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त्यौहारों को अपनी ताक़त बनाएँ


Aug 22, 2021
त्यौहारों को अपनी ताक़त बनाएँ!!!
आज हम सभी लोग भाई-बहन के स्नेह और उल्लास के पर्व रक्षाबंधन को मना रहे हैं। वैसे दोस्तों बचपन से ही हम सभी इस महान पर्व के दिल को छू जाने वाले क़िस्सों को सुनते हुए बड़े हुए हैं कि किस तरह भाई ने, बहन द्वारा कलाई पर बांधे गए पवित्र धागे के वचन को निभाया है।
वैसे अगर इस पर्व को इतिहास के झरोखे से देखा जाए, तो इस त्यौहार के अनेक स्वरूप नज़र आते हैं। उदाहरण के लिए निम्न पाँच संदर्भों को देखिएगा-
पहला संदर्भ - रक्षा सूत्र बांधने का पहला उल्लेख भविष्य पुराण में उल्लेखित सतयुग की उस घटना में मिलता है, जब स्वर्ग के राजा इंद्र बारह वर्षों तक चले एक भयानक युद्ध में असुरों के हाथों पराजित हुए थे। पराजय के बाद असुरों ने स्वर्ग पर क़ब्ज़ा जमा लिया था। इस क़ब्ज़े से दुखी इंद्र ने गुरु बृहस्पति को अपनी पीड़ा बताते हुए इसका समाधान पूछा।
गुरु बृहस्पति के बताए अनुसार देवराज इंद्र की पत्नी शचि जिन्हें इंद्राणी भी कहते हैं, ने श्रावण माह की शुक्ल पूर्णिमा के दिन स्वस्ति वाचन के साथ पूर्ण विधि-विधान से देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर रक्षासूत्र को बांधा। इस रक्षासूत्र से मिली ताक़त से देवराज इंद्र ने असुरों को हराया और अपना खोया राज्य वापस पा लिया। तभी से इस दिन रक्षासूत्र बांधने की परंपरा की शुरुआत हुई।
दूसरा संदर्भ - भगवान विष्णु के वामन अवतार से राजा बलि ने चौबीसों घंटे पाताल लोक में रहने का वचन ले लिया था। भगवान विष्णु अपने वचन को निभाने के लिए रात-दिन पाताल लोक में ही रहने लगे। इससे लक्ष्मी जी चिंतित हुई और उन्होंने नारद जी से इस विषय पर सलाह ली। उनसे मिली सलाह के आधार पर लक्ष्मी जी रूप बदलकर राजा बली के पास गई और उन्हें रक्षासूत्र बांध कर बदले में उपहार स्वरूप विष्णु जी को मांग लिया। घटना वाले दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी और इसलिए यह प्रसंग भी रक्षाबंधन के साथ जुड़ा है।
तीसरा संदर्भ - महाभारत काल में शिशुपाल का वध करते समय भगवान कृष्ण की तर्जनी उँगली में चोट लग गई थी और उसमें से लहू बहने लगा था। उस वक्त पांडवों की पत्नी द्रौपदी भी वहीं खड़ी हुई थी। उन्होंने लहू को बहने से रोकने के लिए तुरंत अपनी साड़ी के किनारे से कपड़ा फाड़ा और उसे भगवान श्री कृष्ण की तर्जनी उँगली पर बांध दिया। उसी दिन भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करने का संकल्प लिया और उसे आजीवन निभाया।
चौथा संदर्भ - रक्षा सूत्र की ताक़त ने दुश्मन की भी जान बचाई अन्यथा राजा पुरु सिकंदर को युद्ध में परास्त होने के बाद मौत के घाट उतार देते। जी हाँ दोस्तों, सिकंदर ने दुनिया फ़तह करने की चाह में भारत के शक्तिशाली राजा पुरु पर आक्रमण करा लेकिन उनके सामने टिक नहीं पाया।
इस युद्ध के बाद पुरु द्वारा सिकंदर को मारने की क़सम खाने की बात जैसे ही सिकंदर की पत्नी को पता चली उन्होंने तुरंत राजा पुरु को रक्षासूत्र भेज अपना मुँहबोला भाई बना लिया और उनसे सिकंदर को जान से नहीं मारने का वचन ले लिया। यही नहीं राजा पुरु और सिकंदर दोनों की सेना ने रक्षासूत्र की अदला-बदली करी थी। इसीलिए पुरु ने सिकंदर को मारने के लिए हाथ उठाने के बाद भी बख्श दिया, वहीं सिकंदर ने उसके बाद युद्ध जीत जाने के बाद भी पुरु को उनका राज लौटा दिया।
पाँचवाँ संदर्भ - इस रक्षासूत्र ने धर्म से ऊपर उठकर भी अपनी ताक़त दिखाई है। राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) की मृत्यु के बाद चितौड़गढ़ सैन्य रूप से काफ़ी कमजोर हो गया था। उस वक्त वहाँ का राज सम्भालने के लिए राणा सांगा की विधवा रानी कर्णावती ने अपने पुत्र को गद्दी पर बैठाया और अपने राज्य को फिर से पहले जैसा बनाने का प्रयास करने लगी। उसी वक्त गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने चितौड़गढ़ पर हमला कर दिया। रानी कर्णावती के पास अपने देश की रक्षा के लिए ज़रूरी फ़ौजी ताक़त भी नहीं थी उन्होंने उसी वक्त मुग़ल सल्तनत के बादशाह हुमायूँ को रक्षासूत्र भेजा और मदद माँगी।
हुमायूँ ने तुरंत उसे स्वीकार किया और रानी कर्णावती की मदद करने के लिए अपनी फ़ौज लेकर निकल पड़ा। कई सौ किलोमीटर तय कर जब वह चितौड़गढ़ पहुँचा तब तक बहादुर शाह चितौड़गढ़ पर क़ब्ज़ा कर चुका था और रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था। इस खबर को सुनते ही हुमायूँ को ग़ुस्सा आ गया और उन्होंने उसी वक्त चितौड़गढ़ पर हमला कर बहादुर शाह को हरा दिया और वहाँ की गद्दी वापस रानी कर्णावती के पुत्र को सौंप दी।
ठीक इसी तरह नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर ने बंगाल विभाजन के बाद हिंदुओं और मुसलमानों से एकजुट होने का आग्रह किया था और दोनों समुदायों से एक-दूसरे की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधने का निवेदन किया था।
अगर आप उपरोक्त पाँचों संदर्भों को देखेंगे तो आप पाएँगे कि बदलते समय के साथ इस त्यौहार ने भी स्वरूप बदला है। पहले यह एक ऐसा रक्षासूत्र था जिसे कोई भी महिला किसी भी पुरुष को बांध सकती थी जैसे इंद्र भगवान को उनकी पत्नी ने बांधा था। लेकिन कालांतर में धीरे-धीरे लोगों ने इसे भाई-बहन का त्यौहार बना दिया।
दोस्तों अब एक बार फिर इसका स्वरूप बदलने का समय आ गया है। क्यूँ ना हम इस रक्षासूत्र की ताक़त का इस्तेमाल कमज़ोरों की मदद करने, पर्यावरण को बचाने, कोरोना के ख़िलाफ़ जंग लड़ने, ग़रीबी मिटाने आदि अर्थात् सामाजिक उत्थान के लिए करें। विचार करके देखिएगा क्यूँकि हर त्यौहार का मूल मकसद इंसानियत को बचाना, आपसी सम्बन्धों को मज़बूत करना ही रहता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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