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त्यौहारों और परम्पराओं में छुपा है सुखी जीवन का राज


Nov 4, 2021
त्यौहारों और परम्पराओं में छुपा है सुखी जीवन का राज !!!
दोस्तों सबसे पहले तो आप सभी को रेडियो दस्तक परिवार की ओर से पाँच दिवसीय दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। वैसे तो दोस्तों दशहरे से ही हमारे यहाँ दीप पर्व की शुरुआत हो जाती है, लेकिन सामान्यतः दीपावली के दो दिन पहले, धनतेरस से शुरू होने वाला यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद, भाईदूज तक अर्थात् कुल पाँच दिन तक मनाया जाता है। धनतेरस के पूर्व हर कोई अपने घरों की साफ़-सफ़ाई, रंग-रोगन करके स्वयं को इस उत्सव के लिए तैयार करता है और फिर रंग-बिरंगी रंगोली के साथ उत्सव के माहौल के लिए खुद को तैयार करता है। आइए आज हम इस उत्सव के महत्व को एक बार फिर दोहरा लेते हैं-
अकसर आपने परिवार के बुजुर्गों को कहते सुना होगा, ‘पहला सुख निरोगी काया और दूसरा सुख पास में माया।’ अर्थात् जीवन में सबसे बड़ी सुख-सम्पदा स्वस्थ मन और शरीर का होना है। अगर आप मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ नहीं है तो सब कुछ होने के बाद भी आप किसी चीज के मज़े नहीं ले पाएँगे। इसलिए हम इस पाँच दिवसीय पर्व की शुरुआत देवताओं के वैद्य एवं आयुर्वेद के जनक माने जाने वाले भगवान धन्वंतरी की उपासना अर्थात् आरोग्य की उपासना के साथ करते हैं। वैसे यही बात हमें हमारी पौराणिक कथाएँ भी सिखाती है। साथ ही जैसा मैंने आपको पहले बताया था कि निरोगी काया के बाद दूसरे सुख के रूप में हमारे पास माया अर्थात् पूँजी का होना, आर्थिक रूप से मज़बूत होना है। इसलिए धनतेरस के दिन सोने, चाँदी के आभूषण, बर्तन अथवा धातु की वस्तु लेने का अपना अलग महत्व है। पुरातन काल से ही माना जाता है की धातुएँ अपशकुन और नकारात्मकता को दूर करती हैं और साथ ही धन और समृद्धि को आकर्षित करती हैं। इसलिए हमारे यहाँ यह चलन हजारों साल पहले से चल रहा है। वैसे दोस्तों धनतेरस पर्व की मुख्य सीख हमें इस बात का एक बार फिर से भान कराती है कि धन को कमाने में कहीं स्वास्थ्य को न भूल जाएं। इसीलिए धनतेरस के दिन हम धन की उपासना से पहले आरोग्य की उपासना करते हैं। यह पर्व शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आर्थिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का संकल्प लेने का मौका देता है।
धनतेरस के अगले दिन हम नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाते हैं। इस त्यौहार को लेकर दो पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार, नरकासुर राक्षस जो अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान करता था तथा उसने 16000 स्त्रियों को भी क़ैद कर लिया था। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्रियां भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदमों में नाप दिया था। इसके बाद अपने वादे के अनुसार राजा बली, जो की परम दानी थे ने अपना पूरा राज्य भगवान वामन को दान में दे दिया था। भगवान वामन, राजा बली के इस कदम से खुश हो गए और उन्होंने राजा बली को वरदान दिया, जिसके अनुसार त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि तक हर वर्ष तीनों लोकों में राजा बली का राज होता है और इस दौरान जो भी व्यक्ति दीपावली पूजन करता है, उसके घर में लक्ष्मी का वास होता है। साथ ही नरक चतुर्दशी के दिन जो दीपों का दान करता है, उनके सभी पितरों को यमराज यातना और नरक से मुक्ति मिलती है।
तीसरा दिन अर्थात् दीपावली, यह त्यौहार हम भगवान राम की रावण पर जीत के पश्चात वनवास पूर्ण होने पर अयोध्या लौटने पर मनाया जाता है। इस दिन अयोध्यावासियों ने भगवान राम के आने की ख़ुशी में रोशनी करके अयोध्या को सजाया था। वैसे भी दोस्तों यही तो इस शब्द का अर्थ भी है। दीपावली संस्कृत के शब्द दीप और आवली से मिलकर बना है। दीप मतलब दीपक और आवली मतलब श्रृंखला अर्थात् दीपावली मतलब दीपों की श्रृंखला।
वैसे इस पर्व को हम एक अलग नज़रिए से भी देख सकते हैं। मिट्टी के दीपों के प्रकाश को हम ज्ञान और चेतना के रूप में देख सकते हैं अर्थात् यह त्यौहार ज्ञान और चेतना के दिए से हमारी अज्ञानता को दूर कर समृद्धि, आनंद, स्वास्थ्य और खुशी का मार्ग प्रशस्त करने का त्यौहार है। पश्चिमी, मध्य, पूर्वी और उत्तरी भारतीय समुदाय दीवाली के मुख्य दिन लक्ष्मी पूजन करते हैं।
दीपावली के अगले दिन हम गोवर्धन पूजा और बलि प्रतिपदा (पड़वा) के रूप में मनाते हैं। उत्तर भारत में इस पर्व की शुरुआत द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से शुरू हुई। प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद्र भगवान ने अपना रौद्र रूप दिखाने के लिए मूसलाधार बारिश करी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उँगली पर उठाकर इंद्र का मान-मर्दन किया था और साथ ही सुदर्शन चक्र की मदद से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ने दी। इन 7 दिनों तक सभी ब्रजवासी, गोपी-गोपिकाएँ उनकी छत्र-छाया में सुरक्षित रहे। ब्रह्मा जी ने इन्द्र को पृथ्वी पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बारे में बताया और उनसे बैर लेने के लिए मना किया। तब श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्र देव अपने इस कार्य पर बहुत लज्जित हुए और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की।
दक्षिण भारत में इस दिन प्रचलित मान्यता के अनुसार मार्गपाली पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान वामन ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीवाली मनाई थी। विष्णु अवतार वामन ने तब राजा बलि को अमर होने का वरदान दिया और कहा कि इस दिन जो भी श्रद्धालु तुम्हारी पूजा करेगा। उसके जीवन में सुख-समृद्धि का वास होगा। वैसे इस दिन विवाह के बंधन को बढ़ाने के लिए भी पूजा की जाती है।
इस पाँच दिवसीय त्यौहारों की श्रृंखला के अंतिम अर्थात् पाँचवे दिन भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है जो कि बहन और भाई के बीच के बंधन को समर्पित है। शिल्पकार समुदाय इस दिन को विश्वकर्मा पूजा करके मनाते हैं।
आज के इस शो में दोस्तों हमने इस त्यौहार के महत्व को समझा। आशा करता हूँ कि आप इसी तरह आने वाली पीढ़ी को हमारी गौरवशाली परम्पराओं के बारे में बताएँगे। एक बार पुनः मेरी और रेडियो दस्तक परिवार की ओर से आप सभी को धनतेरस व दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर