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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

जीवन जिएँ, काटे नहीं

जीवन जिएँ, काटे नहीं
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June 27, 2021

जीवन जिएँ, काटे नहीं…

 

दोस्तों आमतौर पर हम में से ज़्यादातर लोग बहुत सारे कार्य सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि हम खुश रह सकें। लेकिन इसके बाद भी कई बार ख़ुशी हम से बहुत दूर और तनाव व दबाव हमारे नज़दीक नज़र आते है। ऐसा ही कुछ रश्मि (बदला हुआ नाम) के साथ हो रहा था। आगे बढ़ने से पहले थोड़ा सा आपको रश्मि के बारे में बता देता हूँ।


15 वर्षीय रश्मि एक बहुत ही प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी लड़की थी। स्कूल के दिनों में ही उसने अपने कैरियर को लेकर स्पष्ट योजना बना ली थी और उसी योजना पर कार्य करते हुए पढ़ाई पूरी होने के पूर्व ही उसका चयन कैम्पस इंटरव्यू द्वारा एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में हो गया। लेकिन इसके बाद भी वह रुकी नहीं क्यूँकि अब वह अपनी योजना के अगले चरण पर कार्य कर रही थी। उसका मानना था कि एक बार अपने कैरियर में अच्छी तरह सेट हो जाऊँ तो बाक़ी जीवन आराम से ख़ुशी-ख़ुशी कट जाएगा, वैसे यही तो उसे शुरू से सिखाया गया था। कैरियर बनाने की जद्दोजहद में कब अगले 5 वर्ष निकल गए उसे पता ही नहीं चला। 


रश्मि के माता-पिता भी उसकी बढ़ती उम्र की वजह से थोड़ा चिंतित थे, उन्होंने रश्मि पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था। वैसे अब रश्मि को भी लगने लगा था कि जीवन को स्थिरता देने के लिए शादी कर लेना उचित है। मात-पिता की पसंद से उसने अपना जीवनसाथी चुन लिया। इस नए बदलाव के साथ वह थोड़ा सा रिलैक्स हुई ही थी और उसे लगने लगा था कि जो सपना उसने इतने वर्षों से संजो रखा था वह अब पूरा होने ही वाला है। अब वह अपने सपनों का जीवन ख़ुशी-ख़ुशी जी  पाएगी। लेकिन तभी पति के ट्रांसफ़र की खबर ने उसे वापस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। 


अभी भी भविष्य की सुरक्षा और बचे हुए सपने घर, गाड़ी आदि के लिए कई कार्य करना बाक़ी था। इसलिए रश्मि और उसके पति ने निर्णय लिया कि नौकरी छोड़ने के स्थान पर वे अलग-अलग शहर में अपनी नौकरी जारी रखेंगे। लगभग दो वर्षों तक उनका पारिवारिक जीवन शनिवार-रविवार की छुट्टियों तक सीमित हो गया और इसका असर अब दोनों के व्यवहार में स्पष्ट रूप से दिखने लगा था। अब छोटी-छोटी बातों पर दोनों में कई बार झगड़ा भी हो ज़ाया करता था। घर में अब पैसे और संसाधन तो बहुत हो गए थे लेकिन ख़ुशियाँ अभी भी नदारद थी। इसी बीच उनके परिवार में एक नया मेहमान आया और एक बार फिर रश्मि नई ज़िम्मेदारियों में व्यस्त हो गई। बच्चे का लालन-पालन, पढ़ाई आदि में कब अगले 10-15 साल गुजर गए और रश्मि अब 45 वर्ष की हो चुकी थी। लेकिन सब करने के बाद भी ख़ुशियाँ उससे कोसों दूर थी और अब वह रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों से तंग आकर तनाव में रहने लगी जिसका असर उसकी सेहत और व्यवहार दोनों में साफ़ दिखने लगा था।


दोस्तों वैसे रश्मि की यह कहानी हम में से कई लोगों की कहानी है और इसका सबसे बड़ा कारण बचपन से ही जीवन की सही प्राथमिकताएँ पता ना होना है। बचपन में हमें बता दिया जाता है कि पहले अच्छे नम्बरों के साथ अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर लो और किसी अच्छे कॉलेज में प्रवेश ले लो फिर जीवन आराम से कट जाएगा। बालमन इसे सच मान लेता है है और हम बचपन की छोटी-छोटी ख़ुशियों को मारकर पढ़ाई में लग जाते हैं और जैसा बताया गया था वैसे ही बड़े-बड़े सपने देखना शुरू कर देते है। लेकिन कॉलेज पूरा होते तक एहसास होने लगता है कि मंज़िल अभी दूर है और हम बचपन के समान ही अपनी जवानी दांव पर लगाकर, एक बार फिर अपनी ख़ुशियों को पीछे धकेल देते हैं और इसी तरह यह सिलसिला आगे बढ़ता जाता है। बाद में पैसों और संसाधनों के ज़रिए हम ख़ुशी को पाने का असफल प्रयास करते हैं और हम इसका दोष कभी अपने नसीब तो कभी परिस्थिति या परिवार के सदस्यों को देना शुरू कर देते हैं। ऐसा ही कुछ रश्मि के साथ भी हो रहा था।


लेकिन दोस्तों अगर जीवन का पूर्ण मज़ा लेना चाहते हैं तो कभी भी ख़ुशी को संसाधन, पद और पैसों के ज़रिए पाने की कोशिश ना करें क्यूंकि ख़ुशियाँ कभी भी कुछ करने से या उसके पीछे दौड़ने से नहीं पाई जा सकती है। अगर आप वाक़ई जीवन का असली मज़ा लेना चाहते हैं तो ख़ुशियों का पीछा करने के स्थान पर, जीवन के हर पल का आनंद लेना शुरू कर दें। इसके बाद आप अपने अंदर एक मज़ेदार परिवर्तन पाएँगे, इस बार आप ख़ुशियों के पीछे नहीं होंगे बल्कि ख़ुशियाँ आपके पीछे होंगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर 

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