फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
जीवन काटना नहीं, जीना है तो वर्तमान में रहें
Nov 10, 2021
जीवन काटना नहीं, जीना है तो वर्तमान में रहें
दोस्तों, यह जीवन ईश्वर का दिया एक बड़ा ही विचित्र उपहार है, किसी को यह बोझ लगता है तो किसी को इतना पसंद आ जाता है कि वो इसमें ऐसे खो जाता है, मानो उसे हमेशा यहीं रहना हो। कोई इसे काटता हुआ दिखता है, तो कोई इसके हर पल को जीता है। जीवन के प्रति लोगों के बिलकुल विपरीत नज़रिए को देख मन में प्रश्न आता है कि आख़िर लोगों की सोच में इतना बड़ा अंतर आता क्यों है? इसके पीछे की मूलभूत वजह क्या है? क्या कोई ऐसा तरीक़ा हो सकता है जो हमें सही तरीक़े से जीना सिखा दे? चलिए, इन सवालों के जवाब खोजने से पहले आपको एक कहानी सुनाता हूँ-
बात कई वर्ष पुरानी है, लोगों की हर सम्भव मदद करने वाले एक बड़े दयालु शिक्षक अपनी मृत्यूशैया पर अंतिम साँसें ले रहे थे। उन्हें भी इस बात का भान था लेकिन इसके बाद भी उनके चेहरे पर मुस्कुराहट और असीम शांति थी। उनके पूर्व छात्रों को जैसे ही शिक्षक की इस स्थिति का पता चला वे उनसे मिलने, उनका हाल-चाल पूछने के लिए उनके पास पहुँच गए।
सभी छात्रों को अपने आस-पास देख शिक्षक की आँखों में संतुष्टि का भाव था। कुछ पलों तक सबको निहारने के बाद वे बोले, ‘जब तक हम इस लोक में साथ हैं, मैं अपना सर्वश्रेष्ठ तुम्हें देना चाहता हूँ। अगर तुम्हारे मन में किसी भी तरह का कोई प्रश्न हो तो तुम मुझसे पूछ सकते हो। मैं तुम्हारे सवालों के जवाब देने का प्रयास करूँगा।’
जीवन के प्रति गुरुजी का नज़रिया एकदम स्पष्ट था, वे अंतिम समय में भी एकदम शांत चित्त थे। इसे देख सभी छात्रों ने उनसे जीवन जीने का सही तरीक़ा सीखना चाहा। कोई छात्र दैनिक जीवन की उलझनों के बारे में, तो कोई विपरीत परिस्थितियों, दुविधाओं या समस्याओं पर प्रश्न पूछ रहा था। कुल मिलाकर सभी छात्रों ने गुरु के समक्ष सवालों की झड़ी लगा दी थी।
जीवन जीने के तरीक़े से सम्बंधित ढेर सारे सवाल सुन शिक्षक की आँखों में आंसू आ गए। वे बोले, ‘तुमने मेरे अंतिम समय के उल्लास को, शांति को खत्म कर दिया है। तुम्हारे प्रश्नों को सुन मुझे ऐसा लग रहा है, जैसे मैं एक बुरा शिक्षक था। समय पर तुम्हें कुछ सिखा ही नहीं पाया। लेकिन कोई बात नहीं, मैं अपनी जीवनशैली से तुम्हारे प्रश्नों का जवाब देने का प्रयास करता हूँ।
अपने पूरे जीवन में, हर दिन मैं चेहरे पर मुस्कान लिए उठता था और हर नए दिन का स्वागत इस तरह करता था मानो यह दिन मेरे जीवन का पहला और आख़री दिन है। उस दिन मेरे जीवन में जो भी होता था या जो भी मेरे सामने आता था उसे मैं ईश्वर का प्रसाद मान स्वीकार कर लिया करता था और उसके लिए कृतज्ञता का भाव रखा करता था।
तुम सभी को याद होगा, मैं हर बार खुश होकर तुमसे मिला करता था, जैसे यह मेरी तुमसे पहली और आख़री मुलाक़ात है। हर मुलाक़ात में तुम लोग मुझे एक चमत्कार की भाँति लगे। हर बार तुम लोगों ने मेरे सामने दुनिया का एक नया रूप रख मुझे आश्चर्यचकित किया और इस दुनिया के प्रति एक नया नज़रिया दिया।
मैं हर दिन ईश्वर से इस तरह प्रार्थना करता था मानो यह मेरी अंतिम प्रार्थना है, जिसे भगवान सुन रहे हैं। इसलिए मैं उस प्रार्थना में ईश्वर को धन्यवाद देते हुए, सब कुछ बोलने का प्रयास किया करता था। दिन भर थकने के बाद भी मैं इस तरह काम किया करता था मानो मुझे इसके बाद काम करने का मौक़ा ही नहीं मिलेगा या मुझे कभी काम करना ही नहीं पड़ेगा।
मैंने हर दिन भगवान की हर रचना को मुस्कान के साथ देखा, उसकी प्रशंसा करी, जैसे मैंने उसे जीवन में पहली और आख़री बार देखा हो। कुल मिलाकर देखा जाए तो मैंने अपने दिन को इस तरह जिया जैसे मैं हमेशा सिर्फ़ इस एक दिन के इंतज़ार में ही था।
आज मैं जब अपने जीवन में पीछे मुड़कर अपनी ग़लतियों को ढूँढने का प्रयास करता हूँ, तो मुझे कोई गलती नज़र ही नहीं आती है। ऐसा लगता है मानो मैंने अपना जीवन पूरी तरह जी लिया है और अब मैं परमपिता परमेश्वर से मिलने के लिए पूरी तरह तैयार हूँ। तुम सभी बच्चों के लिए यही मेरा अंतिम पाठ है। अब तुम्हारी बारी है, मैं चाहता हूँ कि तुम लोग भी हर दिन को इस तरह जीयो जैसे कि यह तुम्हारे जीवन का एकमात्र दिन है।
जी हाँ दोस्तों, अगर जीवन को काटना नहीं जीना है, तो जीवन में घटने वाली हर घटना को ईश्वर का आशीर्वाद मान स्वीकारना होगा और साथ ही भूत या भविष्यकाल में रहने के स्थान पर वर्तमान को इस तरह जीना होगा जैसे यह हमारा इस दुनिया में पहला और अंतिम दिन है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर