फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
डर से नहीं, प्यार से सिखाएँ


April 14, 2021
डर से नहीं, प्यार से सिखाएँ…
मेरी नज़र में बच्चों का लालन-पालन एक ऐसा अनुभव है जो अगर खुले मन, माहौल और आवश्यकता को समझकर प्यार के साथ किया जाए तो जीवन भर की सुखद याद में परिवर्तित हो जाता है और अगर ज़रा संकीर्ण और संकुचित मानसिकता के साथ किया जाए तो कटु अनुभव। जी हाँ दोस्तों बात थोड़ी कटु ज़रूर है पर मैंने अपने अनुभव में तो अभी तक यही पाया है।
कल का ही क़िस्सा ले लीजिए मेरे पास धार से एक महिला का फ़ोन आया। वे अपने बच्चे के व्यवहार से परेशान थी और इसी विषय में मुझसे चर्चा करना चाहती थी। चर्चा के दौरान मुझे पता चला कि माता-पिता दोनों ही अल्प शिक्षित हैं और चाय की एक गुमटी चलाते हैं। लेकिन वे चाहते थे कि उनका बच्चा पढ़-लिख कर अपना अच्छा भविष्य बना सके इसीलिए उन्होंने उसका दाख़िला शहर के एक अच्छे-बड़े अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय में करवा दिया।
शुरू में तो उन्हें सब कुछ ठीक लगा लेकिन थोड़े ही दिनों में बच्चे के अच्छे भविष्य के सपने उन्हें टूटते हुए लगने लगे। सबसे पहली चीज़ जो माता-पिता ने महसूस करी, वह यह थी कि बच्चा अब उनकी बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देता था। इसके अलावा वह अब ब्रांडेड चीजों को ख़रीदने के लिए ज़िद्द करने लगा था और बाइक पर घूमना, देर रात घर लौटना, झूठ बोलना, पढ़ाई पर ध्यान ना देना उसकी आदतों में शुमार हो गया था।
पहले सुझाव के तौर पर मैंने जैसे ही पेरेंट्स को विद्यालय में बात करने के लिए कहा वे एकदम से हंसने लगे फिर एकदम से माफ़ी माँगते हुए बोले, ‘सर, सबसे पहले हमने स्कूल में ही बात करने की कोशिश करी थी लेकिन उन्होंने तो उल्टे हमारी गलती बताते हुए इस साल में रिज़ल्ट और बच्चे को सुधारने का अल्टीमेटम दे दिया है। विद्यालय का कहना है कि अगर बच्चा इस वर्ष नहीं सुधरा तो वे उसे निकाल देंगे और जब हमने समाधान पूछा तो आपका नम्बर दिया। अब आप ही बताइए हम क्या करें?
मैंने उनसे कहा मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ जो मैंने इंटरनेट पर पढ़ी थी। मुझे नहीं पता यह सही है या नहीं लेकिन उसमें बताई गई बात एकदम सही है। तो चलिए शुरू करते हैं-
जापान के प्रसिद्ध ज़ेन मास्टर बनकेइ बच्चों को ध्यान व जीवन जीना सिखाने के लिए अपने सेंटर में कैम्प लगाया करते थे। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी उनके कैम्प में भाग लेने के लिए पूरे जापान से बच्चे आए थे। कैम्प के शुरुआती दिनों में एक बच्चा दूसरे बच्चे का सामान चोरी करते हुए पकड़ा गया। बच्चे व व्यवस्था में लगे अन्य मास्टर्स ने यह बात बनकेइ को बताई और उस छात्र को कैम्प से निकालने का अनुरोध किया। लेकिन बनकेइ ने सभी की बातों को अनसुना करते हुए बच्चे के सर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर से उसे अन्य बच्चों के साथ पढ़ने के लिए भेज दिया।
कुछ दिन तो सब ठीक चलता रहा लेकिन एक दिन फिर से उस बच्चे ने अपनी आदतानुसार चोरी करने का प्रयत्न किया। लेकिन इस बार फिर वह पकड़ा गया। एक बार फिर उसे बनकेइ के पास ले जाया गया। लेकिन बनकेइ का व्यवहार अभी भी उस बच्चे के प्रति पहले जैसा ही था। बनकेइ द्वारा बच्चे को सजा ना दिए जाने के कारण सेंटर के अन्य बच्चे विरोध करने लगे। लेकिन बनकेइ पर इसका भी कोई असर ना पड़ा। अब सभी बच्चों ने मिलकर बनकेइ के नाम एक पत्र लिखा कि यदि चोरी करने वाले बच्चे को तत्काल प्रभाव से सजा के रूप में एकेडमी से नहीं निकाला तो बाक़ी सभी छात्र कैम्प छोड़कर चले जाएँगे।
बनकेइ ने पत्र पढ़ा और तुरंत ही सभी छात्रों को मैदान में इकट्ठा होने का बोला। जैसे ही सभी छात्र वहाँ आए बनकेइ बोले, ‘ प्रिय छात्रों, आप सभी बहुत बुद्धिमान हैं, आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। पर जिस छात्र को आपने चोरी करते हुए पकड़ा है वह तो यह भी नहीं जानता कि क्या सही है और क्या ग़लत? इसलिए आप ही बताइये मैं कैसे इसे पढ़ाने से इनकार कर दूँ? इसके बाद भी अगर आप लोग जाना चाहते हैं तो आप सभी किसी और एकेडमी में प्रवेश लेकर अपनी शिक्षा पूर्ण कर सकते हैं। यह यहीं रहेगा और अपनी शिक्षा पूर्ण करेगा।’ बनकेइ की बात सुनते ही चोरी करने वाला छात्र उनके पैरों में गिरकर फूट-फूट के रोने लगा। बनकेइ ने उस छात्र को उठाया और अपने गले लगा लिया। आज वह छात्र अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ सीख चुका था।
जी हाँ दोस्तों आम तौर पर हम बच्चे की बुरी आदतों को ठीक करने के लिए पहले उसे रोकने का प्रयास करते हैं लेकिन अगर वह इस तरीक़े से सुधर ना पाए तो हम उसे टोकना, पाबंदी लगाना और अंत में ठोकना शुरू कर देते हैं। लेकिन याद रखिएगा दोस्तों यह तरीक़ा बच्चे और आपके बीच की दूरी ही बढ़ाएगा। अगर आप वाक़ई बच्चे को सुधारना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने रिश्ते का आधार डर नहीं प्यार बनाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com

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