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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

जीयो, जीभर कर के

जीयो, जीभर कर के
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May 22, 2021

जीयो, जीभर कर के 


बच्चों के बीच में एक दूसरे को चिढ़ाना, आपस में लड़ना, बदमाशी करना बड़ी सामान्य सी बात है। कई बार कुछ बच्चों का समूह किसी एक बच्चे को टार्गेट करके भी इस तरह की बदमाशी करता है। कई बार किसी विशेष बच्चे को उसकी शारीरिक बनावट या शारीरिक कमी जैसे मोटापा, त्वचा के रंग, ऊँचाई, पारिवारिक स्थिति आदि जैसी चीजों की वजह से भी टार्गेट किया जाता है। यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब बच्चा स्पेशल चाइल्ड हो।


ऐसी स्थिति (बुलीइंग) से निपटना कई बार बच्चों के लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है। बच्चे तो ठीक कई बार उनके माता-पिता भी समझ नहीं पाते हैं कि किस तरह इस स्थिति से निपटा जाए। माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य बुलीइंग को सामान्य घटना मानते हैं और सोचते हैं कि हर बच्चा कभी ना कभी इसका शिकार तो होता ही है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन दोस्तों कई बार इसे नज़रंदाज़ करना बच्चे के मन में जीवनभर के लिए नकारात्मक भाव भर देता है और यह बच्चे समाज से कट कर अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे बच्चों में कई बार चिड़चिड़ापन, किसी भी कार्य में भाग ना लेना, गुस्सा, जिद्दी पना, सुस्ती आदि देखने को मिलता है। दोस्तों ऐसे बच्चों को अगर प्यार के साथ समय देकर, आपसी विश्वास पैदा करके, इससे बाहर ना निकाला जाए तो वे अवसाद के शिकार भी हो जाते हैं।


आज मेरी ऑनलाइन मुलाक़ात ऐसे ही एक बच्चे से हुई। बच्चे के माता-पिता ने उसकी इस स्थिति को समय रहते पहचान लिया और वे चाहते थे कि मैं उसे उस विपरीत परिस्थिति या परेशानी से बाहर निकलने में मदद करूँ। पहले तो मैंने बच्चे के साथ ऑनलाइन गेम खेलकर आपसी विश्वास बढ़ाते हुए उससे बातचीत शुरू करी। थोड़ी ही देर में मुझे एहसास हो गया कि उस दिव्यांग बच्चे को सोसायटी में रहने वाले अन्य बच्चे विशेष नाम से चिढ़ाते हैं और उसी वजह से वह परेशान रहता है।


वह बच्चा दिव्यांग ज़रूर था लेकिन साथ ही बुद्धिमान भी था। उसके प्रश्न, अलग-अलग विषय पर उसका ज्ञान, कम्प्यूटर पर कार्य करने की उसकी योग्यता उसे आम बच्चों से अलग बना रही थी। मैंने उस बच्चे से कहा, ‘मैं तुम्हें एक विशेष बच्चे की सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ। क्या तुम सुनना पसंद करोगे? वह बोला, ‘ज़रूर!’ मैंने तुरंत यह कहानी सुनाना शुरू कर दिया-


मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में 1982 में डुकांका और बोरिसलाव, जो कि यूगोस्लाविया के सर्बियाई अप्रवासी के घर एक बालक का जन्म हुआ। जन्म से ही इस बालक के हाथ और पैर दोनों ही नहीं थे। इस बच्चे को जन्म से बहुत सारी बाधाओं का सामना करना पड़ा। बिना हाथ और पैरों के जीवन जीना आसान नहीं था। स्कूल जाते ही इसे अन्य बच्चों द्वारा अजीब से उपनामों से पुकारा जाने लगा। अन्य बच्चे उसे उसके अनिश्चित भविष्य के बारे में बोलकर परेशान किया करते थे। शारीरिक बनावट और बुलीइंग ने उसके स्वाभिमान को इतनी ठेस पहुंचाई कि उसे अपने जीवन से कोई आशा ही नहीं बची और उसने बेबसी और अलगाव की भावनाओं के साथ आत्महत्या करने का विचार किया।


लेकिन जैसे-जैसे यह बच्चा बड़ा होने लगा, उसने सबसे पहले इस बात को स्वीकार किया कि वह कभी भी सामान्य लोगों जैसा जीवन नहीं जी पाएगा, उसके जीवन की गुणवत्ता कभी भी वैसी नहीं होगी जैसी दूसरे लोगों की है। जब उसने इस बात को स्वीकारा तो उसे एहसास हुआ कि वह अपनी ऊर्जा को सामान्यतः उन बातों या जगहों पर खर्च करता है, जिससे उसे कभी फ़ायदा नहीं मिलने वाला है। जैसे, फ़ालतू लोगों को बार-बार जवाब देना। इससे जीवन में हमेशा हार ही मिलेगी।


इस विचार ने इस बच्चे का जीवन ही बदल दिया और उसने हर विपरीत परिस्थिति को चुनौती मानकर उसका डटकर मुकाबला किया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने अपनी मानसिकता को बदला और इस बदले हुए अनोखे नज़रिए से उन्होंने नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलकर, खुश रहते हुए जीवन को बेहतरीन तरीक़े से जीने के अपने कुछ सिद्धांत बनाए। इनमें से प्रमुख पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-


पहला सिद्धांत - ईश्वर ने जो दिया है उसके लिए आभारी रहो।

दूसरा सिद्धांत - शारीरिक, मानसिक अथवा किसी भी रूप में आपके पास जो सामर्थ है उसका सौ प्रतिशत उपयोग करो।

तीसरा सिद्धांत - दूसरे लोग क्या कहते हैं इसकी परवाह मत करो। जो बातें आपके जीवन को बेहतर नहीं बना सकती, जो लोग आपको जीवन में आगे बढ़ने से रोकते हैं उन्हें नकार दें।

चौथा सिद्धांत - अपना ध्यान और समय जीवन को बेहतर बनाने पर लगाओ।

पाँचवा सिद्धांत - ठान लिया जाए तो कुछ भी असम्भव नहीं है।


इन सिद्धांतों ने देखते ही देखते उनका जीवन पलट दिया और आज वे बिना दोनों हाथों और पैरों के हर वो काम करते हैं जो आप और मैं कर सकते हैं। जैसे, खाना बनाना, शेव करना, ब्रश करना, गोल्फ़ खेलना, तैरना, कम्प्यूटर चलाना, ड्रम बजाना, चित्रकारी करना, स्कायडाइविंग करना आदि। वे एक बहुत अच्छे लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर भी है और आज पूरी दुनिया में लोगों को जीवन जीना सिखाते हैं। उनके इस कार्य में उनकी पत्नी सहायक की भूमिका निभाती हैं।


कहानी पूरी होने के बाद मैंने थोड़ा सा विराम लिया और फिर उस बच्चे से पूछा, ‘क्या तुम इस बात पर विश्वास करोगे कि टेट्रा-अमेलिया सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति, जो बिना हाथ और पैर के पैदा हुआ है इस तरह का जीवन जी सकता है? वह बच्छ कुछ बोल नहीं पाया। मैंने उससे अगला प्रश्न करा, ‘क्या तुम उनका नाम नहीं जानना चाहोगे?’ वह कुछ बोलता उसके पहले ही मैंने बोला, ‘उनका नाम निक वूयीचिच है और अगर तुम चाहो तो इंटरनेट पर उनके बहुत सारे विडियो देख सकते हो।’


दोस्तों जो अंतिम बात मैंने उस बालक से कही वही आपसे भी कह रहा हूँ, अगर निक इतना कर सकता है तो आप उससे कई गुना ज़्यादा कर सकते हैं। बस उपरोक्त सूत्रों को अपने जीवन का मूल मंत्र बनाना होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

dreamsachieverspune@gmail.com

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