान हो पाएगा?’ शायद नहीं… तो फिर क्या किया जाए? चलिए इसे मैं एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात बहुत पुरानी है, राम गंज के राजा बहुत ही बुद्धिमान थे। एक बार राजा ने प्रजा को बेहतर सुविधा देने के लिए योजना बनाई। योजना बनाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि बिना योग्य मंत्री के इस योजना का क्रियान्वयन सम्भव नहीं होगा। उन्होंने काफ़ी विचार करा लेकिन उन्हें कोई योग्य व्यक्ति नज़र नहीं आ रहा था।
राजा ने योग्य व्यक्ति को चुनने के लिए एक अनोखी योजना बनाई और एक दिन रात को मुख्य बाज़ार की ओर आने वाली सड़क पर एक बहुत ही बड़ा सारा पत्थर या यूँ कहूँ एक चट्टान कुछ इस तरह रखवाई जिससे रास्ता लगभग बंद हो गया। इसके बाद राजा पास ही एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया और उसपर नज़र रखने लगा।
अगले दिन सुबह जब लोग बाज़ार जाने के लिए निकले तो उन्हें इस चट्टान की वजह से रास्ता पार करने में बहुत दिक़्क़त होने लगी। कोई पत्थर के साइड से तो कोई उसके ऊपर चढ़कर बाज़ार की ओर जाने लगा। राजा इन लोगों को देखकर मुस्कुरा रहा था। थोड़ा और समय बीतने पर कुछ धनी व्यापारी और दरबारी भी उस रास्ते से निकले। पर उनमें से भी किसी ने उस पत्थर को हटाने की कोशिश तक नहीं की। बल्कि लगभग हर व्यक्ति राजा की प्रशासनिक क्षमता अथवा रास्ते को व्यवस्थित रखने वाले कर्मचारी की योग्यता पर सवाल उठा रहा था, आरोप लगा रहा था। राजा समझदार लोगों के व्यवहार को देख कर हैरान था।
काफ़ी देर बाद एक किसान सब्ज़ी की टोकरी सर पर उठाए उधर आया। जैसे ही उसकी नज़र उस बड़े से पत्थर पर पड़ी, उसने अपने सर से सब्ज़ी की टोकरी उतार कर ज़मीन पर नीचे रखी और उस बड़े पत्थर को हटाने का प्रयास करने लगा। काफ़ी देर तक मशक़्क़त करने के बाद उसे पत्थर हटाने में सफलता मिली। पत्थर हटाने के बाद किसान जैसे ही सब्ज़ी की टोकरी उठाने के लिए नीचे झुका, उसे टोकरी के पास एक सुंदर सी रेशम की थैली रखी हुई नज़र आयी। किसान ने उत्सुकता वश उस थैली को उठा कर खोल कर देखा तो उसमें उसे कुछ स्वर्ण मुद्राएँ और राजा का एक पत्र था, जिस पर लिखा था कि यह स्वर्ण मुद्राएँ आपके द्वारा किए गए सामाजिक हित के कार्य के लिए है।
अगले दिन राजा ने उस किसान को अपने दरबार में बुलवाया और उसका सम्मान करते हुए उस घटना के बारे में सभी को बताया। साथ ही उसे मंत्री पद से नवाजते हुए अपनी नई योजना की ज़िम्मेदारी भी दी।
जी हाँ दोस्तों, आमतौर पर ज़्यादातर लोगों का व्यवहार उन धनाढ्य व्यापारियों और दरबारियों जैसा होता है, जो अपने जीवन में आने वाली हर बाधा के लिए किसी ना किसी को ज़िम्मेदार ठहराते हैं। ऐसा ही कुछ अभी हम कोरोना की वजह से आई परेशानियों के दौर में देख रहे हैं।
इस वक्त दोस्तों क्या हुआ, क्यूँ हुआ, कौन इसके लिए ज़िम्मेदार है से ज़्यादा ज़रूरी यह है कि हम खुद का, अपने परिवार का और अपने करीबी कम से कम 5 लोगों का ध्यान रखें और छोटे-छोटे कदम उठाकर धीरे-धीरे जीवन को सामान्य अवस्था में लाने का प्रयास करें। वैसे भी दोस्तों याद रखिएगा जीवन में आने वाली हर बाधा, परेशानी या विपरीत परिस्थितियाँ आपको सुधारने का और बेहतर बनने का अवसर प्रदान करती है। अगर इस दौर को आप अवसर में बदलना चाहते हैं तो आलस और शिकायत छोड़कर, मूल्य आधारित उदार दृष्टिकोण रखते हुए दयालु हृदय और काम करने की इच्छा के साथ, पूरी क्षमता से मेहनत करके अवसर पैदा करने होंगे। तभी हम इस विपरीत परिस्थिति से जीतकर अपने आप को पहले से और बेहतर बना पाएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर