फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
ताकत, शब्दों की


Sep 19, 2021
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
ताकत, शब्दों की !!!
आज छोटू चीता बहुत खुश और ऊर्जा से भरा हुआ था। अपने पिता से शिकार करना सीखने के बाद उनकी आज्ञा से वह आज पहली बार शिकार करने के लिए अकेला निकला था। पिता के निर्देशानुसार एकदम सचेत रहते हुए, वह सधे हुए कदमों के साथ जंगल के भीतरी इलाक़े में शिकार ढूँढ रहा था। उसी वक्त जंगल में एक लकड़बग्घा भी घूम रहा था, उसने छोटू चीते को आवाज़ देते हुए कहा, ‘ए छोटू यहाँ घने जंगल में क्या कर रहे हो?’ छोटू चीता बोला, ‘शिकार करने जा रहा हूँ।’ ‘अकेले ही?’ लकड़बग्घे ने छोटू चीते से पूछा। छोटू चीता बोला, ‘हाँ!’ छोटू चीते का जवाब सुनते ही लकड़बग्घा जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, ‘अरे अभी तो तुम्हारी खेलने-कूदने की उम्र है, इतनी कम उम्र में, बिना पूर्व अनुभव के, क्या सोचकर शिकार करने निकल लिए? घर जाओ खेलो-कूदो, खाओ-पियो मस्ती करो।’
लकड़बग्घे की बात सुन छोटू चीता एकदम उदास हो गया, उसे खुद की क्षमता पर शक होने लगा। कभी उसे लगता था कि कहीं लकड़बग्घा सही तो नहीं कह रहा था, तो कभी वह खुद को समझाता था कि ऐसी फ़ालतू की बात पर भरोसा करने से क्या फ़ायदा। अगर मेरे में क्षमता नहीं होती तो पिताजी ऐसे अकेले तो नहीं भेजते। इसी मानसिक द्वन्द के बीच, बेमन से उसने 2-3 बार शिकार करने का प्रयास किया पर उसे सफलता नहीं मिली। उस दिन वह भूखा ही रहा।
भूख से परेशान छोटू चीते को इधर-उधर चक्कर खाता देख पिता ने उससे इसका कारण पूछा। छोटू चीते ने अपने साथ घटी पूरी घटना पिता को सुना दी। वे मुस्कुराए और उससे बोले कोई बात नहीं, कई बार हमें असफलता हाथ लगती है। खुद पर पूर्ण विश्वास रखते हुए, आज फिर एक बार प्रयास करो।
पिता से मिले मोटिवेशन ने उसके विश्वास को कई गुना बढ़ा दिया था। आज एक बार फिर छोटू चीता पूरे आत्मविश्वास के साथ शिकार करने निकला। अभी वह कुछ दूर ही चला था कि उसे एक बूढ़े बंदर ने रोक लिया और पूछा, ‘छोटू बेटा, कहाँ जा रहे हो?’ छोटू चीते ने कल के सामान ही अपने जवाब को दोहरा दिया, ‘शिकार करने जा रहा हूँ बंदर मामा।’ छोटू चीते का जवाब सुनते ही बंदर बोला, ‘बहुत ख़ूब, याद रखना तुम बहुत शक्तिशाली हो और बहुत तेज़ गति के साथ अपने शिकार पर हमला कर सकते हो। तुम्हारी ताक़त और गति तुम्हें कुशल शिकारी बनाती है, जाओ तुम्हें जल्द ही सफलता मिलेगी।’
बंदर व पिता की बात ने छोटू चीते का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ा दिया था। उस बढ़े हुए आत्मविश्वास के साथ छोटू चीते को कुछ ही घंटों में शिकार करने में सफलता मिल गई।
दोस्तों दोनों ही दिन छोटू चीता अकेला था। उसमें ताक़त, फुर्ती, दौड़ने की क्षमता सब-कुछ वही थी फिर उसे एक दिन असफलता और दूसरे दिन सफलता क्यूँ मिली? दोस्तों सिर्फ़ और सिर्फ़ कहे गए शब्दों से मिली ताक़त से। पहले दिन उसे हतोत्साहित अर्थात् डिस्करेज किया गया था इसलिए वह असफल रहा और वहीं दूसरे दिन उसे प्रोत्साहित अर्थात् एनकरेज़ किया गया था, उसे उसकी शक्ति और क्षमता का एहसास करवाया गया था इसलिए वह सफल रहा।
यही गलती साथियों अकसर हम पेरेंटिंग के दौरान अपने बच्चों के साथ कर जाते हैं। जाने-अनजाने में ही हम अपने शब्दों से उन्हें हतोत्साहित कर देते हैं। याद रखें, हमें बच्चों के सामने प्रोत्साहित करने वाले, आशा जगाने वाले शब्दों का प्रयोग ज़्यादा करना है। इसका अर्थ यह क़तई नहीं है कि हम उन्हें उनकी गलती या कमजोरी के बारे में ना बताएँ। कमजोरी या गलती के बारे में बताना भी उतना ही ज़रूरी है जितना उसकी क्षमता या शक्ति के बारे में बताना। बस कमजोरी बताते वक्त याद रखें कि आप यह सकारात्मक शब्दों के साथ, उसके अंदर विश्वास जगाते हुए कर रहे हैं।
कई बार दोस्तों इसका विपरीत भी होता है, हम तो इस बात का ख़्याल रख लेते हैं लेकिन कई बार बच्चा नकारात्मक माहौल या विचार वाले लोगों को अपने दोस्त या साथियों के रूप में चुन लेता है और इसी वजह से उसकी सफलता, इससे प्रभावित होने लगती है। इससे बचाने के लिए हमें उसे सकारात्मक लोगों को चुनना, उनके बीच रहना सिखाना होगा।
वैसे नकारात्मक बातों या अनुभवों से बचकर सकारात्मक रहने का एक और तरीक़ा सकारात्मक सेल्फ़ टॉक करना भी है। आप सुबह और सोते समय पॉज़िटिव ऐफ़र्मेशन कह कर भी खुद को सकारात्मक, ऊर्जावान और आशा से भरा हुआ बनाए रख सकते हैं।
दोस्तों हमारे कहे या सुने शब्द ही पहले हमारे विचार बनते हैं फिर हमारा दृष्टिकोण और उसके बाद हक़ीक़त। इसलिए हमें शब्दों की ताक़त को हमेशा याद रखना चाहिए और जहां तक सम्भव हो अपने हर वार्तालाप में आशा और विश्वास जगाने वाले सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। याद रखिएगा, शब्द जीवन बदलने की ताक़त रखते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर