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फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...

जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है

जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है
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Mar 9, 2021
जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है…

आज अपने बच्चे की काउन्सलिंग के लिए एक परिवार मेरे पास आया। माता, पिता व बच्चे के साथ कुछ देर बातचीत करने पर मुझे एहसास हुआ कि पूरा परिवार अपनी पारिवारिक परिस्थितियों, संघर्ष और सीमित संसाधनों को ही हर समस्या के लिए दोषी ठहरा रहा था। जैसे, पिता ने मुझसे कहा, ‘सर मेरी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में हुई, जहां सरकारी स्कूल में कई-कई दिनों तक शिक्षक ही नहीं आते थे। जैसे-तैसे शिक्षा पूरी करी तो पिता ने सहयोग करना बंद कर दिया।’ वहीं बच्चे की माता का कहना था, ‘सर, शादी के पहले तक तो सब ठीक था पर शादी के बाद मानो सारी दिक़्क़त एक साथ ही आ गई। इनकी और इनके परिवार की हालत तो इन्होंने आपको बता ही दी। सारी आस इस बच्चे पर थी, पर अब तो लग रहा है यह भी इनके जैसा ही निकलेगा।’

मुझे उन सभी की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हो रहा था, पिता अपने पिता और यहाँ तक की ख़ानदान को दोष दे रहे थे। माँ, बच्चे के सामने ही उसके पिता और अपने पति का अपमान कर रही थी और साथ ही बच्चे की क़ाबिलियत पर, समय से पहले प्रश्न चिन्ह लगा रही थी। हर कोई खुद को एक दूसरे से ज़्यादा परेशानियों से घिरा सिद्ध करने में लगा था। मैंने समझाने से पहले उन्हें एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार थी-

एक बार एक व्यस्त रोड पर कौवा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर लोगों को आगाह करना चाह रहा था कि आगे रोड टूटी पड़ी है वे उस ओर ना जाएँ। लेकिन कौवे को लग रहा था कि कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दे रहा है। कुछ ही देर में टूटी हुई रोड की वजह से एक भयानक ऐक्सिडेंट हुआ और उसमें कुछ लोगों को गम्भीर चोट आई।

ऐक्सिडेंट देख कौवा उदास हो गया और उड़कर पेड़ की एक शाख़ पर बैठ गया। उसे उदास बैठा देख उसी शाख़ पर बैठे तोते ने उससे उदासी का कारण पूछा तो कौवे ने पूरी कहानी दोहरा दी और कहा मुझसे बेहतर तो तुम हो। सब लोग तुम्हारी बात कितनी ध्यान से सुनते हैं, तुमसे बात करने के लिए तुम्हारे पास आते हैं। कहानी सुनकर तोता बोला, ‘नहीं-नहीं, तुम्हारी स्थिति तो फिर भी बहुत अच्छी है, मेरी हालात सुनोगे तो हैरान रह जाओगे। जब मैं पेड़ पर बैठता हूँ तो पत्तियों के बीच मेरे रंग की वजह से लोग मुझे पहचान ही नहीं पाते हैं।

एक दूसरे की तकलीफ़ें सुनने के बाद दोनों को ही ऐसा लगने लगा था कि वे संसार के सबसे परेशान प्राणी हैं। दोनों मिलकर मोर के पास गए और उससे सहायता माँगी। दोनों की बात सुन मोर बोला, ‘भाइयों, मैं भी तुम्हारे जैसे ही त्रस्त हूँ। कभी भी मैं अपनी इच्छा से कहीं जा नहीं पाता, लोग मेरे सुंदर पंखों को पाने के लिए मेरा शिकार करते हैं। अपने वजन की वजह से मैं ज़्यादा उड़ नहीं पाता हूँ। थोड़ी ही देर में, मोर ने भी सिद्ध कर दिया कि वो भी उन लोगों जितना ही बल्कि उनसे ज़्यादा परेशान है।

तीनों ने गाँव के शिक्षक से मदद लेने का निर्णय लिया, वे उनके पास गए और अपनी परेशानी बताई। शिक्षक ने तीनों से कहा, ‘तुम्हें ईश्वर ने एक विशेष उद्देश्य से ऐसा बनाया है। तुम्हारी क़िस्मत ख़राब नहीं है अपितु तुम भाग्यशाली हो।’ शिक्षक की बात सुन तीनों हैरान थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि वे क़िस्मत वाले या भाग्यशाली कैसे हुए? उन्होंने शिक्षक से विस्तार से बताने के लिए कहा।

शिक्षक बोले, ‘लोग कौवे की बात समझ कर ही तो ख़तरों के बारे में जान पाते हैं। लेकिन जवाब देने में समय व्यर्थ करने के स्थान पर उस आने वाली परेशानी से निपटने की तैयारियाँ करते हैं। तुम सोच कर देखो इतने व्यस्त और ख़राब रोड पर मात्र एक ही ऐक्सिडेंट क्यूँ हुआ? उस वक्त गुज़रने वाले अन्य लोग कैसे बच गए? ठीक इसी तरह, तोते अगर तुम्हारा रंग हरा नहीं होता और तुम दूर से ही पहचान में आ जाते और लोग तुम्हारी मीठी आवाज़ की वजह से तुम्हें पकड़कर पिंजरे में रखते। तुम्हारी आज़ादी छिन जाती और मोर तुम तो दुनिया के सबसे सुंदर पक्षी हो। तुम्हारे पंख इंसान पूजा में काम में लेता है, तुम्हें देखने के लिए दूर-दूर से आते है। तुम अदभुत हो, तुम्हें तो राष्ट्रीय पक्षी माना गया है और तुम्हारी सुरक्षा सरकार करती है। इसलिए तुम्हें तो चिंतित होना ही नहीं चाहिए।

कहानी पूरी होने के बाद मैंने सबसे पहले बच्चे को सायकोमेट्रिक टेस्ट में व्यस्त करा और माता पिता को समझाया, जब तक आप अपने परिवार, अपने गाँव, अपने शिक्षकों, अपने विद्यालय पर नाज़ नहीं करेंगे तब तक बच्चों को सही शिक्षा नहीं दे पाएँगे। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं आप सोचकर देखिए अगर आपको गाँव के स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा नहीं मिली होती तो क्या आपके लिए बाद में आगे पढ़ पाना सम्भव होता? गाँव में जो आपको नैतिक शिक्षा और पूरे परिवार का साथ मिला, क्या वो हॉस्टल या किसी बड़े शहर में अकेले रहकर मिल पाता, शायद नहीं। इसके बाद माता-पिता और बच्चों को बैठा कर काउन्सलिंग पूरी करी और भविष्य का प्लान बनाया।

दोस्तों एक बात याद रखिएगा, हम सब लोगों को ईश्वर ने अनूठा और अद्वितीय बनाया है, हमारे जैसा कोई नहीं है। अपनी तुलना दूसरों से करके हम इस बहुमूल्य बात को भूल जाते हैं और जीवन में मिलने वाले अवसरों को अकसर गँवा देते हैं, ईश्वर और परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं। याद रखिएगा जिस तरह पौधे को फलदार बनाने के लिए धूप, छाँव, बारिश, हवा सब ज़रूरी होता है, ठीक उसी तरह भविष्य में हमें श्रेष्ठ बनाने के लिए ईश्वर हमारे जीवन में अलग-अलग चुनौतियाँ देता है। ईश्वर ने जो भी आपको दिया है उसे स्वीकारें, उसे अपनी बेहतरी के लिए काम में लें और सफल बनें।

-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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