फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
ताक़त, शब्दों की


Aug 31, 2021
ताक़त, शब्दों की…
‘यह तो गधा है। बड़ा हो कर पत्थर ही तोड़ेगा। यह काउन्सलिंग-वाउनस्लिंग किसी काम की नहीं है इसके लिए। फ़ालतू में पैसे क्यूँ बर्बाद कर रहे हो?’ पुणे में एक परिवार द्वारा काउन्सलिंग के लिए बुलाए जाने पर आज इन शब्दों के साथ मेरा स्वागत हुआ। परिवार के वरिष्ठ सदस्य के द्वारा कहे इन शब्दों से मुझे आश्चर्य तो नहीं हुआ लेकिन बच्चे की समस्या के पीछे का मुख्य कारण बिना बच्चे से बात करे समझ आ गया।
जी हाँ दोस्तों, बात करते समय अकसर हम ‘शब्दों की ताक़त’ भूल जाते हैं और बच्चों को ऐसी बात कह जाते हैं जो उसकी ग्रोथ में ब्रेक लगा देती है या फिर वही बात सही तरह से कही गई हो तो उसकी ग्रोथ की स्पीड कई गुना बढ़ा देती है। आइए, आज के लेख की शुरुआत हम एक ऐसी सच्ची कहानी से करते हैं, जो मेरी इस बात को आपको बहुत आसानी से समझा देगी।
बात आज से कई दशक पुरानी है, अमेरिका के ओहियो शहर में औसत बुद्धि या यह कहना बेहतर होगा कि मंदबुद्धि बच्चा रहता था। विद्यालय के ज़्यादातर शिक्षक उस बच्चे की सीखने की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके थे। एक दिन विद्यालय में एक शिक्षक ने उस बच्चे को अपने माता-पिता को देने के लिए एक पत्र दिया।
विद्यालय से घर पहुँचने के बाद उस बच्चे ने अपनी माता के हाथ में पत्र देते हुए कहा, ‘माँ, मेरे शिक्षक ने मुझे यह पेपर दिया और कहा कि मैं इसे सिर्फ़ तुम्हें दे दूँ।’ माँ ने बच्चे के हाथ से वह चिट्ठी ली और उसे पढ़ते ही उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। बच्चे ने माँ से चिट्ठी जोर से पढ़कर सुनाने के लिए कहा, तो वे बोली, ‘बेटा इस चिट्ठी में तुम्हारी तारिफ़ करते हुए लिखा है कि ‘आपका बेटा बहुत प्रतिभाशाली है, उसके हिसाब से यह स्कूल बहुत छोटा है और उसे अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने के लिए हमारे पास अच्छे शिक्षक नहीं है। कृपया आप उसे स्वयं पढ़ाएँ।’
लेकिन हक़ीक़त में दोस्तों विद्यालय से आए उस पत्र में कुछ और ही लिखा था। उस पत्र में शिक्षक ने बच्चे की शिकायत करते हुए कहा था कि, ‘आपका बच्चा मानसिक तौर पर कमजोर है और ऐसे कमजोर बच्चे को विद्यालय में रखना हमारे लिए सम्भव नहीं है। कृपया विद्यालय से उस बच्चे का नाम कटवा लीजिए।’
माँ ने बच्चे को डाँटने, उस पर चिढ़ने या सच्चाई बताने के स्थान पर ऐसे शब्दों का प्रयोग करा जिसकी सहायता से वे उसे ऊर्जा दे सकती थी, मोटिवेट कर सकती थी। उस दिन माँ ने एक और बड़ा निर्णय लिया और बच्चे का नाम उस विद्यालय से कटवा कर उसे सही तरह से शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी स्वयं निभाने लगी।
आगे चलकर दोस्तों यह मंदबुद्धि बच्चा सदी का महान वैज्ञानिक कहलाया, जिन्हें हम बल्ब आविष्कारक थॉमस आल्वा एडिसन के नाम से जानते हैं। एक ओर विद्यालय द्वारा कहे गए शब्द जहां बच्चे का मनोबल खत्म कर सकते थे वहीं दूसरी ओर माँ ने सपनों को मारने वाले शब्दों का प्रयोग करने के स्थान पर सही शब्दों का प्रयोग करके ना सिर्फ़ बेटे के जीवन को सार्थक बनाया बल्कि अपने सपने को भी सच करते हुए दुनिया को एक महान वैज्ञानिक दिया।
दोस्तों एडिसन को यह बात माँ की मृत्यु होने के कुछ वर्षों बाद पता चली जब घर में कुछ सामान खोजते समय उनके हाथ माँ की एक पुरानी डायरी आ गई। डायरी पढ़ने के बाद एडिसन कई घंटों तक रोते रहे और अंत में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि, ‘थॉमस अल्वा एडिसन एक मंदबुद्धि बच्चा था, जो एक महान माँ द्वारा तराशे जाने की वजह से सदी की प्रतिभा बन गया।’
साथियों निश्चित तौर पर आप अब कहे हुए शब्दों की ताक़त के साथ-साथ यह भी समझ गए होंगे कि आपके सपनों को कोई भी तब तक चकनाचूर नहीं कर सकता है जब तक आप उन्हें इसकी इजाज़त ना दें। याद रखिएगा दोस्तों अगर आप अपने बच्चे में कोई व्यवहारिक समस्या देख रहे हैं तो उसे समझाने से पहले एक बार कहे जाने वाले शब्दों को चेक कर लें। वैसे दोस्तों यह बात सिर्फ़ बच्चों पर लागू नहीं होती बल्कि हर किसी के लिए इसी तरह काम करती है।
इसीलिए तो कहते है, ‘शब्द आपको किसी के दिल में या किसी के दिल से उतार सकते हैं।’
-निर्मल भटनागर
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