फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
तनाव या गुणवत्ता पूर्ण जीवन, चुनाव आपका


May 12, 2021
तनाव या गुणवत्ता पूर्ण जीवन, चुनाव आपका…
कल के लेख पर ढेर सारी प्रतिक्रिया के लिए ढेर सारा धन्यवाद दोस्तों। कल के लेख को पढ़कर एक पाठक ने मुझसे बहुत ही सुंदर प्रश्न किया या यूँ कहूँ सुझाव दिया। उनका कहना था, ‘सर, कोविद के दौरान लॉकडाउन में आम लोगों को जो दिक़्क़तें हो रही हैं वे कहीं ना कहीं हमारी बदली हुई जीवनशैली की वजह से हैं। क्या ‘सेल्फ़ सस्टेनेबल लिविंग’ या पर्यावरण के अनुकूल घर (ईको फ़्रेंड्ली होम) बनाना इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता?
दोस्तों, मैं यह तो नहीं कह सकता हूँ कि जीवन जीने के तरीक़े में परिवर्तन करके हम इस समस्या से निजात पा लेंगे लेकिन मैं एक बात निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि इस तरह से हम आत्म संतुष्टि के स्तर को काफ़ी बढ़ा सकते हैं और कम से कम संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता वाला स्वस्थ जीवन ज़रूर जी सकते हैं। आइए इसे मैं आपको एक जोक के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूँ, जिस तरह एक आम भारतीय सबसे पहले टूथब्रश को दाँत साफ़ करने के लिए उपयोग में लेता है, उसके बाद वह उसे अन्य सामान की सफ़ाई करने के लिए प्रयोग में लाता है और अंत में उसके आगे के ब्रश को तोड़ कर पाजामे में नाड़ा डालने के लिए प्रयोग करता है। ठीक इसी तरह दोस्तों हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना है, हमें उन्हें निचोड़ना नहीं है बल्कि कुछ इस तरह प्रयोग करना है जिससे कम से कम अपशिष्ट बचे और हम आने वाली पीढ़ियों को एक अच्छा और संतुलित पर्यावरण सौंप सकें। इसके लिए दोस्तों हमें पर्यावरणीय संसाधनों के अत्यधिक दोहन के स्थान पर प्राकृतिक और नवीकरणीय संसाधनों (Renewable resources) के उपयोग को प्राथमिकता देना होती है।
निश्चित तौर पर दोस्तों अब आपके मन में प्रश्न आ रहा होगा, क्या इस तरह जीवन यापन सम्भव है? जी हाँ दोस्तों कुछ साल पहले तक मुझे भी यह असम्भव लगता था। लेकिन मेरे यह विचार इंदौर के पास ग्राम सनावदिया निवासी पद्मश्री जनक पलटा मगिलिगन से मिलने के बाद बदल गए। जनक दीदी के पास हमारी तरह सभी आधुनिक संसाधन है, बस वे उनका उपयोग कुछ अलग तरह से करती हैं, जैसे माइक्रोवेव एक सामान रखने की छोटी अलमारी के रूप में काम आता है, एक गैस सिलेंडर उनके यहाँ लगभग 2 वर्ष 5 माह चलता है और साबुन/डिटरजेंट आदि की तो उन्हें ज़रूरत पड़ती ही नहीं है। अब निश्चित तौर पर आपके मन में प्रश्न आ रहा होगा कि फिर उनका काम चलता कैसे है?
दोस्तों वे अपना जीवन ‘सेल्फ़ सस्टेनेबल लिविंग’ के आधार पर जीती हैं, जैसे बिजली के लिए उन्होंने सोलर पैनल और पवनचक्की (विंडमिल) लगा रखी है और वे इससे इतनी बिजली पैदा कर लेती हैं कि उनके खुद के उपयोग के साथ-साथ वे पिछले लगभग ग्यारह वर्षों से गाँव की स्ट्रीट लाइट के लिए निशुल्क बिजली दे रही हैं। खाना बनाने, पानी गर्म करने आदि के लिए वे सौर ऊर्जा का उपयोग करती हैं, शुद्ध दूध उन्हें अपनी देसी गाय से मिल जाता है और फल, सब्ज़ी, अनाज से लेकर मसाले तक सब वे अपने घर के पास खुले स्थान पर उगा लेती हैं।
बर्तन धोने के लिए राख, काँच या चीनी के बर्तन के लिए निम्बू या संतरे के छिलके का पाउडर, शैम्पू के लिए ऐलोवेरा, कंडिशनर के लिए गुड़हल, बर्तन साफ़ करने के लिए उपयोग में आया पानी पौधों की सिंचाई में काम आ जाता है। दोस्तों बाज़ार पर या दूसरों पर उनकी निर्भरता मात्र नमक, तेल, गुड़ व चाय पत्ती के लिए है। दोस्तों जब जनक दीदी ने ग्राम सनावदिया में रहना शुरू किया था तब उनके घर का जलस्तर 600 फ़ीट पर था और ट्यूबवेल का पानी मात्र तीन माह की ज़रूरत पूरी कर पाता था। आज उनके प्रयासों से यह जलस्तर 250 फ़ीट पर आ गया है और पानी भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। असल में दोस्तों वे अपना जीवन एक उद्देश्य के साथ जी रही हैं, ‘पर्यावरण और प्राणियों के साथ सद्भावना से रहना।’
दोस्तों यह सही है एक दिन में इस तरह की जीवन शैली अपनाना या इस तरह का घर बनाना सम्भव नहीं है लेकिन अगर आप भी मिलावट और केमिकल रहित भोजन खाना चाहते हैं, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जीवन जीना चाहते हैं तो किसी ना किसी रूप में हमें इन बातों को अपनाना होगा। हो सकता है आपको इस वक्त लग रहा हो कि मैं कुछ असम्भव सी बातें बता रहा हूँ जो आज की भागमभाग और प्रतियोगिता वाली ज़िंदगी से मेल नहीं खाती है, तो चलिए मैं आपको बेंगलुरु निवासी श्री मंजूनाथ और श्रीमती गीता के बारे में बताता हूँ जो आज ना सिर्फ़ पर्यावरण के अनुकूल घर बनाकर रह रहे हैं बल्कि सौर पैनलों के ज़रिए ऊर्जा पैदा कर अपनी ज़रूरत पूरी करने के बाद अतिरिक्त ऊर्जा सरकार को देकर लगभग 70000 रुपए कमा रहे हैं।यह कपल वर्षा से साढ़े चार लाख लीटर जल का संचयन एक गड्ढे में करता है और उसमें से लगभग 2 लाख लीटर अपने लिए उपयोग में लेता है और अतिरिक्त पानी रिचार्जिंग के काम आता है। जिससे भुजल स्तर सुधर रहा है। वे अपने घर में ही खुद के लिए जैविक सब्ज़ी, फल आदि उगा रहे है।
श्री मंजूनाथ एवं श्रीमती गीता ने घर का निर्माण करते वक्त पर्यावरण के अनुकूल संसाधनों के प्रयोग पर अधिक ज़ोर दिया और घर कुछ इस तरह बनाया कि उनके घर का तापमान हमेशा बाहरी तापमान के मुक़ाबले 3 डिग्री कम रहता है। वे आज बिजली, पानी और भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकता के लिए पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं।
जी हाँ दोस्तों, हमें एक बार अपनी प्राथमिकताओं के बारे में सोचना होगा। हमें गुणवत्ता वाले जीवन या फिर खुद के बारे सोचते हुए संसाधन इकट्ठा कर विलासिता पूर्ण जीवन, जिसमें पर्यावरण और दूसरे प्राणियों के लिए कोई स्थान ही ना हो में से किसी एक को चुनना होगा।। याद रखिएगा दोस्तों हमारा जीवन वैसा ही होता है जैसा हम उसे बनाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com