फिर भी ज़िंदगी हसीन हैं...
तीन चरणों में बच्चों की कमियों को दूर करें
April 17, 2021
तीन चरणों में बच्चों की कमियों को दूर करें…
एक प्रश्न जो अकसर मुझसे पूछा जाता है, ‘सर हम अपने बच्चे को कोई बात कैसे सिखाएँ?’ वैसे इसका कोई एक सही उत्तर नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी एक तरीक़ा जो मैंने सबसे ज़्यादा बार काम में लिया है, वह आपसे साझा करता हूँ।
बात लगभग 10 वर्ष पूर्व की है, मैं शैक्षणिक सलाहकार के रूप में एक विद्यालय के साथ कार्य कर रहा था। शिक्षकों की ट्रेनिंग के दौरान एक शिक्षिका ने मुझसे प्रश्न करा, ‘सर मेरी क्लास में एक बच्चा है जो अंग्रेज़ी पढ़ने में बिलकुल रुचि नहीं लेता, आप बताइए मैं क्या करूँ?’ मैंने उक्त शिक्षिका को कई तरीक़े बताए लेकिन उनका जवाब फ़िक्स था, ‘सर मैं यह प्रयोग करके देख चुकी हूँ।’ या ‘सर, वह बच्चा ज़िद्दी है, मुझे पता है वह ऐसा नहीं करेगा।’ मैं उन्हें समझा रहा था कि बच्चा किस तरह सीख सकता है और वे मुझे उसके नहीं सीखने के कारण बता रही थीं।
दोस्तों अगर बच्चे की आदत बदलना है तो सबसे पहले स्वीकारो कि आप बड़े और समझदार हो। अगर बच्चा आप की बात नहीं समझ पा रहा है या आपकी इच्छा अनुसार कोई काम नहीं कर रहा है तो उसके बारे में धारणा बनाने या उस पर ठप्पा लगाने के स्थान पर, हमें उसे सिखाने के अपने तरीके को बदलना होगा।
मेरी नज़र में मैडम बच्चे के बारे में धारणा बना कर उस पर ठप्पा लगाने की गलती कर चुकी थीं और उसके बाद भी अपने तरीके को बदलने के लिए तैयार नहीं थीं। मैंने मैडम से कहा, ‘आप मुझे बच्चे का नाम और क्लास बताइए, मैं एक कोशिश करके देखता हूँ।’
बच्चे के नाम के आधार पर क्लास व स्पोर्ट टीचर से बात करने पर मुझे पता लगा कि वह पढ़ाई में सामान्य है लेकिन क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता है परन्तु उसके घर वाले व शिक्षक चाहते हैं कि वह पढ़ाई पर ध्यान दे। मैंने उसके खेल को देखने का निर्णय लिया, कुछ देर बाद उस बच्चे की क्लास मैदान पर क्रिकेट खेलने के लिए आयी। वह बच्चा हमेशा की तरह शुरू में बैटिंग करने आया और आते ही बढ़िया शॉट मारने लगा। दूर खड़े-खड़े ही मैंने उसके हर शॉट पर चिल्ला कर उसका उत्साह बढ़ाना शुरू कर दिया। बच्चा मुझे देख हैरान था क्यूँकि शायद मैं इकलौता शिक्षक रहा हूँगा जो उसे खेलने पर प्रोत्साहित कर रहा था बाक़ी सब तो उसे रोका ही करते थे। कुछ देर बाद ऐसी स्थिति थी कि अब वह खुद अच्छा शॉट खेलते ही मेरी ओर देखने लगता था।
स्पोर्ट पीरियड ख़त्म होने पर मैंने उस बच्चे को अपने पास बुलाया और बात करना शुरू किया-
मैंने पूछा, ‘तुम तो बहुत अच्छे बैट्समैन हो। तुम्हें खेलते हुए देख मुझे ऐसा लगा जैसे मैं तेंदुलकर को उसके बचपन में खेलते हुए देख रहा हूँ। वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’ वह बोला, ‘धन्यवाद सर, मेरा नाम राकेश (बदला हुआ नाम) है।’ मैं बोला, ‘राकेश, अगर तुम इसी तरह प्रैक्टिस करते रहे तो हो सकता है एक दिन तुम अपने शहर, राज्य और अंत में भारतीय टीम में चुने जाओ। राकेश के चेहरा इतना सुनते ही खिल चुका था। मैंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘राकेश, तब मुझे भूल मत जाना, शायद मैं पहला व्यक्ति हूँ जिसने तुम्हारे अंदर के खिलाड़ी को पहचाना है।’ मैंने अपनी बात कहना जारी रखते हुए कहा, ‘जब तुम भारतीय टीम की ओर से पहला मैच खेलो तब उसे देखने के लिए मुझे बुलाना मत भूलना।’ वह एकदम खुश होता हुआ बोला, ‘ज़रूर सर।’
उसके हावभाव देख मुझे क्लाइमैक्स की ओर जाने का संकेत मिला। मैंने अपना अंतिम पासा चलते हुए बोला, ‘राकेश, मान लो तुमने पहले ही मैच में शतक लगा दिया और तुम उस मैच में ‘मैन ऑफ़ द मैच’ चुने जाओ, अगर ऐसा हुआ तो सबसे पहले मैं ही स्टेडियम में खड़ा हो कर तुम्हारे लिए ताली बजाऊँगा, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाऊँगा क्यूँकि यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।’ पर सोच कर देखो अगर वह मैच विदेश में हुआ और ‘मैन ऑफ़ द मैच’ का ईनाम लेने के बाद वहाँ के पत्रकारों ने तुमसे, तुम्हारे बारे में अंग्रेज़ी में प्रश्न पूछे तो कैसे जवाब दोगे?’
वह निरुत्तर था, मैंने उससे कहा, ‘एक काम करना तुम यू -ट्यूब पर जब पहली बार कपिल देव, नवजोत सिद्धू या शोएब अख़्तर से अंग्रेज़ी में प्रश्न पूछे थे तब उनकी क्या हालत हुई थी उसका वीडियो देखना। अगर तुम उस स्थिति से बचना चाहो तो मेरे पास तुम्हारे लिए सुझाव है।’ राकेश एक दम से बोला, ‘वह क्या सर?’ मैंने कहा अगर तुम मानने का प्रॉमिस करो तो मैं बताता हूँ। उसने तुरंत हाँ कर दिया।
मैंने उसी वक्त अंग्रेज़ी की अध्यापिका को बुलवाया और उनसे कहा, ‘मैडम, हमें राकेश को अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए प्रेशर नहीं देना है। यह अच्छा क्रिकेटर बनेगा, आप बस इसे इतनी अंग्रेज़ी सिखा दीजिए की यह लोगों की बात समझ जाए और उन्हें जवाब दे सके।’ इसके बाद उस वर्ष जब भी मैं विद्यालय गया उस बच्चे से ज़रूर मिला और उसके सपने के बारे में बात की।
दोस्तों आज वह बच्चा एक अच्छे बी॰ स्कूल से अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पढ़ रहा है और बताने की ज़रूरत नहीं है कि उसने अपने डर पर विजय प्राप्त कर ली है। आईए दोस्तों अब आपको तीन चरणों में यह तकनीक भी सिखा देता हूँ।
पहला चरण - उस बच्चे और उसके सपने पर विश्वास व्यक्त करा और उसे उसके सपने का विस्तृत रूप दिखाया।
दूसरा चरण - उसकी स्ट्रेंथ को उसकी कमजोरी के साथ इस तरह जोड़ा जैसे उसके बिना उसका सपना अधूरा रहेगा और अपनी बात के समर्थन में उसकी स्ट्रेंथ वाले क्षेत्र से कुछ उदाहरण दिए।
तीसरा चरण - उसे अपनी कमजोरी दूर करने का आसान रास्ता दिखाते हुए उसके डर को कम किया और अंत में उससे बार-बार मिल कर याद दिलाता रहा।
यक़ीन मानिएगा दोस्तों आपका बदला हुआ तरीक़ा बच्चे के जीवन को बदल सकता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
dreamsachieverspune@gmail.com