फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
जीतें भविष्य की दुनिया मानवीय मूल्यों और इंसानियत से


Jan 21, 2022
जीतें भविष्य की दुनिया मानवीय मूल्यों और इंसानियत से !!!
आईए आज के लेख की शुरुआत अपनी कल्पना शक्ति के साथ करते हैं। आप एक ‘आल इन वन स्टोर’ में कपड़े ख़रीदने के लिए जाते हैं और वहाँ कम्प्यूटर से जुड़े एक विशेष कैमरे लगे काँच के सामन खड़े होते ही वह आप के शरीर का सटीक माप ले लेता है। इसके बाद आप साइड में लगी स्क्रीन पर जो कपड़े देखते हैं, उस काँच में आप वही कपड़े पहने नज़र आने लगते हैं। वर्चुअली काफ़ी कपड़े ट्राई करने के बाद आपने एक ड्रेस चुन ली और उसका ऑर्डर कर दिया।
आपका ऑर्डर कन्फ़र्म होते ही उस ‘आल इन वन स्टोर’ में लगे विशेष 3डी प्रिंटर द्वारा आपकी नई ड्रेस ‘प्रिंट’ कर दी जाती है। इतनी देर में आपको लगता है, मैं इसके मैचिंग जूते भी ले लेता हूँ। वही दुकानदार उसी कैमरे लगे कम्प्यूटर की सहायता से आपके दोनों पैरों का अलग-अलग माप ले लेता है और आपके पैरों की साइज़, बनावट, आपकी ऊँचाई, आपके वजन आदि के आधार पर आरामदायक जूते का सोल पसंद करते हुए उसी 3डी प्रिंटर की सहायता से पूरी तरह कस्टमाईज्ड़ जूते बना देता है। यही 3डी प्रिंटर आपको आभूषण, उपकरण, घर, फ़र्निचर आदि बनाकर देने में भी सक्षम है। इतना ही नहीं दोस्तों बल्कि आप इन सभी सामान की डिलीवरी ड्रोन की सहायता से कहीं भी, किसी भी समय पा सकते हैं।
दोस्तों यह किसी फ़िक्शन मूवी की कहानी नहीं है बल्कि 2030 की भविष्य की दुनिया की एक बदली हुई तस्वीर है। जहाँ हम ए॰आई॰ अर्थात् आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस जैसी टेक्नॉलजी की सहायता से ऐसी कई सुविधाएँ पाएँगे। दोस्तों यह तकनीक कम्प्यूटर, मशीन लर्निंग, गणित, मनोविज्ञान, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग आदि टेक्नॉलोजी की सहायता से कार्य करती है और ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि यह हमारे जीवन के लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित करने वाली है।
आपको शायद अभी मेरी बात अतिशयोक्ति समान लग रही होगी। लेकिन यक़ीन मानिएगा दोस्तों इस वक्त हम बदलाव के ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहाँ कई बातों का अंदाज़ा लगाना भी बड़ा मुश्किल होता जा रहा है। आने वाले समय की भयावहता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक ओर तो टेक्नॉलजी बड़े बदलाव ला रही है और वहीं दूसरी ओर हम उन विषयों को पढ़ या पढ़ा रहे हैं जिनका भविष्य से दूर-दूर तक का कोई लेना-देना नहीं है अर्थात् हम बच्चों को भविष्य की नहीं बल्कि भूतकाल की तैयारी करा रहे हैं।
इसी आधार पर की गई एक रिसर्च के आँकड़े बताते हैं कि इस वक्त 70 प्रतिशत बच्चे उन विषयों को पढ़ रहे हैं या यह कहना ज़्यादा बेहतर रहेगा कि वे जिस कैरियर के लिए तैयारी कर रहे हैं, वे वर्ष 2030 तक खत्म हो जाने वाले हैं अर्थात् वर्ष 2030 में 150 बिलियन (150000000000) बच्चे इससे प्रभावित होने वाले है। हो सकता है, आप मुझसे इसका समाधान पूछेंगे तो मैं आपको पहले ही बता दूँ 2030 में बाज़ार की स्पष्ट आवश्यकता क्या होगी इस बारे में बता पाना लगभग असम्भव ही है। कम्प्यूटर क्षेत्र की दिग्गज कम्पनी डेल के मुताबिक़, ‘वर्ष 2030 में होने वाली 85% नौकरियाँ का अभी तक अविष्कार नहीं हुआ है।’
दोस्तों, इस अस्पष्ट तस्वीर का एक भयावह पहलू और है, आने वाले समय में बायोलॉजिकल इंटेलिजेन्स अर्थात् इंसानी दिमाग़ का मुक़ाबला टेक्नोलॉजिकल इंटेलिजेन्स से होना है, जिसकी गणितीय क्षमता इंसानी दिमाग़ से लगभग 1000 गुना तेज मानी जा रही है। एक आँकड़ा बताता है कि इंसान ने 20000 वर्षों में जितनी रिसर्च करी है, उतनी रिसर्च इस स्पीड से टेक्नोलॉजिकल इंटेलिजेन्स मात्र एक सप्ताह में करने में सक्षम है।
उक्त अपेक्षित परिवर्तन के आधार पर दोस्तों भविष्य की दुनिया को वुका (वी॰यू॰सी॰ए॰) अर्थात् वोलेटाईल, अनसर्टेन, कॉम्प्लेक्स, ऐम्बिग्यूअस वर्ल्ड कहा जा रहा है। साधारण भाषा में कहूँ दोस्तों, तो आने वाला समय परिवर्तनशील, ढुलमुल, जटिल और अस्पष्ट रहने वाला है। जिसमें हज़ारों-लाखों लोग अपनी नौकरियाँ, अपने रोज़गार से हाथ धो बैठेंगे।
हो सकता है इस डरावनी परिकल्पना को सुनने के बाद आपके मन में विचार आ रहा हो कि इस बदलाव का सामना हम किस तरह करेंगे? अपने भविष्य को किस तरह सुरक्षित बनाएँगे? तो घबराने की बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है दोस्तों, अभी भी कुछ बातें ऐसी हैं जो हमें इस बदलते जमाने के लिए भी एकदम फ़िट बनाए रखती है। लेकिन एक बात तो एकदम तय है दोस्तों, भविष्य की दुनिया को पुराने किताबी ज्ञान से तो नहीं जीता जा सकेगा। अब शायद आप सोच रहे होंगे कि इस पहेली, इस उलझन, इस अनिश्चितता का हल क्या है?
दोस्तों, बदलाव के इस दौर में तमाम चुनौतियाँ के बाद भी हमें अर्थात् मनुष्य को अपनी जड़ों की ओर लौटना और भावनात्मक रहते हुए, अपनी रचनात्मकता बनाए रखना बचाएगा। जी हाँ साथियों, मानवीय गुण, मानवीय मूल्य या इंसानियत और रचनात्मकता के साथ आप बदलते समय में भी विजेता बने रह सकेंगे क्यूँकि तकनीक के पास इस वक्त इन बातों के लिए कोई विकल्प नहीं है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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